Wednesday, June 25, 2014

चार आर्य सत्य

1 . जीवन में दुःख है।*
2 . दुःख का कारण (तृष्णा) है।
3 . दुःख दूर किया जा सकता है।
4 . और वह उपाय अर्थात तृष्णा का निरोध (आर्य-अष्टांगिक मार्ग का पालन) है।
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 * इसका यह कतई मतलब नहीं कि जीवन में दुःख ही दुःख है। क्योंकि , ऐसा कहने से जीवन में जो आनंद है , उस पर प्रश्न -चिन्ह लग जाएगा। बुद्ध का मात्र यह कहना  कि जीवन में सुख के साथ-साथ दुःख भी है।
(i) दुःख दो प्रकार के हैं -
(a) सांदृष्टिक (सांदिट्ठिक) दुःख  - जो दुःख तृष्णा का हेतु  है, जैसे लोभ, द्वेष , मोहादि।
(b)  सम्परायिक   दुःख - जो दुःख जन्म का हेतु है, जैसे  मृत्यु , बुढ़ापा ।
*(ii) भगवान बुद्ध ने जिस दुःख को दूर करने की बात की है , वह 'सांदिट्ठिक दुःख'  है।

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