Wednesday, December 14, 2011

दामाजी पंत

दामाजी के बारे में मैंने, अपने गुरु बालकदास साहेब से सुना था।  गुरूजी अपने प्रवचन/कीर्तन में दामाजी प्रसंग पर एक बेहद मार्मिक वर्णन किया करते थे।

दामाजी, बिदर के बादशाह के यहाँ अनाज वसूली का काम करते थे। वे मुस्लिम बादशाह शासित  मंगलवेधा और उसके आस-पास के क्षेत्र के किसानों से बादशाह के लिए अनाज की वसूली करते थे। वसूल किये गए अनाज के भंडारण के लिए वहां एक बड़ा-सा गोदाम था। तब, मंगलवेधा और उसके आस-पास के क्षेत्र में भारी अकाल पड़ा था। अनाज और भोजन की त्राहि-त्राहि मची हुई थी. हजारों आदमी और मवेशी इस त्राहि से बेमौत मर रहे थे।

दामाजी बड़े दयालु स्वभाव के थे। एक बार भूख से व्याकुल एक गरीब ब्राह्मण को देख कर दामाजी को दया आ गई। दयालु स्वभाव-वश दामाजी ने कुछ अनाज उसकी झोली में डाल दिया। गरीब भूखा ब्राह्मण जब कुछ तृप्त हुआ तो वह एकाएक रोने लगा।  दामाजी के पूछने पर उसने बताया कि उसके घर में बाल-बच्चें कई दिनों से भूखें हैं। यह जान कर दामाजी ने अपने मातहत को कहा कि वह उसे पर्याप्त अनाज दे  दे।

दामाजी द्वारा दिया अन्नाज लेकर ब्राह्मण जब जाने लगा तब रास्तें में लोगों ने उसके पास काफी अनाज देख कर पूछा कि ये अनाज वे कहाँ से ला रहे हैं। तब, उसने दामाजी की दयालुता की बातें कह सुनाई। लोगों को दामाजी की सह्रदयता अच्छी लगी।  तब, वे भी दामाजी के पास जा कर याचना करने लगे कि उनके क्षेत्र में अकाल से लोग त्राहि-त्राहि कर रहे है. दामाजी को उनकी भी मदद करनी चाहिए। दामाजी ने अपने मातहत से कहा कि अनाज की कोठी से इनको भी कुछ अनाज दे दे।

इस बीच बादशाह के गुप्तचर विभाग ने ये सारी घटना बादशाह को लिख भेजी। गुप्तचर की रिपोर्ट पर बादशाह को बड़ा गुस्सा आया। बादशाह ने हकीकत जानने के लिए अपने एक कमांडर के साथ कुछ सैनिकों को रवाना किया। दामाजी ने कहा कि लोग अकाल की वजह से मर रहे थे।  उन्हें लोगों की भूख देखी नहीं गयी और उन्होंने  कोठी का कुछ अनाज बादशाह के पूछे बिना दे दिया। वे चाहे तो उन्हें गिरफ्तार करके बीदर ले जा सकते हैं। दामाजी ने विनंती किया कि हो सके तो उन्हें एक बार पंढरपुर में विठ्ठल-रुक्माई के दर्शन करने दिया जाए. सैनिक कमांडर ने दामाजी की विनंती पर एतराज नहीं किया।

दामाजी को पंढरपुर ले जाया गया। पंढरपुर में दामाजी ने चन्द्रभागा नदी में स्नान किया और विठ्ठल-रुक्मणी में पहुँच कर भगवान् से अपनी व्यथा कह सुनाई। दामाजी ने भगवान से कहा कि लोगों को भूख से तडपते देख उन्होंने वैसे किया जैसे उनको समझ में आया। भगवान को जो समझता हो, वैसा करे। दामाजी ने कहा कि हो सकता है, लौटकर वे पुन: मन्दिर में भगवान के दर्शन करने न आने पाएं।

उधर, बिदर बादशाह के दरबार में एक संदेशवाहक पहुंचता है। बादशाह को सलाम कर वह अपना नाम 'विठोबानाक  ' बताता है । युवक कहता है कि वह दामाजी का नौकर है । उसने बतलाया कि उसके पास रखे बोरों से भरे सिक्कें दामाजी ने भेजे हैं। युवक ने यह भी बताया कि दामाजी ने बादशाह के नाम एक चिट्ठी भेजी है। चिट्ठी पढ़ कर बादशाह खुश होते हैं ।  चिट्ठी में दामाजी लिखते हैं कि काफी लाभ पर बादशाह के कोठी का अनाज पंढरपुर के एक  व्यापारी को बेच दिया गया है जिसकी रकम उसके पास रखे बोरों में भरी है। बादशाह आदेश  देता है कि रकम प्राप्त कर रसीद नौकर के पास वापिस भिजवा दिया जाए।

इधर, दामाजी को हथकड़ी लगा कर बादशाह के सामने पेश किया गया।  बादशाह देख कर चकित रह जाते  हैं।  वे तुरंत अपने सैनिको को दामाजी की हथकड़ी खोलने का हुक्म देते हैं। वे दामाजी की चिट्ठी अपने दरबार में जोर से पढ़ कर सुनाते हैं। दामाजी समझ जाते हैं कि उनके विठ्ठल को उनके लिए 'विठोबानाक' बन कर बादशाह के दरबार में पेश होना पड़ा।

दामाजी, महाराष्ट्र के वारकरी सम्प्रदाय में एक बड़े संत के रूप में प्रसिद्द हैं। 'विकिपीडिया' में इनका नाम  दामाजी पंत देशपांडे(15  वीं  सदी ) और 'विठोबानाक' को 'महार' बताया गया है। अब पाठकों को 'गरीब ब्राह्मण' का कथानक समझ में आ रहा होगा । हमारे आस-पास ऐसे कई कथानक हैं जिस में 'ब्राह्मण देवता' को अगर गरीब भी दिखाना हो तो  एक 'गरीब ब्राह्मण' दिखा कर लोगों के दिलों-दिमाग में उसके प्रति श्रद्धा का भाव बरकरार रखा जाता है। दूसरे, इस कथानक से यह भी रहस्योदघाट्न होता है कि 'सूचना-संवाहक' के रूप में 'महार' सदियों से 'कोटवार' का काम करते रहे हैं।

पंढरपुर, जो विठोबा मंदिर के लिए प्रसिद्द है, महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में भीमा नदी के तट स्थित है । रमाबाई, बाबासाहब डा अम्बेडकर के पीछे काफी पड़ी थी कि उसे पंढरपुर में विठोबा के दर्शन करना है किन्तु बाबासाहब उन्हें हर बार  यह कह कर रोकते रहें कि जिस मंदिर में उन्हें प्रवेश करने की मनाही हो, उसके विठोबा उसका कौनसा भला कर सकते हैं ?  सनद रहे, बाबासाहब ने इस विठोबा की मूर्ति को बुद्ध की प्रतिमा बताया है जिसे परवर्तित काल  में ब्राह्मणों ने बुद्ध की अन्य प्रतिमाओं की तरह अपने किसी देवी-देवता की मूर्ति बता कर प्रचारित किया । 

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