क्या आप जानते हैं-
कि सारा ति-पिटक पालि-भाषा में है।
-कि बुद्ध-पूजा और ति-रत्न वन्दना, जो पालि में है, प्रत्येक बुद्धिस्ट प्रतिदिन अनिवार्य तौर पर करता है।
-कि धर्मान्तरण के बाद भारत में बुद्धिस्टों की संख्या करोड़ों तक पहुंच गई है।
-कि बुद्ध-विहार, जो गांव और शहर में करोड़ों की संख्या में हैं, बुद्ध-पूजा पालि में ही होती है।
-कि लद्दाख आदि क्षेत्रों में बसने वाले पारम्परिक बौद्धों की दैनिक बुद्ध वन्दना पालि में ही होती है।
-कि भारत के बाहर बुद्धिस्ट देशों में प्रतिदिन बुद्ध वन्दना पालि में ही होती है, भले ही लिपि अलग हो।
-कि भारत के बाहर गैर-बुद्धिस्ट देशों में बसे करोड़ों बुद्धिस्ट प्रतिदिन बुद्ध वन्दना पालि-भाषा में करते हैं, लिपि जो भी हो।
-कि भाषा, समाज की पहचान होती है, उसकी अस्मिता होती है।
-कि भाषा, समाज को एक खास दर्जा देती है, उसे एक मुकाम हासिल कराती है।
-कि लोगों को, अपनी भाषा पर गर्व होता है।
-कि पालि, बुद्ध की भाषा है। सारे बुद्ध वचन पालि में है। पालि बुद्धवाणी है। बाबासाहेब के अनुसार, बुद्ध हमारे आदर्श है। चूंकि बुद्धवचन पालि में है, इसलिए पालि हमारी भाषा है। पालि हमारी अस्मिता का प्रतीक है।
मगर, अजीब बात है कि पालि, हम बोल नहीं सकते?
-कि प्रतिदिन बुद्ध वन्दना हम पालि में करते हैं। धम्म वन्दना पालि में करते हैं। संघ वन्दना पालि में करते हैं। परित्राण-पाठ और अन्य सुत्तों का पठन-पाठन हम पालि में करते हैं। किन्तु, पालि हम बोल नहीं सकते!
-सम्राट अशोक के जितने भी शिला-लेख मिले हैं, सभी पालि में हैं। चाहे कश्मीर हो या कन्याकुमारी, कलकत्ता या मुम्बई। क्या यह इस बात का प्रमाण नहीं कि तब सारे भारत में, और इसके आस-पास के क्षेत्रों में, जहां तक सम्राट अशोक का साम्राज्य था, पालि जन-भाषा थी? लोक-भाषा थी। तभी तो अशोक अपने शिला-लेखों में धम्म-प्रचार का काम पालि में करते हैं?
-बुद्ध के समय भले ही पालि, मगध और इसके आस-पास के क्षेत्रा में बोली जाती रही हो, किन्तु सम्राट अशोक के काल में यह सारे वृहत्त भारत में बोली जाती थी।
इतिहास खंगालते हुए बाबासाहेब ने बतलाया है कि, हम पुराने बौद्ध ही हैं। धर्मान्तरण से हम कोई नया धर्म नहीं अपना रहे हैं।
निस्संदेह, तब पालि, हमारी भाषा थी। हम पालि में बात करते थे। ऐसी सरल और सुबोध भाषा का लोप भारत से क्यो हुआ? किसने किया? क्यों किया?
क्या आपको पता है-
-कि केन्द्र सरकार के अनुसार, पालि ‘मृत-भाषा’ है?
-कि केन्द्र शासन ने पालि को यूपीएससी (UPSC) से हटा दिया है?
-कि इसका कारण सरकार ने पालि के बोलने वालों का नगण्य होना बताया है?
