अधिकांश ब्राह्मण बौद्ध विचारक महायानी-
आपको यह जानकर आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि अधिकांश महत्वपूर्ण ब्राह्मण बौद्ध विचारक हीनयान से नहीं महायान से जुड़े थे। दरअसल, हीनयान बौद्ध रूढ़ियों पर ज्यादा निर्भर था जबकि ज्यादा प्रचारित महायान पूजा-पाठ में ब्राह्मण-चर्याओं जैसा हो गया था।(मुद्रा राक्षस: धर्म ग्रंथों का पुनर्पाठ, वही, पृ. 159)
बौद्ध न्याय-शास्त्र के सबसे बड़े विचारक दिङनाग पांचवी सदी में हुए थे और वे ब्राह्मण ही थे। कहते हैं कि न्याय-शास्त्र पर दिङनाग ने 100 से भी उपर किताबें लिखी थी। अपेक्षाकृत कम विख्याात दिङनाग के शिष्य धर्मकीर्ति को भारत का 'इमैनुअल कान्ट' कहा जाता है। दरअसल सही अर्थों में धर्मकीर्ति, बुद्ध विवेक के ज्यादा निकट थे। बुद्ध का विख्यात वचन है- ‘अत्त दीपो भव’ यानि अपनी रोशनी खुद बनो। धर्मकीर्ति (सातवीं शताब्दी) ने इस अवधारणा का व्यापक विस्तार किया था(वही)। दिलचस्प है कि बीसवीं सदी के मध्य ते धर्मकीर्ति के बारे में किसी को कुछ भी ज्ञात नहीं था। राहुल सांस्कृत्यायन उनकी सबसे बड़ी कृति ‘प्रमाणवार्तिक’ की पाण्डुलिपि तिब्बत से लाए थे जो 1953 में पहली बार प्रकाशित हुई थी(वही)। तब लोगों को उनके बारे में पता चला.
आपको यह जानकर आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि अधिकांश महत्वपूर्ण ब्राह्मण बौद्ध विचारक हीनयान से नहीं महायान से जुड़े थे। दरअसल, हीनयान बौद्ध रूढ़ियों पर ज्यादा निर्भर था जबकि ज्यादा प्रचारित महायान पूजा-पाठ में ब्राह्मण-चर्याओं जैसा हो गया था।(मुद्रा राक्षस: धर्म ग्रंथों का पुनर्पाठ, वही, पृ. 159)
बौद्ध न्याय-शास्त्र के सबसे बड़े विचारक दिङनाग पांचवी सदी में हुए थे और वे ब्राह्मण ही थे। कहते हैं कि न्याय-शास्त्र पर दिङनाग ने 100 से भी उपर किताबें लिखी थी। अपेक्षाकृत कम विख्याात दिङनाग के शिष्य धर्मकीर्ति को भारत का 'इमैनुअल कान्ट' कहा जाता है। दरअसल सही अर्थों में धर्मकीर्ति, बुद्ध विवेक के ज्यादा निकट थे। बुद्ध का विख्यात वचन है- ‘अत्त दीपो भव’ यानि अपनी रोशनी खुद बनो। धर्मकीर्ति (सातवीं शताब्दी) ने इस अवधारणा का व्यापक विस्तार किया था(वही)। दिलचस्प है कि बीसवीं सदी के मध्य ते धर्मकीर्ति के बारे में किसी को कुछ भी ज्ञात नहीं था। राहुल सांस्कृत्यायन उनकी सबसे बड़ी कृति ‘प्रमाणवार्तिक’ की पाण्डुलिपि तिब्बत से लाए थे जो 1953 में पहली बार प्रकाशित हुई थी(वही)। तब लोगों को उनके बारे में पता चला.
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