अंतर्राष्ट्रीय सपोर्ट
मुस्लिमों के विरुद्ध सतत उगलती घृणा पर आखिरकार मोदीजी को, एक-एक कर मुस्लिम राष्ट्राध्यक्षों को बताना पड़ा कि भारत में ऐसा कुछ नहीं हो रहा है। यह है अंतर्राष्ट्रीय दबाव।
हजारों, लाखों भारतीय इन मुस्लिम देशों में रोजी-रोटी के लिए काम करते हैं. अगर यहाँ मुस्लिमों के विरुद्ध घृणा फैलाई जाती है, उन पर अत्याचार होता है, तो हमारे भाई उन देशों में कैसे सुरक्षित रह सकते हैं ?
यही वही अंतर्राष्ट्रीय सपोर्ट है, जिसकी प्रत्याशा में बाबासाहब अम्बेडकर ने बुद्धिज़्म को चुना। हम यह नहीं कहते कि यही मात्र कारण है, किन्तु प्रमुख कारण है, इसमें संदेह नहीं।
जो लोग बाबासाहब के धर्मांतरण को कम आंकते हैं, या व्यक्ति को धर्म की जरुरत नहीं समझते उन्हें अपने कांसेप्ट को दुरुस्त करने की जरुरत है.
बौद्ध धर्म, नैतिकता का नाम है, जैसे कि बाबासाहब अम्बेडकर ने कहा. व्यक्ति अकेले है तो उसे नैतिकता की भी क्या जरुरत है ? नैतिकता की जरुरत तब पड़ती है जब परस्पर व्यवहार की बात आती है. अर्थात अगर व्यक्ति समाज में रहता है तो उसे नैतिकता अर्थात धर्म की जरुरत होगी।
मुस्लिमों के विरुद्ध सतत उगलती घृणा पर आखिरकार मोदीजी को, एक-एक कर मुस्लिम राष्ट्राध्यक्षों को बताना पड़ा कि भारत में ऐसा कुछ नहीं हो रहा है। यह है अंतर्राष्ट्रीय दबाव।
हजारों, लाखों भारतीय इन मुस्लिम देशों में रोजी-रोटी के लिए काम करते हैं. अगर यहाँ मुस्लिमों के विरुद्ध घृणा फैलाई जाती है, उन पर अत्याचार होता है, तो हमारे भाई उन देशों में कैसे सुरक्षित रह सकते हैं ?
यही वही अंतर्राष्ट्रीय सपोर्ट है, जिसकी प्रत्याशा में बाबासाहब अम्बेडकर ने बुद्धिज़्म को चुना। हम यह नहीं कहते कि यही मात्र कारण है, किन्तु प्रमुख कारण है, इसमें संदेह नहीं।
जो लोग बाबासाहब के धर्मांतरण को कम आंकते हैं, या व्यक्ति को धर्म की जरुरत नहीं समझते उन्हें अपने कांसेप्ट को दुरुस्त करने की जरुरत है.
बौद्ध धर्म, नैतिकता का नाम है, जैसे कि बाबासाहब अम्बेडकर ने कहा. व्यक्ति अकेले है तो उसे नैतिकता की भी क्या जरुरत है ? नैतिकता की जरुरत तब पड़ती है जब परस्पर व्यवहार की बात आती है. अर्थात अगर व्यक्ति समाज में रहता है तो उसे नैतिकता अर्थात धर्म की जरुरत होगी।
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