विरोध की धार सतत कुंद करते विपस्सना संस्थान-
1. जो अम्बेडकर के अनुयायी हैं, उनमें व्यवस्था के प्रति जबदस्त असहमति है.
2. यह अम्बेडकर के अनुयायी ही हैं जो विरोध कर सकते हैं, व्यवस्था में परिवर्तन कर सकते हैं.
3. तमाम असहमति होने के बावजूद ये अम्बेडकर के अनुयायी ही हैं जो खामोश हैं. उनमें एक अजीब-सी शांति है. 4. वे कौन-से तत्व हैं, जो अंदर की असहमति को बाहर आने से रोक रहे हैं ?
4. बेशक, हमारे बीच कुछ तत्व हैं जो परिवर्तन की धार को कुंद कर रहे हैं, लोगों को गोल-बंद होने से रोक रहे हैं ?
5. यह कोई दबी बात नहीं हैं कि हिन्दू संस्थाएं आदिवासियों के बीच ही नहीं, अम्बेडकरियों के बीच घुस कर उनका विश्वास हाशिल कर उनके विरोध को 'राजनीतिक ' कह कर नकार रहीं हैं। 6. और ये संस्थाएं एक सुदृढ़ नेटवर्क की तरह कार्य करते 'विपस्सना केंद्र' हैं, जहाँ न तो जयभीम बोला जाता है और न अम्बेडकर को पढाया जाता है। जहाँ 'जयभीम' बोलने को एतराज हो, वे सामाजिक बदलाव के मिशन में हमारे सहायक कैसे हो सकते है ? 7. कई सामाजिक चिंतकों और विचारकॉ इन संस्थानों की गतिविधियों पर उंगली उठाया हैं. निस्संदेह जो सामाजिक बदलाव के हिमायती हैं, उन्हें इस विषय पर गौर करना चाहिए। 8. आन्दोलन करना उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना आन्दोलन की राह में बिछाए गए काँटों को हटाना।
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