दलित-आन्दोलन के इतिहास में बी श्याम सुन्दर का नाम, बाबा साहेब डा. भीमराव आम्बेडकर के बाद बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है. आपके कार्यों की सराहना करते हुए 'दलित वायस' के सम्पादक राजशेखर ने आपको 'भारतीय दलित-आन्दोलन' के जनक कहा है.
बी श्याम सुन्दर का जन्म 21 दिस 1908 को महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में हुआ था स्मरण रहे, औरंगाबाद तब, निजाम हैदराबाद के शासन का हिस्सा हुआ करता था.इनके पिता का नाम बी मनिचम और माँ का नाम सुधा था.
श्याम सुन्दर पढने-लिखने में कुशाग्र बुध्दि के थे.उन्होंने हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय से वकालत की डिग्री पास की थी.वे विद्यार्थी जीवन से ही राजनीति में उतर आये थे. उन्हें कालेज लाइफ में ही 'आल इण्डिया डिप्रेस्ड क्लास असोसिएशन' के विद्यार्थी शाखा का महासचिव चुना गया था. वे सन 1947 में इसके प्रथम राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे.
श्याम सुन्दर एक सामाजिक-चिन्तक,सफल लेखक, संसदीय प्रणाली के ज्ञाता और क्रन्तिकारी नेतृत्व के धनी थे.वे मैसूर और आंध्र प्रदेश की विधायिका के सदस्य रहे थे.
वह श्याम सुन्दर ही थे जिन्होंने सर्व प्रथम, इस देश के अन्दर 'दलित-मुस्लिम एकता' की नींव रखी थी.उन्होंने दलितों को आव्हान किया की वे एक बड़ी ताकत के रूप में उभरने के लिए पिछड़ी-जातियों और मुसलमानों के साथ हाथ मिलाये.वे जितने शोषित-पीड़ित जातियों के अधिकारों के लिए चिंतित थे, उतने ही देश के मुसलमानों के अधिकारों के लिए भी चिंतित थे.आपने सन 1937 में 'दलित-मुस्लिम एकता' का एक बड़ा आन्दोलन चलाया था.मास्टर तारासिंह की मदद से 13 अक्टू. सन 1956 में आपने 'आल इण्डिया फेडरल असोसिएशन आफ मायनोरिटिज' की स्थापना की थी.लखनऊ (उ.प्र.) में 12-13 अक्टू. सन 1968 में इसी के बेनर तले दलितों के साथ अल्प-संख्यकों और पिछड़ों का सम्मेलन आयोजित किया गया.यह सम्मेलन श्याम सुन्दर की अध्यक्षता में हुआ था. वहां उन्होंने अल्प-संख्यकों को 'भारत हमारा है' का नारा दिया था.सम्मेलन में आपने बड़े राज्यों यथा उ.प्र.,राज., म.प्र. ,महाराष्ट्र,आंध्र.-प्रदेश, बिहार को दो या दो से अधिक भागों में बांटने का सुझाव दिया था.
श्याम सुन्दर ने डा. आम्बेडकर के 77 वे जन्म दिवस की संध्या पर कर्नाटक के गुलबर्ग में 'भीम सेना' नामक एक स्वेच्छिक सैनिक-बल का निर्माण किया था. इस अवसर पर आपने बोलते हुए कहा था, हिन्दुओं, जागो ! अब यहाँ 'भीम सेना' आ गई है.भीम सेना के बेनर तले अब हम अपने पैरों पर खड़े रह कर मरना पसंद करेंगे बजाए घुटनों पर झुकने के. श्याम सुन्दर ने गरजते हुए कहा था कि दलित इस देश के मूल निवासी हैं और की वे पैदाईशी बौध्द हैं न की हिन्दू. श्याम सुन्दर के इस आग उगलते वक्तव्य को राष्ट्रीय मिडिया ने गम्भीरता से लिया था और 'प्रेस काउंसिल आफ इण्डिया' को शिकायत की थी.श्याम सुन्दर के अनुसार, 'भीम सेना', स्वत: की सुझबुझ रखने वाला एक स्व-रक्षात्मक बल था.यह संगठन आत्म-निर्भरता और आत्म-सम्मान की भावना से अंतर्भूत था.यह सत्य और अहिंसा पर आधारित आन्दोलन था.दलित-मुस्लिम और दलित-पिछड़ों के एकता की हिमायती 'भीम सेना' की शाखाएँ बड़ी जल्दी पूरे देश में फैली. फंडामेंटेलिस्ट हिन्दू इससे दहशत खाने लगे थे.
श्याम सुन्दर का कहना था कि शोषित-पीड़ित और सताए गए अच्छूत, इस देश के मूल निवासी हैं, जो कभी बुद्धिस्ट हुआ करते थे.चूँकि, ये लोग यहाँ के मूल निवासी हैं अत: इस देश पर शासन करने का अधिकार उनका है.श्याम सुन्दर की इसी सोच का परिणाम था कि शोषित-पीड़ित जातियों में अपने अधिकारों के प्रति चेतना का प्रसार हुआ.उन्होंने दलितों से कहा कि वे इस देहस के मुसलमानों के साथ हिन्दुओं की वर्ण और जाति-व्यवस्था के विरुध्द निर्णायक लड़ाई लड़ सकते हैं.वास्तव में, श्याम सुन्दर ने दलित-मुस्लिम एकता को दोनों समुदायों के बीच एक सामाजिक आन्दोलन के रूप में देखा.
