आशंका
बाबासाहब अम्बेडकर ब्राह्मणों से हमेशा आशंकित रहा करते थे। घटना तब की है, जब वे वायसराय कौंसिल के सदस्य थे। एक बार भदन्त कोसल्यायन बाबासाहब की कोठी पर मिलने आए। उन्होंने बाबासाहब से उनकी अंग्रेजी पुस्तक ‘हू वेअर दी अनटचेबल्स’ का हिन्दी में अनुवाद करने की अनुमति मांगी। बाबासाहब ने उसकी अनुमति दे दी।
जब भदन्तजी वापिस चले गए तो बाबासाहब मुझसे पूछने लगे कि यह साधु किस जाति से भिक्षु बना है। मुझे इनकी पुरानी जाति या वर्ण का ज्ञान नहीं था किन्तु राहुल सांकृत्यायन के बारे में जानता था कि वे जन्म-जाति के पांडे ब्राह्मण है। बाबासाहब बोले कि ब्राह्मणों के भिक्षु बन जाने पर भी मुझे संदेह रहता है, क्योंकि उनके मस्तिष्क किसी न किसी कोने में उनका वामणपन अवश्य जीवित रहता है। अतः वह विशुद्ध भिक्षु कभी नहीं बन सकते(सोहनलाल शास्त्री बाबासाहब डॉ. बी. आर. अम्बेडकर के सम्पर्क में पच्चीस वर्ष पृ. 115 )।
बाबासाहब की आशंका निर्मूल नहीं थी. चाहे बुद्धोत्तर काल हो अथवा अम्बेडकरोत्तर, ति-पिटक ग्रंथों के साथ 'बुद्धा एंड हिज धम्मा' का अनुवाद करने में, हम इसका स्पष्ट प्रभाव देख सकते हैं!
बाबासाहब अम्बेडकर ब्राह्मणों से हमेशा आशंकित रहा करते थे। घटना तब की है, जब वे वायसराय कौंसिल के सदस्य थे। एक बार भदन्त कोसल्यायन बाबासाहब की कोठी पर मिलने आए। उन्होंने बाबासाहब से उनकी अंग्रेजी पुस्तक ‘हू वेअर दी अनटचेबल्स’ का हिन्दी में अनुवाद करने की अनुमति मांगी। बाबासाहब ने उसकी अनुमति दे दी।
जब भदन्तजी वापिस चले गए तो बाबासाहब मुझसे पूछने लगे कि यह साधु किस जाति से भिक्षु बना है। मुझे इनकी पुरानी जाति या वर्ण का ज्ञान नहीं था किन्तु राहुल सांकृत्यायन के बारे में जानता था कि वे जन्म-जाति के पांडे ब्राह्मण है। बाबासाहब बोले कि ब्राह्मणों के भिक्षु बन जाने पर भी मुझे संदेह रहता है, क्योंकि उनके मस्तिष्क किसी न किसी कोने में उनका वामणपन अवश्य जीवित रहता है। अतः वह विशुद्ध भिक्षु कभी नहीं बन सकते(सोहनलाल शास्त्री बाबासाहब डॉ. बी. आर. अम्बेडकर के सम्पर्क में पच्चीस वर्ष पृ. 115 )।
बाबासाहब की आशंका निर्मूल नहीं थी. चाहे बुद्धोत्तर काल हो अथवा अम्बेडकरोत्तर, ति-पिटक ग्रंथों के साथ 'बुद्धा एंड हिज धम्मा' का अनुवाद करने में, हम इसका स्पष्ट प्रभाव देख सकते हैं!
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