Friday, May 18, 2018

याज्ञवल्क्य-गार्गी

प्रश्न पर अंकुश लगाना अथवा तर्क को कुतर्क कहना यह इंगित करता है कि आप प्रश्न-कर्ता को चुप कराना चाहते हैं। बुद्ध ने सवालों पर अथवा तर्क/कुतर्क पर कभी अंकुश नहीं लगाया। बौद्ध-ग्रंथों में ऐसा प्रसंग नहीं मिलता। जो भी संवाद का प्रसंग हम देखते हैं, उसमे पाते हैं कि लोग प्रश्न करते गए और वे उत्तर देते गए।

बौद्ध मत से इतर जितने भी धर्म हैं, वे प्रश्न अथवा तर्क/कुतर्क को सहन नहीं करते. यह बौद्ध धर्म की विशेषता है कि वह सवालों को आमंत्रित करता है. वह तर्क और कुतर्क को आमंत्रित करता है। हिन्दुओं के बृहदारण्यक उपनिषद का एक उदाहरण दृष्टव्य है-

 ब्रम्ह के बारे में ऋषि याज्ञवल्क्य बतला रहे थे कि ब्रम्ह इसे कहते है.. कि ब्रम्ह उसे कहते है. किन्तु शिष्या  गार्गी है कि प्रश्न पर प्रतिप्रश्न कर रही थी.याज्ञवल्क्य को क्रोध आ गया. क्रोधावेश में मुनि ने कहा- गार्गी, आगे प्रश्न करोगी तो तेरे सिर के दो टुकडें हो जाएँगे(दर्शन-दिग्दर्शन:राहुल सांकृत्यायन) । 

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