ति-पिटक और बुद्ध
एक भंते ने फेसबुक पर अपनी नाराजी कड़े शब्दों में व्यक्त की, कि किसी दूसरे भंते को बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर के पिता का नाम तक नहीं मालूम है. इस चर्चा के पक्ष-विपक्ष में कई बौद्ध भिक्खुओं के साथ कई बौद्ध उपासक भी शामिल दिखे.
धम्माधिकारी बौद्ध भिक्खुओं में बाबासाहब अम्बेडकर के प्रति यह आग्रह स्वागत योग्य है. वन्दनीय है. हम वंदना करते हैं उन धम्मध्वज वाहकों की, प्रचारकों की. और क्यों न हो, यह धम्म हमें बाबासाहब अम्बेडकर ने दिया. यह बाबासाहब अम्बेडकर हैं, जिन्होंने बतलाया कि हमें किस मार्ग पर जाना है. बुद्ध, हमारे लिए प्रेरणा के श्रोत है, जीवन जीने का मार्ग है तो अम्बेडकर उस मार्ग के पथ-प्रदर्शक हैं.
निस्संदेह, कुछ बौद्ध भिक्खुओं और बौद्ध उपासकों को हमने भी अम्बेडकर के स्थान पर विपस्सनाचार्य गुरु गोयनकाजी की वंदना करते देखा है. यह सच है कि गोयनकाजी इस देश और कई विदेशों में विपस्सना केन्द्रों का एक बड़ा नेट-वर्क स्थापित करने में सफल रहें हैं. हम समझ सकते हैं उनकी निष्ठा को. क्योंकि इन प्रतिष्ठानों की प्रतिष्ठा से ही उनकी प्रतिष्ठा और मान सम्मान है. किन्तु गोयनकाजी जिस बुद्धिज़्म की देशना करते हैं, वह बाबासाहब अम्बेडकर के 'बुद्धा एंड हिज धम्मा' से सैद्धांतिक रूप से भिन्न है. कई हिन्दू संस्थाएं भी अपने-अपने कारणों के बुद्धिज़्म के प्रचार में रत हैं.
ति-पिटक में ब्राह्मणवाद भरा पड़ा है. और इसलिए बाबासाहब अम्बेडकर को 'बुद्धा एंड हिज धम्मा' लिखना पड़ा. हमें बुद्ध तो चाहिए किन्तु ब्राह्मणवाद से अलग. ऊंच-नीच की घृणा से अलग. बौद्ध ग्रन्थ 'ललितविस्तर' में बुद्ध को 'ब्राह्मण या क्षत्रिय जैसे किसी 'उच्च कुल' में ही जन्म लेने की बात कही गई है, न कि किसी चंडाल जैसे 'नीच कुल' में. हमें ऐसे नीच-उंच्च की घृणा पर आधारित ब्राह्मणवाद से ग्रसित 'बुद्ध' की जरुरत नहीं है.
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