Thursday, January 23, 2014

प्रत्युत्पन्नमति


प्रत्युत्पन्नमति

 एक श्रेष्ठि की कन्या का नाम कुण्डलकेसी  था । वह असाधारण रूपवती थी। एक दिन उसने अपने घर की खिड़की से देखा कि राजा के सिपाही किसी युवक को हथकड़ी लगा कर ले जा रहे थे। शायद , उसने कोई अपराध किया था।

कुंडलकेसी ने यह दृश्य देखा। वह उस युवक पर मोहित हो गई । उसने अपने पिता से कहा कि वह उस युवक से शादी करना चाहती है। उसने पिता से कहा की कि अपने प्रभाव का उपयोग कर वह उस युवक को छुड़ाए । पुत्री- प्रेम ने पिता को द्रवित किया। पिता ने किसी तरह उस युवक को छुड़वा कर पुत्री का उससे विवाह करा दिया।

कुछ दिन बीतने के अनन्तर वह युवक पत्नी को पूजा के बहाने एक पर्वत  पर ले गया। एक स्थान पर रुक कर एकाएक उसने पत्नी से कहा कि वह उसे यहाँ क़त्ल करने लाया है। पति की बात सुनकर कुंडलकेसी अवाक रह गई। युवक ने आगे कहा- मगर , वह चाहता है कि मरने के पहले वह खुद अपने सारे गहने उतार कर उसके हवाले कर दे ।

कुंडलकेसी सुंदरता के साथ प्रत्योत्पन्नमति मति भी थी। उसने कूटनीति का सहारा लिया। उसने मरने के पहले पति की प्रदक्षिणा करने की याचना की। पति मान गया। सिर चुकाए और हाथ जोड़े वह पति की प्रदक्षिणा करने लगी। दो चक्कर और लगाने थे कि उसने पति की कमर पर जोर से धक्का दिया और दूसरे  क्षण वह पर्वत की चोटी से नीचे गहरी खाई में था ।

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