Thursday, February 23, 2012

धर्मानातार्ण के प्रश्न पर डा. हरिसिंह गौर का डा. आंबेडकर को पत्र

बौध्द धर्मान्तरण के प्रश्न पर डा. हरिसिंह गौर का डा. आंबेडकर को पत्र
हिन्दुओं के व्यवहार से त्रस्त होकर सन 1935  में बाबासाहेब डा. आंबेडकर ने यवला में इस बात की घोषणा की थी कि वे हिन्दू धर्म, जिसमें वे पैदा हुए हैं, त्याग कर बौध्द धर्म की शरण चले जाएँगे। डा. आंबेडकर की इस घोषणा का बड़ा व्यापक असर हुआ था।  हिन्दू मठाधीशों के आलावा हिन्दू धर्म-दर्शन के अध्येयाताओं की नजर भी डा. आंबेडकर की घोषणा पर गई थी।  इनमें सागर विश्वविद्यालय के संस्थापक डा. हरिसिंह गौर भी थे।

विधि और धर्म-दर्शन के अध्येयता के तौर पर डा. हरिसिंह गौर, बाबासाहेब डा. आंबेडकर को भली-भांति जानते थे।  वे डा. आंबेडकर के दर्द और तडप को महसूस कर रहे थे। उन्होंने तुरंत एक पत्र डॉ अम्बेडकर को लिखा-

 "मैंने आपका यवला का भाषण पढ़ा है। आप हिन्दू धर्म से मुक्त होना चाहते हैं।  आज से 2500  वर्ष पूर्व महात्मा बुध्द ने भी इस बात का प्रतिकार किया था। बुध्द की धम्म-देशना का लोगों ने स्वागत किया। हिन्दू धर्म को भी इससे अपरिमित लाभ हुआ।  बुध्द के संदेश ने ब्राह्मणवाद से मुक्ति पाने का मार्ग प्रशस्त किया और समता, स्वतंत्रता तथा  बन्धुत्व के मार्ग पर चलने के लिए इस देश को अवसर मिला। निस्संदेह, बौध्द धर्म ही एकमात्र ऐसा धर्म है, जिसे स्वीकार किया जा सकता है।  इस पत्र के माध्यम से मैं आपको  'स्प्रिट आफ बुध्दिस्म' नामक एक पुस्तक भेज रहा हूँ।  धन्यवाद।"   -
-डा.हरिसिंह गौर.

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