रोचक तथ्य
एक समय था कि दलित-आदिवासियों को कोई पूंछने वाला नहीं था। अंग्रेज, जात -पांत में विश्वास तो नहीं करते थे मगर , वे इस पचड़े में पड़ना भी नहीं चाहते थे। अंग्रेज इसे हिन्दुओं का आतंरिक मसला समझते थे। दूसरे , वे बहुसंख्यक हिन्दुओं को नाराज भी नहीं करना चाहते थे। आखिर उन्हें यहाँ शासन जो करना था।
मगर, यह एक रोचक तथ्य है कि डॉ. आंबेडकर के राष्ट्रीय राजनीति में आने के पूर्व ही दलित-आदिवासी चर्चा का विषय बन चुके थे।
हिन्दू , मुसलमानों को दबाने के चक्कर में अपनी आबादी को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया करते थे। घटना सन 1911 की है। मुस्लिम नेता आगा खां ने जनगणना आयुक्त को ज्ञापन सौंपा कि दलित-आदिवासी, हिन्दू नहीं हैं। दरअसल, हिन्दू स्थानीय और केंद्रीय निकायों में अपनी सीटें बढ़ाने के लिए उन्हें अपने में गिनते हैं। जबकि सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से वे उनसे पृथक है।
तत्संबंध में ज्ञापन सौंपते हुए आगा खां ने ब्रिटिश सरकार से गुजारिश की कि हिन्दुओं की जनसंख्या के आकड़ों से दलित-आदिवासियों को अलग किया जाए और फिर हिन्दुओं की जनसंख्या के उस अनुपात में मुसलमानों को प्रतिनिधित्व दिया जाए।
बात सही थी। मुस्लिम नेता की बात में दम था। आगा खां की बात मानली गई और इस प्रकार दलित, आदिवासी हिन्दुओं से अलग एक पृथक सामाजिक-सांस्कृतिक ईकाई के तौर राष्ट्रिय परिदृश्य में उभरें ।
एक समय था कि दलित-आदिवासियों को कोई पूंछने वाला नहीं था। अंग्रेज, जात -पांत में विश्वास तो नहीं करते थे मगर , वे इस पचड़े में पड़ना भी नहीं चाहते थे। अंग्रेज इसे हिन्दुओं का आतंरिक मसला समझते थे। दूसरे , वे बहुसंख्यक हिन्दुओं को नाराज भी नहीं करना चाहते थे। आखिर उन्हें यहाँ शासन जो करना था।
मगर, यह एक रोचक तथ्य है कि डॉ. आंबेडकर के राष्ट्रीय राजनीति में आने के पूर्व ही दलित-आदिवासी चर्चा का विषय बन चुके थे।
हिन्दू , मुसलमानों को दबाने के चक्कर में अपनी आबादी को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया करते थे। घटना सन 1911 की है। मुस्लिम नेता आगा खां ने जनगणना आयुक्त को ज्ञापन सौंपा कि दलित-आदिवासी, हिन्दू नहीं हैं। दरअसल, हिन्दू स्थानीय और केंद्रीय निकायों में अपनी सीटें बढ़ाने के लिए उन्हें अपने में गिनते हैं। जबकि सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से वे उनसे पृथक है।
तत्संबंध में ज्ञापन सौंपते हुए आगा खां ने ब्रिटिश सरकार से गुजारिश की कि हिन्दुओं की जनसंख्या के आकड़ों से दलित-आदिवासियों को अलग किया जाए और फिर हिन्दुओं की जनसंख्या के उस अनुपात में मुसलमानों को प्रतिनिधित्व दिया जाए।
बात सही थी। मुस्लिम नेता की बात में दम था। आगा खां की बात मानली गई और इस प्रकार दलित, आदिवासी हिन्दुओं से अलग एक पृथक सामाजिक-सांस्कृतिक ईकाई के तौर राष्ट्रिय परिदृश्य में उभरें ।
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