Monday, July 21, 2014

ग़ज़ल

मुद्दत हुई जिन्हें खोजते मोमबत्ती ले-ले कर
वे मिले भी तो, बिजली के खम्बे के साये में ।

सोचा था मिलेंगे तो पूछूंगा हाल -ए- दिल
सामना भी हुआ मगर, तो दरख़्त के साये में।

इंतजार करते रहे कि कुछ बात होगी
रोशनी हुई तो देखा,  हम खड़े थे बूत के साये में ।

कि बोलने को तो बूत भी  बोलते हैं
हमें क्या पता था, हम खड़े हैं अज़नबी साये में।

होंठ हिले तो उन्होंने पूछा , तुम्हे कहीं देखा है
हमने भी कहा, देखा होगा किसी मासूक के साये में। 


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