सप्तपदी-
आर्यों में लोगों का एक ऐसा वर्ग होता था, जिसे देव कहते थे, जो पद और पराक्रम में श्रेष्ठ माने जाते थे। अच्छी संतानोत्पत्ति के उद्देश्य से आर्य लोग देव वर्ग के किसी भी पुरुष के साथ अपनी स्त्रियों को संभोग करने की अनुमति देते थे। यह प्रथा इतने व्यापक रूप से प्रचलित थी कि देव लोग आर्य स्त्रियों के साथ पूर्वास्वादन को अपना आदेशात्मक अधिकार समझने लगे थे। किसी भी आर्य स्त्री का उस समय तक विवाह नहीं हो सकता था, जब तक कि वह पूर्वास्वादन के अधिकार से अथवा देवों के नियंत्रण से मुक्त नहीं कर दी जाती थी। तकनीकि भाषा में इसे ‘अवदान’ कहते थे। ‘लाज होम’ अनुष्ठान प्रत्येक हिन्दू परिवार में किया जाता है जिसका विवरण 'आश्वालयन गृह्य सूत्र' में मिलता है। ‘लाज होम’ देवों द्वारा आर्य स्त्री को पूर्वास्वादन के अधिकार से मुक्त किए जाने का स्मृति चिन्ह है। ‘लाज होम’ में ‘अवदान’ एक ऐसा अनुष्ठान है, जो देवों के वधू के उपर अधिकार को समापन करता है।
सप्तपदी सभी हिन्दू विवाहों का सबसे अनिवार्य धर्मानुष्ठान है जिसके बिना हिन्दू विवाह को मानूनी मान्यता नहीं मिलती। सप्तपदी का देवों के पूर्वास्वादन के अधिकार से अंगभूत संबंध है। सप्तपदी का अर्थ है, वर का वधू के साथ सात कदम चलना।
यह क्यों अनिवार्य है? इसका उत्तर यह है कि यदि देव क्षतिपूर्ति से असंतुष्ट हो तो वे सातवे कदम से पहले दुल्हन पर अपना अधिकार जता सकते हैं। सांतवा फेरा लेने के बाद 'देवों' का अधिकार समाप्त हो जाता था और वर, वधू को ले जाकर दोनों पति और पत्नि की तरह रह सकते थे। इसके बाद देव न कोई अड़चन डाल सकते थे और न ही कोई छेड़कानी कर सकते थे(प्राचीन शासन प्रणालीः आर्यों की सामाजिक स्थितिः पृ. 20.21ः डॉ. बाबासाहब अम्बेडकर सम्पूर्ण वामय खण्ड- 7ः डॉ. अम्बेडकर प्रतिष्ठान प्रकाशन दिल्ली)।
आर्यों में लोगों का एक ऐसा वर्ग होता था, जिसे देव कहते थे, जो पद और पराक्रम में श्रेष्ठ माने जाते थे। अच्छी संतानोत्पत्ति के उद्देश्य से आर्य लोग देव वर्ग के किसी भी पुरुष के साथ अपनी स्त्रियों को संभोग करने की अनुमति देते थे। यह प्रथा इतने व्यापक रूप से प्रचलित थी कि देव लोग आर्य स्त्रियों के साथ पूर्वास्वादन को अपना आदेशात्मक अधिकार समझने लगे थे। किसी भी आर्य स्त्री का उस समय तक विवाह नहीं हो सकता था, जब तक कि वह पूर्वास्वादन के अधिकार से अथवा देवों के नियंत्रण से मुक्त नहीं कर दी जाती थी। तकनीकि भाषा में इसे ‘अवदान’ कहते थे। ‘लाज होम’ अनुष्ठान प्रत्येक हिन्दू परिवार में किया जाता है जिसका विवरण 'आश्वालयन गृह्य सूत्र' में मिलता है। ‘लाज होम’ देवों द्वारा आर्य स्त्री को पूर्वास्वादन के अधिकार से मुक्त किए जाने का स्मृति चिन्ह है। ‘लाज होम’ में ‘अवदान’ एक ऐसा अनुष्ठान है, जो देवों के वधू के उपर अधिकार को समापन करता है।
सप्तपदी सभी हिन्दू विवाहों का सबसे अनिवार्य धर्मानुष्ठान है जिसके बिना हिन्दू विवाह को मानूनी मान्यता नहीं मिलती। सप्तपदी का देवों के पूर्वास्वादन के अधिकार से अंगभूत संबंध है। सप्तपदी का अर्थ है, वर का वधू के साथ सात कदम चलना।
यह क्यों अनिवार्य है? इसका उत्तर यह है कि यदि देव क्षतिपूर्ति से असंतुष्ट हो तो वे सातवे कदम से पहले दुल्हन पर अपना अधिकार जता सकते हैं। सांतवा फेरा लेने के बाद 'देवों' का अधिकार समाप्त हो जाता था और वर, वधू को ले जाकर दोनों पति और पत्नि की तरह रह सकते थे। इसके बाद देव न कोई अड़चन डाल सकते थे और न ही कोई छेड़कानी कर सकते थे(प्राचीन शासन प्रणालीः आर्यों की सामाजिक स्थितिः पृ. 20.21ः डॉ. बाबासाहब अम्बेडकर सम्पूर्ण वामय खण्ड- 7ः डॉ. अम्बेडकर प्रतिष्ठान प्रकाशन दिल्ली)।
No comments:
Post a Comment