'दीघनिकाय' ही जिम्मेदार है, सारे गड़बड़झाले के लिए-
अवदान साहित्य और अट्ठ-कथाएं नहीं, 'दीघनिकाय' ही जिम्मेदार है, बुद्ध के संबंध में अनर्थपूर्ण और चमत्कारी बातें फैलाने के लिए-
1. अकसर, बुद्ध के संबंध में अनर्थपूर्ण और चमत्कारी बातें फैलाने के लिए हम वंश साहित्य, अवदान चरित, जातक अट्ठ-कथा आदि के मत्थे दोष मढ़कर बरी हो जाते हैं। किन्तु यह सच नहीं है। वास्तव में, इसके जिम्मेदार दीघनिकाय आदि प्रमुख ग्रंथ ही है।
2. बौद्ध विद्वान अधिकतर ति-पिटकाधीन प्रमुख ग्रंथों को दोष रहित बतलाते हैं। उनके विचार से बौद्ध ग्रंथों में हिन्दू पौराणिक कथाओं की तर्ज पर जो मनगढ़न्त काल्पनिक कथाएं आई हैं, वे परवर्तित काल में वंश साहित्य, अवदान चरित, अट्ठकथा आदि साहित्य रचने के दौरान आई है।
3. प्रश्न है कि तब. ईसा की पहली सदी में बुद्धजीवनी पर लिखे गए संस्कृत महाकाव्य, फिर चाहे ‘ललितविस्तर’ हो या अश्वघोष कृत ‘बृद्धचरित’; इनमें मनगढ़न्त कथाएं कहां से आई? पौराणिक कथाओं पर आधारित साहित्य तो बहुत बाद में रचा गया ।
4. ये सारी अद्भूत कथाएं बोधिसत्व के जीवन में दीघनिकाय के महापदानसुत्त से आयी(धम्मानन्द कोसम्बीः भगवान बुद्ध जीवन और दर्शन, पृ. 84 )।
5. दीघनिकाय के महापदानसुत्त में पूर्वयुगीन 6 और गौतम बुद्ध को मिलाकर 7 बुद्धों के जीवन-चरित्र संक्षेप में देकर फिर विपस्सी बुद्ध का जीवन-चरित्र विस्तार से दिया गया है।
6. अट्ठकथाकार कहते हैं कि वह एक नमूना है और उसी के अनुसार अन्य बुद्धों की जीवनियों का वर्णन करना चाहिए। इस वर्णन के अधिकांश भाग इस सुत्त की रचना से पहले या अनन्तर गौतम बुद्ध की जीवनी में दाखिल कर लिए गए और वे स्वयं ति-पिटक में विभिन्न स्थानों पर पाए जाते हैं(वही, पाद टिपण्णी)।
7. और इसलिए ईसा की पहली सदी में बुद्धजीवनी पर लिखे गए संस्कृत महाकाव्य, फिर चाहे ‘ललितविस्तर’ हो या अश्वघोष कृत ‘बृद्धचरित’; सभी में इन कथाओं का समावेश किया गया है(वही)।
8. यद्यपि राहुल सांकृत्यायन के अनुसार, दीघनिकाय के कई सुत्त जैसे आटानाटियसुत्त जिसमें भूत-प्रेत सम्बन्धी बातें हैं, काफी बाद के हैं(पालि का इतिहास, पृ. 7)। ये सुत्त बाद के हो या पूर्व के किन्तु दीघनिकाय जैसे ति-पिटकाधीन प्रमुख ग्रंथ में बुद्ध के नाम पर ऐसे उपदेश प्रश्न तो खड़ा करते ही है ?
9. डा. बाबासाहब अम्बेडकर के शब्दों में- किसी भी अबौद्ध के लिए यह कार्य अत्यन्त कठिन है कि वह भगवान बुद्ध के चरित्र और उनकी शिक्षाओं को एक ऐसे रूप में पेश कर सके कि उनमें सम्पूर्णता के साथ साथ कुछ भी असंगति न रहे(परिचयः ‘बुद्धा एण्ड हिज धम्मा’)।
10. जब हम दीघनिकाय आदि पालि ग्रंथों के आधार पर भगवान बुद्ध का जीवन-चरित्र लिखने का प्रयास करते हैं तो हमें यह कार्य सहज नहीं प्रतीत होता और उनकी शिक्षाओं की सुसंगत अभिव्यक्ति तो और भी कठिन हो जाती है(वही)।
11. यर्थाथ बात है और ऐसा कहने में कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं कि कि संसार में जितने भी धर्मों के संस्थापक हुए हैं, उनमें भगवान बुद्ध की चर्या का लेखा-जोखा हमारे सामने कई ऐसी समस्याएं पैदा करता है, जिनका निराकरण यदि असंभव नहीं तो अत्यन्त कठीन अवश्य है (वही)।
10. क्या यह आवश्यक नहीं कि इन समस्याओं का निराकरण किया जाए और बौद्ध धर्म को समझने-समझाने के मार्ग को निष्कण्टक किया जाए? क्या अब वह समय नहीं आ गया है कि बौद्धजन उन समस्याओं को लें, उन पर खुला विचार-विमर्श करे और उन पर जितना भी प्रकाश डाला जा सके, डालने का प्रयास करें (वही)?
