Tuesday, May 29, 2018

भिक्खु की नांव

जिस तरह विश्व में बौद्ध धर्म फैला, वह कोई सहज बात नहीं थी। यह ऐतिहासिक सत्य है कि इसमें भिक्खुओं का अतुलनीय योगदान था। सम्राट असोक ने धम्म प्रचार के निमित्त जिन भिक्खुओं के दलों को अपना राज प्रतिनिधि के बतौर सुदूर देशों में भेजा था, यह प्रेरणा आगे भी जारी रही। बौद्ध भिक्खु घर-घर जा कर धम्म प्रचार करते थे। जब वे विदेश जाते,  अपने साथ ये भिक्खु धम्म का विशाल साहित्य भी साथ  ले जाते थे।

घटना उस समय की है जब जहाज नहीं थे। लोग लकड़ी के बड़े-बड़े  तख्तों से बनी नौका पर समुद्री मार्ग से निकला करते थे। एक बार चार भिक्खु नांव में बैठे समुद्र पार कर रहे थे। किन्तु धम्म ग्रंथों के बक्सों का भार अधिक होने से नांव डगमगाने लगी।  स्थिति की गंभीरता देख एक भिक्खु ने सुझाव दिया कि कुछ बक्सों को पानी में फैंक दिया जाए ताकि वजन कुछ कम हो।

किन्तु दूसरे भिक्खु ने इसका विरोध करते हुए कहा कि ये धम्म-ग्रन्थ अमूल्य हैं।  ये ग्रन्थ जहाँ भी जाएंगे, लाखों लोगों का जीवन-मार्ग बदल देंगे, उनका कल्याण करेंगे। मुझे लगता है कि मेरे जीवन के आगे इन बेश-कीमती ग्रंथों का सुरक्षित रहना ज्यादा अहम है और फिर,  मुझे आज नहीं तो कल मरना ही है। और यह कह कर उस भिक्खु ने बिना इन्तजार किए कि उसके साथी भिक्खु क्या कहते हैं, छपाक से पानी में छलांग लगा दी। इसके साथ ही दूसरा भिक्खु भी पहले वाले भिक्खु का अनुमोदन करते हुए समुद्र की अतल गहराई में कूद पड़ा । अब लकड़ी के तख्तों की नांव मंथर गति से आगे बढ़ने लगी थी । 

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