Saturday, July 19, 2014

निस्वार्थ



बिड़ला जी की मृत्यु हुई तो उन्हें लेने यमराज के दूत आए . बिड़लाजी ने पूछा – कहाँ ले जा रहे हो ?  दूतों ने कहा- नरक में .
नरक में ?  आश्चर्य मिश्रित क्रोध में बिड़ला जी दूतों की ओर देखा.
फिर थोडा संयत हो कर कहा- तुम ऐसा कैसे कर सकते हो ?  मैंने कई ऐसे काम किए हैं कि नरक में जाने का सवाल ही पैदा नहीं होता .   दूतों ने कहा – हमें जो आदेश हुआ है , उसी का पालन कर रहे है . आप चाहे तो ऊपर बात कर सकते हैं .  
बिडला जी को वीआईपी सूट सहित भगवान् के दरबार में पेश किया गया . बिड़ला जी ने हाथ जोड़ कर विनंती की – भगवनआपके लिए मैंने बड़े-बड़े मन्दिर बनवाए हैं .
भगवान् ने चित्रगुप्त की ओर देखा . मगर , वे सब तो बिड़ला मन्दिर के नाम से जाने जाते हैं !
भगवन ,  मैंने कई अस्पताल और धर्मशालाएं भी तो बनाई हैं .
भगवान् ने फिर चित्रगुप्त की ओर देखा . मगर,  वे सब भी बिड़ला हास्पिटल , बिड़ला धर्मशाला के नाम से जाने जाते हैं ! - बहीखाते से बिना नजर हटाए चित्रगुप्त ने कहा।  
तब, भगवान् ने दरबार में पेश मृत्युलोक की उस बड़ी हस्ती की आँखों में झांकते हुए कहा – बिड़ला जी ऐसा कोई एक काम बतलाओ जो तुम ने निस्वार्थ भावना से किया हो ?
बिड़लाजी का सर नीचे झुका तो झुका ही रह गया .

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