सतिपट्ठान
भंते या विपस्सना आचार्यों से हम बहुधा ‘सतिपट्ठान’ का नाम सुनते हैं। वे इसका उल्लेख किसी ‘गुह्य सूत्र’ की तरह करते हैं। 'गुह्य-सूत्र' महायान की उपज है, जो हिन्दू उपनिषदों में वर्णित 'ब्रह्म सूत्रों' की नक़ल है। किन्तु बुद्ध ने किसी 'गुह्य सूत्र' की देशना नहीं की । डॉ अम्बेडकर के अनुसार, जो कथन जन साधारण की समझ के बाहर हो , वह बुद्ध वचन हो ही नहीं सकता।
सतिपट्ठान अर्थात 'स्मृति-प्रस्थान' के आख्यान में चार प्रस्थान यथा- 'कायानुपस्सना', 'वेदनानुपस्सना', 'चित्तानुपस्सना', 'धम्मानुपस्सना' पर आधारित जिस समाज लिए बुद्ध प्रयासरत थे, उस पांचवे 'समाजनुपस्सना' का इसमें कोई विवेचन नहीं है. इन 'चार प्रस्थानों' के वर्णन से ऐसा प्रतीत होता है, जैसे 'साधक' को समाज से कोई सरोकार नहीं है.
क्या बुद्ध ऐसे हैं ? क्या बुद्ध का व्यक्तित्व ऐसा है ? क्या बुद्ध की देशना ऐसी है ? आखिर क्यों 'चरत भिक्खवे चारिकं' की देशना करने वाले बुद्ध को 'विपस्सी' (महापदान सुत्त : दीघ निकाय) बना दिया गया ? आखिर क्यों बुद्ध को, जो कलामों को आँख खोलकर चलने की हिदायत देता हो, आँख मूंदने को मजबूर किया गया ?
संयुक्त निकाय (महावग्ग) का सेदक सुत्त इस 'रहस्य' से पर्दा खोलता है-
‘‘अत्तानं, भिक्खवे, रक्खिस्सामि ति सतिपट्ठानं सेवितब्बं, परं रक्खिस्सामि ति सतिपट्ठानं सेवितब्बं।
‘‘भिक्खुओं! अपनी रक्षा करूंगा- ऐसे सतिपट्ठान का अभ्यास करना चाहिए। दूसरे की रक्षा करूंगा- ऐसे सतिपट्ठान का अभ्यास करना चाहिए।
अत्तानं भिक्खवे, रक्खन्तो परं रक्खति, परं रक्खन्तो अत्तानं रक्खति।’’
भिक्खुओं! अपनी रक्षा करने वाला दूसरे की रक्षा करता है और दूसरे की रक्षा करने वाला अपनी रक्षा करता है।
‘‘कथं च भिक्खवे, अत्तानं रक्खन्तो परं रक्खति? आसेवनाय, भावनाय, बहुलीकम्मेन- एवं खो भिक्खवे, अत्तानं रक्खन्तो परं रक्खति।
‘‘भिक्खुओं! कैसे अपनी रक्षा करने वाला दूसरे की रक्षा करता है? सेवन करने से, भावना करने से, अभ्यास करने से।
‘‘ कथं च भिक्खवे, परं रक्खन्तो अत्तानं रक्खति? खन्तिया, अविहिंसाय, मेत्तचित्ताय, अनुदयाताय-
भिक्खुओं! कैसे दूसरे की रक्षा करने वाला अपनी रक्षा करता है? क्षमा-सीलता से, हिंसा-रहित होने से, मैत्री से, दया से।
भिक्खुओं! इसी तरह दूसरे की रक्षा करने वाला अपनी रक्षा करता है।
एवं खो भिक्खवे, परं रक्खन्तो अत्तानं रक्खति।’’ @amritlalukey.blogspot.com
भंते या विपस्सना आचार्यों से हम बहुधा ‘सतिपट्ठान’ का नाम सुनते हैं। वे इसका उल्लेख किसी ‘गुह्य सूत्र’ की तरह करते हैं। 'गुह्य-सूत्र' महायान की उपज है, जो हिन्दू उपनिषदों में वर्णित 'ब्रह्म सूत्रों' की नक़ल है। किन्तु बुद्ध ने किसी 'गुह्य सूत्र' की देशना नहीं की । डॉ अम्बेडकर के अनुसार, जो कथन जन साधारण की समझ के बाहर हो , वह बुद्ध वचन हो ही नहीं सकता।
सतिपट्ठान अर्थात 'स्मृति-प्रस्थान' के आख्यान में चार प्रस्थान यथा- 'कायानुपस्सना', 'वेदनानुपस्सना', 'चित्तानुपस्सना', 'धम्मानुपस्सना' पर आधारित जिस समाज लिए बुद्ध प्रयासरत थे, उस पांचवे 'समाजनुपस्सना' का इसमें कोई विवेचन नहीं है. इन 'चार प्रस्थानों' के वर्णन से ऐसा प्रतीत होता है, जैसे 'साधक' को समाज से कोई सरोकार नहीं है.
क्या बुद्ध ऐसे हैं ? क्या बुद्ध का व्यक्तित्व ऐसा है ? क्या बुद्ध की देशना ऐसी है ? आखिर क्यों 'चरत भिक्खवे चारिकं' की देशना करने वाले बुद्ध को 'विपस्सी' (महापदान सुत्त : दीघ निकाय) बना दिया गया ? आखिर क्यों बुद्ध को, जो कलामों को आँख खोलकर चलने की हिदायत देता हो, आँख मूंदने को मजबूर किया गया ?
संयुक्त निकाय (महावग्ग) का सेदक सुत्त इस 'रहस्य' से पर्दा खोलता है-
‘‘अत्तानं, भिक्खवे, रक्खिस्सामि ति सतिपट्ठानं सेवितब्बं, परं रक्खिस्सामि ति सतिपट्ठानं सेवितब्बं।
‘‘भिक्खुओं! अपनी रक्षा करूंगा- ऐसे सतिपट्ठान का अभ्यास करना चाहिए। दूसरे की रक्षा करूंगा- ऐसे सतिपट्ठान का अभ्यास करना चाहिए।
अत्तानं भिक्खवे, रक्खन्तो परं रक्खति, परं रक्खन्तो अत्तानं रक्खति।’’
भिक्खुओं! अपनी रक्षा करने वाला दूसरे की रक्षा करता है और दूसरे की रक्षा करने वाला अपनी रक्षा करता है।
‘‘कथं च भिक्खवे, अत्तानं रक्खन्तो परं रक्खति? आसेवनाय, भावनाय, बहुलीकम्मेन- एवं खो भिक्खवे, अत्तानं रक्खन्तो परं रक्खति।
‘‘भिक्खुओं! कैसे अपनी रक्षा करने वाला दूसरे की रक्षा करता है? सेवन करने से, भावना करने से, अभ्यास करने से।
‘‘ कथं च भिक्खवे, परं रक्खन्तो अत्तानं रक्खति? खन्तिया, अविहिंसाय, मेत्तचित्ताय, अनुदयाताय-
भिक्खुओं! कैसे दूसरे की रक्षा करने वाला अपनी रक्षा करता है? क्षमा-सीलता से, हिंसा-रहित होने से, मैत्री से, दया से।
भिक्खुओं! इसी तरह दूसरे की रक्षा करने वाला अपनी रक्षा करता है।
एवं खो भिक्खवे, परं रक्खन्तो अत्तानं रक्खति।’’ @amritlalukey.blogspot.com
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