1 . जीवन में दुःख है।*
2 . दुःख का कारण (तृष्णा) है।
3 . दुःख दूर किया जा सकता है।
4 . और वह उपाय अर्थात तृष्णा का निरोध (आर्य-अष्टांगिक मार्ग का पालन) है।
…………………………………………
* इसका यह कतई मतलब नहीं कि जीवन में दुःख ही दुःख है। क्योंकि , ऐसा कहने से जीवन में जो आनंद है , उस पर प्रश्न -चिन्ह लग जाएगा। बुद्ध का मात्र यह कहना कि जीवन में सुख के साथ-साथ दुःख भी है।
(i) दुःख दो प्रकार के हैं -
(a) सांदृष्टिक (सांदिट्ठिक) दुःख - जो दुःख तृष्णा का हेतु है, जैसे लोभ, द्वेष , मोहादि।
(b) सम्परायिक दुःख - जो दुःख जन्म का हेतु है, जैसे मृत्यु , बुढ़ापा ।
*(ii) भगवान बुद्ध ने जिस दुःख को दूर करने की बात की है , वह 'सांदिट्ठिक दुःख' है।
2 . दुःख का कारण (तृष्णा) है।
3 . दुःख दूर किया जा सकता है।
4 . और वह उपाय अर्थात तृष्णा का निरोध (आर्य-अष्टांगिक मार्ग का पालन) है।
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* इसका यह कतई मतलब नहीं कि जीवन में दुःख ही दुःख है। क्योंकि , ऐसा कहने से जीवन में जो आनंद है , उस पर प्रश्न -चिन्ह लग जाएगा। बुद्ध का मात्र यह कहना कि जीवन में सुख के साथ-साथ दुःख भी है।
(i) दुःख दो प्रकार के हैं -
(a) सांदृष्टिक (सांदिट्ठिक) दुःख - जो दुःख तृष्णा का हेतु है, जैसे लोभ, द्वेष , मोहादि।
(b) सम्परायिक दुःख - जो दुःख जन्म का हेतु है, जैसे मृत्यु , बुढ़ापा ।
*(ii) भगवान बुद्ध ने जिस दुःख को दूर करने की बात की है , वह 'सांदिट्ठिक दुःख' है।
Maine aaj jaana apne dharma ko
ReplyDeleteThanx to mr. A.L. UKEY
thanks
Deletevery very correct
ReplyDeletevery very correct
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