बिड़ला जी की
मृत्यु हुई तो उन्हें लेने यमराज के दूत आए . बिड़लाजी ने पूछा – “कहाँ ले जा रहे हो ?” दूतों ने कहा- “नरक में .”
“नरक में ?” आश्चर्य मिश्रित क्रोध में बिड़ला जी दूतों
की ओर देखा.
फिर थोडा संयत हो
कर कहा- “तुम ऐसा कैसे कर सकते हो ? मैंने कई ऐसे काम किए हैं कि नरक में जाने का सवाल ही पैदा
नहीं होता .” दूतों ने कहा – “हमें जो आदेश हुआ है , उसी का पालन कर रहे है . आप चाहे तो ऊपर बात कर सकते हैं .”
बिडला जी को वीआईपी सूट सहित भगवान् के दरबार में पेश किया गया . बिड़ला जी ने हाथ जोड़ कर विनंती की –
“भगवन, आपके लिए मैंने बड़े-बड़े मन्दिर बनवाए हैं .”
भगवान् ने
चित्रगुप्त की ओर देखा . “मगर , वे सब तो बिड़ला मन्दिर के नाम से जाने जाते हैं !”
“भगवन , मैंने कई अस्पताल और धर्मशालाएं भी तो बनाई हैं .”
भगवान् ने फिर
चित्रगुप्त की ओर देखा . “मगर, वे सब भी बिड़ला हास्पिटल , बिड़ला धर्मशाला के नाम से जाने जाते हैं ! - बहीखाते से बिना नजर हटाए चित्रगुप्त ने कहा।
तब, भगवान् ने दरबार में पेश मृत्युलोक की उस बड़ी हस्ती की आँखों में झांकते हुए कहा – “बिड़ला जी ऐसा कोई एक काम बतलाओ जो तुम ने
निस्वार्थ भावना से किया हो ?”
बिड़लाजी का सर
नीचे झुका तो झुका ही रह गया .
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