'मध्य प्रान्त में दलित आन्दोलन का इतिहास' में कई जगह
(लेखक मुंशी एन एल खोब्रागडे) ओंकारदास बाम्बोर्ड़े का जिक्र किया है। वैसे भी, येरवाघाट के खिनाराम बोरकर और अपने पिताजी के द्वारा मैंने कई बार ओमकारदास बोम्बोर्ड़े का नाम सुन रखा था। अत : मेरे लिए यह कुतूहल का विषय तो था ही कि इस हस्ती के बारे में और मालूमात करूँ। मगर, कैसे ? यह अलग विषय है।
सनद रहे, 50 वे दशक में जब बाबा साहेब डा आंबेडकर दलितों के हक़ की लडाई लड़ रहे थे, तब बालाघाट जिले के लोग पूरी ताकत से डॉ आंबेडकर के हर आव्हान को घर-घर पहुंचा रहे थे। सिकन्दरा के वैद्यभूषण ओमकारदास बोम्बोर्ड़े ऐसे ही उन लाखों में एक थे जो जिला बालाघाट का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।
सिकन्दरा, बालाघाट जिले की तहसील वारासिवनी मुख्यालय से बिलकुल लगा हुआ. है। यह काफी बड़ा गाँव है। ओमकारदास बोम्बोर्ड़े बाद में यही आ कर बस गए थे। आप मूल रूप से ग्राम केराभांडी के रहने वाले थे।
Omkardas Bomborde RHS of Dr B R Ambedkar |
ओंकारदास जी के पिता का नाम तुलसीराम था। आपका जन्म 13 अप्रेल 1907 को हुआ था. पिता के घर लाख का धंधा था। इनकी खेती-बाड़ी भी थी। ओमकारदास बोम्बोर्ड़े को वैद्य राज के रूप में जाना जाता था। वे आयुर्वेद के वैद्याचार्य थे
ओंकार दास जी हमेशा सिर में टोपी, शरीर पर कोट-धोती और पैरों में चप्पल पहना करते थे। वे हमेशा साईकिल से चला करते थे। उस जमाने में आवागमन के इतने साधन नहीं थे। वे साईकिल से मीलों की दूरी तय करते थे। कार तो उस ज़माने में गाँव के पटेल/जागीरदारों के पास भी नहीं थी।
सन 1945 में नागपुर के कस्तूरचंद पार्क में बाबा साहेब डॉ आंबेडकर की एक बड़ी आम सभा हुई थी। इस सभा में हजारों-हजारों युवकों में वारासिवनी के ओमकारदास बोम्बोर्ड़े भी शरीक हुए थे। सभा से ओमकारदास बोम्बोर्ड़े अपने गृह जिला बालाघाट में सामाजिक-राजनैतिक आंदोलन करने का संकल्प लेकर लौटे थे। जल्दी ही ओंकारदास बोम्बोर्ड़े सामाजिक आन्दोलन के एक प्रतिष्ठित नेता माने जाने लगे थे. वे इस क्षेत्र में बाबा साहब डॉ आंबेडकर के सामाजिक-राजनैतिक आन्दोलन के प्रचार-प्रसार का काम ओंकारदास बोम्बोर्ड़े देखने लगे थे.
