दीक्षा-भूमि नागपुर में डॉ अम्बेडकर ने एक 'धम्म-प्रचारक' रूप में लोगों को 'धम्म-दीक्षा' दिलाई थी-
घटना 1950 की है। सिंहलद्वीप में विश्व बौद्ध सम्मेलन का प्रथम अधिवेश आयोजित हुआ था। बाबासाहब अम्बेडकर उसमें एक मान्य अतिथि के रूप में शरीक हुए थे।
केंडी के एक बड़े होटल में बाबासाहब को ठहराया था। वे कुछ अस्वस्थ थे, यह जानकर भदन्त आनन्द कोसल्यायन उनसे मिलने गए थे। वहां बाबासाहब से उनका जो संवाद हुआ था, अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘यदि बाबा न होते!’ में भदन्तजी बड़े रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है-
‘‘डा. साहब, भारत के समाचार पत्रों में छपा था कि आपने नई दिल्ली के बौद्ध विहार में ति-शरण पंचशील ग्रहण किया है। किन्तु यहां के समाचार पत्रों में लिखा है कि आप बौद्ध धर्म का 'अध्ययन' कर रहे हैं? मैं इसलिए यह पूछ रहा हूं कि यदि कोई मुझसे यही प्रश्न पूछे तो मैं सही उत्तर दे सकूं !’’
‘‘और कोई समझे न समझे, आपको तो समझना चाहिए। मैं तो ‘बौद्ध’ से भी कुछ अधिक, बौद्ध धर्म का प्रचारक हूं। यदि मैं अपने बौद्ध होने की घोषणा कर दूं तो लोग मेरे सरल-सीधे भाईयों को जाकर कहेंगे कि डॉ. अम्बेडकर तो अब ‘बौद्ध’ हो गया है, तुम्हे उससे क्या लेना-देना। इसलिए मैंने तय किया है कि अभी थोड़े समय मैं बौद्ध धर्म का प्रचार करता रहूंगा। जब मैं देखूंगा कि एक पर्याप्त संख्या मेरे साथ आने के लिए तैयार है, तभी मैं ‘बौद्ध’ होने की सार्वजनिक घोषणा कर दूंगा।’’- डॉ. अम्बेडकर का जवाब था।
घटना 1950 की है। सिंहलद्वीप में विश्व बौद्ध सम्मेलन का प्रथम अधिवेश आयोजित हुआ था। बाबासाहब अम्बेडकर उसमें एक मान्य अतिथि के रूप में शरीक हुए थे।
केंडी के एक बड़े होटल में बाबासाहब को ठहराया था। वे कुछ अस्वस्थ थे, यह जानकर भदन्त आनन्द कोसल्यायन उनसे मिलने गए थे। वहां बाबासाहब से उनका जो संवाद हुआ था, अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘यदि बाबा न होते!’ में भदन्तजी बड़े रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है-
‘‘डा. साहब, भारत के समाचार पत्रों में छपा था कि आपने नई दिल्ली के बौद्ध विहार में ति-शरण पंचशील ग्रहण किया है। किन्तु यहां के समाचार पत्रों में लिखा है कि आप बौद्ध धर्म का 'अध्ययन' कर रहे हैं? मैं इसलिए यह पूछ रहा हूं कि यदि कोई मुझसे यही प्रश्न पूछे तो मैं सही उत्तर दे सकूं !’’
‘‘और कोई समझे न समझे, आपको तो समझना चाहिए। मैं तो ‘बौद्ध’ से भी कुछ अधिक, बौद्ध धर्म का प्रचारक हूं। यदि मैं अपने बौद्ध होने की घोषणा कर दूं तो लोग मेरे सरल-सीधे भाईयों को जाकर कहेंगे कि डॉ. अम्बेडकर तो अब ‘बौद्ध’ हो गया है, तुम्हे उससे क्या लेना-देना। इसलिए मैंने तय किया है कि अभी थोड़े समय मैं बौद्ध धर्म का प्रचार करता रहूंगा। जब मैं देखूंगा कि एक पर्याप्त संख्या मेरे साथ आने के लिए तैयार है, तभी मैं ‘बौद्ध’ होने की सार्वजनिक घोषणा कर दूंगा।’’- डॉ. अम्बेडकर का जवाब था।
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