अवदान साहित्य और अट्ठ-कथाएं नहीं, 'दीघनिकाय' ही जिम्मेदार है, बुद्ध के संबंध में अनर्थपूर्ण और चमत्कारी बातें फैलाने के लिए-
1. अकसर, बुद्ध के संबंध में अनर्थपूर्ण और चमत्कारी बातें फैलाने के लिए हम वंश साहित्य, अवदान चरित, जातक अट्ठ-कथा आदि के मत्थे दोष मढ़कर बरी हो जाते हैं। किन्तु यह सच नहीं है। वास्तव में, इसके जिम्मेदार दीघनिकाय आदि प्रमुख ग्रंथ ही है।
2. बौद्ध विद्वान अधिकतर ति-पिटकाधीन प्रमुख ग्रंथों को दोष रहित बतलाते हैं। उनके विचार से बौद्ध ग्रंथों में हिन्दू पौराणिक कथाओं की तर्ज पर जो मनगढ़न्त काल्पनिक कथाएं आई हैं, वे परवर्तित काल में वंश साहित्य, अवदान चरित, अट्ठकथा आदि साहित्य रचने के दौरान आई है।
3. प्रश्न है कि तब. ईसा की पहली सदी में बुद्धजीवनी पर लिखे गए संस्कृत महाकाव्य, फिर चाहे ‘ललितविस्तर’ हो या अश्वघोष कृत ‘बृद्धचरित’; इनमें मनगढ़न्त कथाएं कहां से आई? पौराणिक कथाओं पर आधारित साहित्य तो बहुत बाद में रचा गया ।
4. ये सारी अद्भूत कथाएं बोधिसत्व के जीवन में दीघनिकाय के महापदानसुत्त से आयी(धम्मानन्द कोसम्बीः भगवान बुद्ध जीवन और दर्शन, पृ. 84 )।
5. दीघनिकाय के महापदानसुत्त में पूर्वयुगीन 6 और गौतम बुद्ध को मिलाकर 7 बुद्धों के जीवन-चरित्र संक्षेप में देकर फिर विपस्सी बुद्ध का जीवन-चरित्र विस्तार से दिया गया है।
6. अट्ठकथाकार कहते हैं कि वह एक नमूना है और उसी के अनुसार अन्य बुद्धों की जीवनियों का वर्णन करना चाहिए। इस वर्णन के अधिकांश भाग इस सुत्त की रचना से पहले या अनन्तर गौतम बुद्ध की जीवनी में दाखिल कर लिए गए और वे स्वयं ति-पिटक में विभिन्न स्थानों पर पाए जाते हैं(वही, पाद टिपण्णी)।
7. और इसलिए ईसा की पहली सदी में बुद्धजीवनी पर लिखे गए संस्कृत महाकाव्य, फिर चाहे ‘ललितविस्तर’ हो या अश्वघोष कृत ‘बृद्धचरित’; सभी में इन कथाओं का समावेश किया गया है(वही)।
8. यद्यपि राहुल सांकृत्यायन के अनुसार, दीघनिकाय के कई सुत्त जैसे आटानाटियसुत्त जिसमें भूत-प्रेत सम्बन्धी बातें हैं, काफी बाद के हैं(पालि का इतिहास, पृ. 7)। ये सुत्त बाद के हो या पूर्व के किन्तु दीघनिकाय जैसे ति-पिटकाधीन प्रमुख ग्रंथ में बुद्ध के नाम पर ऐसे उपदेश प्रश्न तो खड़ा करते ही है ?
9. डा. बाबासाहब अम्बेडकर के शब्दों में- किसी भी अबौद्ध के लिए यह कार्य अत्यन्त कठिन है कि वह भगवान बुद्ध के चरित्र और उनकी शिक्षाओं को एक ऐसे रूप में पेश कर सके कि उनमें सम्पूर्णता के साथ साथ कुछ भी असंगति न रहे(परिचयः ‘बुद्धा एण्ड हिज धम्मा’)।
10. जब हम दीघनिकाय आदि पालि ग्रंथों के आधार पर भगवान बुद्ध का जीवन-चरित्र लिखने का प्रयास करते हैं तो हमें यह कार्य सहज नहीं प्रतीत होता और उनकी शिक्षाओं की सुसंगत अभिव्यक्ति तो और भी कठिन हो जाती है(वही)।
11. यर्थाथ बात है और ऐसा कहने में कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं कि कि संसार में जितने भी धर्मों के संस्थापक हुए हैं, उनमें भगवान बुद्ध की चर्या का लेखा-जोखा हमारे सामने कई ऐसी समस्याएं पैदा करता है, जिनका निराकरण यदि असंभव नहीं तो अत्यन्त कठीन अवश्य है (वही)।
10. क्या यह आवश्यक नहीं कि इन समस्याओं का निराकरण किया जाए और बौद्ध धर्म को समझने-समझाने के मार्ग को निष्कण्टक किया जाए? क्या अब वह समय नहीं आ गया है कि बौद्धजन उन समस्याओं को लें, उन पर खुला विचार-विमर्श करे और उन पर जितना भी प्रकाश डाला जा सके, डालने का प्रयास करें (वही)?
No comments:
Post a Comment