सन 1946 में ब्रिटिश सरकार ने जनता का बहुमत जानने के लिए आम चुनाव कराया था। इस समय गांधीजी के नेतृत्व में स्वतंत्रता आंदोलन अपनी चरम सीमा पर था। तब, बालाघाट जिले में कांग्रेस प्रत्याशी के विरुद्ध खड़े होने की किसी में हिम्मत नहीं हुआ करती थी। ऐसे समय वारासिवनी सामान्य सीट से कांग्रेस के नामी प्रत्याशी शंकरलाल तिवारी के विरुद्ध ओमकारदास बोम्बोर्ड़े निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर खड़े हुए थे। यद्यपि, अब तक बालाघाट जिले में 'शेड्यूल्ड कास्ट फेडेरेशन' का गठन नहीं हुआ था। तथापि, शेड्यूल्ड कास्ट के लोगों का यहाँ एक बड़ा दबदबा बन चूका था।
अपना नाम वापिस लिए जाने के लिए ओमकारदास बोम्बोर्ड़े पर भारी दबाव था। उन्हें पद और पैसे का प्रलोभन दिया जा रहा था। उन्हें जान से मारने की धमकी दी जा रही थी। कांग्रेस के जासूस चौबीसों घंटे उनका पीछा कर रहे थे। फार्म वापिस लिए जाने के एक दिन पूर्व ओमकारदास बोम्बोर्ड़े कांग्रेस के जासूसों को आँख में धूल झोंक कर गायब हो गए।
वे गोंदिया के कालीचरण नंदा गवली की लायब्रेरी में बैठे थे कि कांग्रेसी जासूस के टी दामले, नायब तहसीलदार पीछा करते हुए वहाँ पहुँच गया। के टी दामले जो कि खुद महार जाति का था , ओमकारदास बोम्बोर्ड़े के पैरों पर अपना सिर रख कर कहा कि वे अपना नॉमिनेशन फॉर्म वापिस ले ले। इसके एवज में उन्हें जो वह चाहेंगे , दिया जाएगा। कितु , यदि वे नाम वापिस नहीं लेते है तब, उनकी जान को भी खतरा हो सकता है।
इतना सुन कर बोम्बोर्ड़े जी पेशाब के बहाने कमरे से निकले और नंदागवली के लायब्रेरी की बाउन्ड्री वॉल कूद कर जंगल में गायब हो गए। वे तब लौट कर आए जब नामिनेशन फॉर्म वापसी का समय बीत चूका था। यद्यपि, ओमकारदास बोम्बोर्ड़े यह चुनाव हार गए किन्तु अपनी जान की परवाह न करते हुए उन्होंने जो अदम्य साहस और नेतृत्व का परिचय दिया, वह बेमिशाल है।
चुनाव के तत्काल बाद, दलित नेतृत्व के सवाल पर ओमकारदास बोम्बोर्ड़े ने ब्रिटिश शिष्ट-मंडल और डॉ आंबेडकर को तार भेज कर सूचित किया था कि डॉ आंबेडकर ही भारत में दलितों के सर्वमान्य नेता है। इस तार में बालाघाट जिले के जनता की अटूट निष्ठा डॉ आंबेडकर के प्रति व्यक्त की गई थी। तार पा कर डॉ आंबेडकर ने बापू साहब राजभोज, दादा साहेब गायकवाड़, बाबू हरिदास आवडे , पं. रेवाराम कवाडे आदि दलित नेताओं को 'शेड्यूल्ड कास्ट फेडेरेशन' की जिला शाखा का गठन करने बालाघाट भेजा था। अंतत: इसी वर्ष ओमकारदास बोम्बोर्ड़े के नेतृत्व में 'शेड्यूल्ड कास्ट फेडेरेशन' की बालाघाट जिला ईकाई का गठन हुआ।
सन 1951-52 के प्रथम आम चुनाव में कटंगी-राम पायली सुरक्षित सीट से शेड्यूल्ड कास्ट फेडेरेशन की ओर से ओमकारदास बोम्बोर्ड़े चुनाव लड़े और सर्वाधिक वोट प्राप्त कर बालाघाट जिले का सम्मान बढ़ाया था । शेड्यूल्ड कास्ट फेडेरेशन को ख़त्म कर बाबा साहब डॉ आंबेडकर के देहांत के बाद जब उनकी इच्छा के अनुरूप 3 अक्टू 1957 को रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इण्डिया का गठन किया गया तब रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इण्डिया जिला बालाघाट के अध्यक्ष ओमकारदास बोम्बोर्ड़े ही चुने गए थे।
बालाघाट जिले में दलित आंदोलन की अलख जगाने वाले समाज सुधारक/ राजनीतिज्ञ वैद्यभूषण सुधारक ओमकारदास बोम्बोर्ड़े का देहांत 04.01.1976 को हुआ था।
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