पानी चाहिए, जाति नहीं
उस समय, सावस्थी में बुद्ध के शिष्य आनन्द चारिका कर रहे थे। उन्हें प्यास लगी। उन्होंने देखा कि एक लड़की सिर पर पानी का घड़ा लिए जा रही है। उसका नाम प्रकृति था। उन्होंने आवाज देकर उसे रोका और पानी मांगा।
‘‘मैं ‘अच्छूत’ हूं, भंतेजी, आपको पानी कैसे दे सकती हूं?’’ प्रकृति ने बड़े संकोच से कहा।
‘‘मुझे पानी चाहिए, तेरी जाति नहीं।’’ -आनन्द ने उत्तर दिया।
स्रोत- भदन्त धर्मकीर्तिः भगवान बुद्ध का इतिहास और धम्मदर्शन पृ. 91
उस समय, सावस्थी में बुद्ध के शिष्य आनन्द चारिका कर रहे थे। उन्हें प्यास लगी। उन्होंने देखा कि एक लड़की सिर पर पानी का घड़ा लिए जा रही है। उसका नाम प्रकृति था। उन्होंने आवाज देकर उसे रोका और पानी मांगा।
‘‘मैं ‘अच्छूत’ हूं, भंतेजी, आपको पानी कैसे दे सकती हूं?’’ प्रकृति ने बड़े संकोच से कहा।
‘‘मुझे पानी चाहिए, तेरी जाति नहीं।’’ -आनन्द ने उत्तर दिया।
स्रोत- भदन्त धर्मकीर्तिः भगवान बुद्ध का इतिहास और धम्मदर्शन पृ. 91
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