Saturday, November 30, 2013

कालीचरण नंदा गवली (Kalicharan Nandagavali)

     विदर्भ के सामाजिक आंदोलन में बाबा साहब डॉ आंबेडकर के उदय होने के पूर्व जिस दलित नेता की भूमिका अग्रणी थी, वे थे गोंदिया के कालीचरण नंदागवली। कालीचरण नंदागवली गोंदिया के मालगुजार थे।
      दलित और मालगुजार ?  कुछ अजीब लग सकता है ! मगर , यह अजीब नहीं था । यद्यपि, दलित का मतलब ही मार्जिनल क्लॉस है। परन्तु , ढूंढे से एकाध पटेल/ मालगुजार भी देखने मिल जाते हैं । उदहारण के लिए किरनापुर के पांडुरंग भिमटे जी।  भिमटे जी को मैं व्यक्तिगत रूप से जानता  हूँ।
बहरहाल,  नंदागवली जी घर से समृद्ध थे। वे एक समय गोंदिया नगरपालिका कमेटी के सदस्य रहे थे।  आपका जन्म महार परिवार में सन 1881  में हुआ था। उनका घराना कबीर पंथी था।  वे कबीर पंथ के महंत थे।
सन 1909-10 में कालीचरण नंदा गवली जी ने गोंदिया में सर्व-प्रथम लड़कियों का एक स्कूल खोला था। ध्यान रहे, उस ज़माने में लड़कियों को स्कूल भेजना अच्छा नहीं समझा जाता था। लड़कियों का यह स्कूल तब,  नंदागवली जी ने बिना किसी सहायता के खुद का पैसा लगा कर खोला था। समाज में जाग्रति लाने के उद्देश्य से कालीचरण नंदागवली ने ' चोखा मेला ' और  ' बिटाल विध्वंसक ' नामक  समाचार-पत्रों का प्रकाशन किया था ।
कालीचरण नंदा गवली सन 1920 से 1923 तक सी पी एंड बरार विधान मंडल के सदस्य रहे थे।  विधान मंडल का सदस्य रहते हुए कालीचरण नंदा गवली ने दलित समाज के हित के लिए अनेकों काम किये। आपने 13  अग  1923 को एक बिल प्रस्तुत किया था जिसमे यह मांग की गई थी कि सार्वजनिक स्थानों के उपयोग का अधिकार दलित समाज के लोगों को हो। यद्यपि, यह बिल विधान सभा में पारित नहीं हो पाया ।  किन्तु , ऐसा कर वे लोगों का ध्यान इस तरफ खींचने में सफल हुए थे ।
सन  1920  के दौरान नागपुर में कोल्हापुर के महाराजा छत्रपति साहू जी महाराज के अध्यक्षता में बहिष्कृत हितकारिणी सभा का जो अधिवेशन हुआ था , कालीचरण नंदा गवली उसके स्वागताध्यक्ष बनाए गए थे।
दलितों को राजनैतिक अधिकार प्राप्त होना चाहिए, इस उद्देश्य से विदर्भ से कालीचरण नंदा गवली ने सन 1919 में साउथबरो कमेटी  (1919) को ज्ञापन दिया था। विदित हो, इसी साउथबरो कमेटी के समक्ष,  जो 'गवर्नमेंट इण्डिया एक्ट 1935'  के लिए काम कर रही थी, डॉ आंबेडकर ने दलितों के लिए आरक्षण और पृथक चुनाव की मांग रखी थी। इसी तरह सायमन कमीशन(1928) जो संवैधानिक सुधारों के लिए भारत आया था, को भी नंदागवली जी ने दलितों के राजनैतिक अधिकारों के संबंध में ज्ञापन सौंपा था।

सामाज सुधार के क्षेत्र में उनके भारी योगदान को देखते हुए कालीचरण नंदा गवली को  कई मौकों पर पुरष्कृत किया गया।  सन 1923 में सी पी एंड बरार स्तर पर दलित समाज के एक बड़े अधिवेशन में उन्हें मान-पत्र भेट किया गया था। इसी अधिवेशन में एक दूसरा मान -पत्र दलित विद्यार्थी संघ की ओर से दिया गया था।  

सन 1935 के येवला में डॉ आंबेडकर की यह घोषणा कि 'वे हिन्दू धर्म में पैदा हुए है किन्तु , एक हिन्दू के रूप में वे मरेंगे नहीं' - पर कांग्रेस सहित तमाम राजनैतिक पार्टियां और सामाजिक-धार्मिक संस्थाएं सकते आ गई थी ।  चारों तरफ से डॉ आंबेडकर पर दबाव था कि वे अपनी बात पर पुनर्विचार करें। डॉ आंबेडकर की इस घोषणा पर उनके अपने बहुतेरे लोग भी उन के साथ नहीं थे। कांग्रेस पार्टी के लोग उन्हें तरह-तरह का प्रलोभन दे रहे थे ।  इसी प्रलोभन में कालीचरण नंदा गवली, हेमचन्द्र खांडेकर, गणेश आकाजी गवई, पांडुरंग नंदराम भटकर, तुलाराम साखरे जैसे कई बड़े-बड़े दलित नेताओं ने डॉ आंबेडकर का साथ छोड़ दिया था । कालीचरण नंदा गवली सन 1936  में कुछ साथियों के साथ कांग्रेस में चले गए थे।
इस तोड़-फोड़ में विदर्भ से राव साहब गंगाराम ठवरे एक प्रमुख हस्ती थे।  ठवरे के टूट कर कांग्रेस में चले जाने के कारण गोंदिया , बालाघाट और अन्य स्थानों में जितने भी महानुभाव पंथी थे, कांग्रेस में चले गए।  गोंदिया से धन्नालाल पटेल, पुरंदर वैद्य, कुशोबा पटेल, मंगलदास गजभिए, उदल मेश्राम।
 
उनका देहांत 1962  में हुआ था।

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