-कि ‘भारतीय संस्कृति के संरक्षण’ के नाम पर भी सरकार पालि को संरक्षण देने तैयार नहीं है।
-कि बीते 2013 में हमारे कुछ लोगों द्वारा फेसबुक पर चलायी गई एक मुहीम 'Save Pali' धीरे-धीरे शांत होकर अब विस्मृत हो गई।
-अ. ला. उके
भ. बुद्धदत्त पालि पसिक्खण, संवद्धन पतिट्ठान
कि सारा ति-पिटक पालि-भाषा में है।
-कि बुद्ध-पूजा और ति-रत्न वन्दना, जो पालि में है, प्रत्येक बुद्धिस्ट प्रतिदिन अनिवार्य तौर पर करता है।
-कि धर्मान्तरण के बाद भारत में बुद्धिस्टों की संख्या करोड़ों तक पहुंच गई है।
-कि बुद्ध-विहार, जो गांव और शहर में करोड़ों की संख्या में हैं, बुद्ध-पूजा पालि में ही होती है।
-कि लद्दाख आदि क्षेत्रों में बसने वाले पारम्परिक बौद्धों की दैनिक बुद्ध वन्दना पालि में ही होती है।
-कि भारत के बाहर बुद्धिस्ट देशों में प्रतिदिन बुद्ध वन्दना पालि में ही होती है, भले ही लिपि अलग हो।
-कि भारत के बाहर गैर-बुद्धिस्ट देशों में बसे करोड़ों बुद्धिस्ट प्रतिदिन बुद्ध वन्दना पालि-भाषा में करते हैं, लिपि जो भी हो।
-कि भाषा, समाज की पहचान होती है, उसकी अस्मिता होती है।
-कि भाषा, समाज को एक खास दर्जा देती है, उसे एक मुकाम हासिल कराती है।
-कि लोगों को, अपनी भाषा पर गर्व होता है।
-कि पालि, बुद्ध की भाषा है। सारे बुद्ध वचन पालि में है। पालि बुद्धवाणी है। बाबासाहेब के अनुसार, बुद्ध हमारे आदर्श है। चूंकि बुद्धवचन पालि में है, इसलिए पालि हमारी भाषा है। पालि हमारी अस्मिता का प्रतीक है।
मगर, अजीब बात है कि पालि, हम बोल नहीं सकते?
-कि प्रतिदिन बुद्ध वन्दना हम पालि में करते हैं। धम्म वन्दना पालि में करते हैं। संघ वन्दना पालि में करते हैं। परित्राण-पाठ और अन्य सुत्तों का पठन-पाठन हम पालि में करते हैं। किन्तु, पालि हम बोल नहीं सकते!
-सम्राट अशोक के जितने भी शिला-लेख मिले हैं, सभी पालि में हैं। चाहे कश्मीर हो या कन्याकुमारी, कलकत्ता या मुम्बई। क्या यह इस बात का प्रमाण नहीं कि तब सारे भारत में, और इसके आस-पास के क्षेत्रों में, जहां तक सम्राट अशोक का साम्राज्य था, पालि जन-भाषा थी? लोक-भाषा थी। तभी तो अशोक अपने शिला-लेखों में धम्म-प्रचार का काम पालि में करते हैं?
-बुद्ध के समय भले ही पालि, मगध और इसके आस-पास के क्षेत्रा में बोली जाती रही हो, किन्तु सम्राट अशोक के काल में यह सारे वृहत्त भारत में बोली जाती थी।
इतिहास खंगालते हुए बाबासाहेब ने बतलाया है कि, हम पुराने बौद्ध ही हैं। धर्मान्तरण से हम कोई नया धर्म नहीं अपना रहे हैं।
निस्संदेह, तब पालि, हमारी भाषा थी। हम पालि में बात करते थे। ऐसी सरल और सुबोध भाषा का लोप भारत से क्यो हुआ? किसने किया? क्यों किया?
क्या आपको पता है-
-कि केन्द्र सरकार के अनुसार, पालि ‘मृत-भाषा’ है?
-कि केन्द्र शासन ने पालि को यूपीएससी (UPSC) से हटा दिया है?
-कि इसका कारण सरकार ने पालि के बोलने वालों का नगण्य होना बताया है?
-कि ‘भारतीय संस्कृति के संरक्षण’ के नाम पर भी सरकार पालि को संरक्षण देने तैयार नहीं है।
-कि बीते 2013 में हमारे कुछ लोगों द्वारा फेसबुक पर चलायी गई एक मुहीम 'Save Pali' धीरे-धीरे शांत होकर अब विस्मृत हो गई।
-अ. ला. उके
भ. बुद्धदत्त पालि पसिक्खण, संवद्धन पतिट्ठान
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