हिन्दू धर्म में छुआछूत हैं जिसमे कुछ जातियों को अछूत घोषित किया गया हैं.इन्हीं जातियों को महात्मा गाँधी ने 'हरिजन' कहा था.भारतीय संविधान में इन्हीं जातियों को 'अनु. जातियां' कहा गया.परन्तु , श्याम सुन्दर ने पहले दिन से ही कहना शुरू किया कि वे हिन्दू नहीं हैं और उनको हिन्दू जाति या वर्ण-व्यवस्था से कोई लेना-देना नहीं हैं.ये हिन्दू ही थे जिन्होंने अपने स्वार्थ के लिए उनके लोगों को अपने में समाहित किया.
श्याम सुन्दर बड़े तीखे वक्ता थे. उनके भाषण आग उगलते थे.उन्होंने हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू में कई लेख और पुस्तकें लिखी.श्याम सुन्दर ने हिन्दू जाति-व्यवस्था के विरुध्द इस देश के अन्दर और बाहर एक बड़ा जेहाद खड़ा किया था.
श्याम सुन्दर को 'संयुक्त राष्ट्र संघ' में निजाम हैदराबाद की ओर से अनु. जातियों की ओर से अपनी बात रखने का अवसर मिला था. उन्होंने सित. 1948 में 'संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद्' को सम्बोधित किया था. उन्होंने देश के करोड़ों दलितों की दुखद और कारुणिक अमानवीय स्थिति को अंतरराष्ट्रीय जगत के सामने सटीक और जोरदार ढंग से प्रस्तुत किया.वे जब विदेश के दौरे पर थे और जब निजाम हैदराबाद को भारत-संघ में मिलाने के लिए दबाव बनाया जा रहा था, बी. श्याम सुन्दर अपना यूरोपीयन दौरा रद्द कर वापिस स्वदेश आ गए थे. तब, भारत सरकार ने उन्हें नज़र बंद कर लिया था.
एक दूरदर्शी नेता के रूप में श्याम सुन्दर ने संयुक्त राष्ट्र संघ से अपील की वह भारत के दलितों के पृथक-स्थान के लिए हस्तक्षेप करे.दूसरे, वह plesbicite कराये की कितने दलित इस देश में रहना चाहते हैं. अपनी पुस्तक 'They Burn'(DSA publication) में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ के Human Rights's Charter का हवाला दे कर कहा की इस देश के 16 करोड़ दलितों के अमानवीय जीवन को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ को कुछ करना चाहिए.
श्याम सुन्दर ने सरोजिनी नायडू के द्वारा चलाये गए 'स्वदेशी आन्दोलन' में नेतृत्व किया था. इसके वे आंध्र-प्रदेश शाखा के महासचिव थे.श्याम सुन्दर ने भूमि सुधार का एक बड़ा सशक्त आन्दोलन चलाया. अनु. जाति-जन जातियों के पास जमीन नहीं है.उनकी सोच थी कि शासन की फालतू पड़ी जमीन इनके बीच बाँट दिया जाये.उन्होंने भूमि सुधार के कई बिल पेश किये.
26 जन. सन 1968 में महाराष्ट्र के नांदेड में आल इण्डिया शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन का श्याम सुन्दरजी की अध्यक्षता में अधिवेशन हुआ था.अपने अध्यक्षीय भाषण में श्याम सुन्दर जी ने गरजते हुए कहा कि दक्षिण अफ्रीका की रंगभेद नीति रेसियल है जबकि भारत में दलित जातियों के साथ बरती जा रही छुआछूत हिन्दू धर्म की उपज है.यह धर्म-सम्मत छुआछूत पिछले 3,000 वर्षों के बेरोक-टोक के चल रही है.आजादी के बाद, संविधान में यद्यपि इसे गैर-क़ानूनी करार दिया गया है मगर, आज भी हिन्दू इसे बिना रोक-टोक के मानते हैं. अपने भाषण में श्याम सुन्दर ने कहा की वे इस फेडरेशन के माध्यम से अपनी चार मांगे केंद्र सरकार के सामने रखते हैं- 1.यह कि दलितों के बसने के लिए पृथक स्थान 'दलितस्तान' हो. 2. उनके लिए पृथक चुनाव की व्यवस्था हो. 3.उनकी शिक्षा और संस्कृति के संरक्षण हेतु पृथक शैक्षिणक संस्थान (पीपुल्स एजुकेशन सोसायटी) हो. 4. इन शैक्षणिक संस्थाओं का प्रबंधन भारत शासन द्वारा अनुसूचित जातियों के लिए स्थापित एक ट्रस्ट करे.
बाबा साहेब आम्बेडकर ने जो 'पीपुल्स एजुकेशन सोसायटी' की स्थापना की थी और जिसके तहत औरंगाबाद में सर्व प्रथम मिलिंद कालेज खोला गया था को श्याम सुन्दर ने मदद की थी. वे सन 1964-66 की अवधि में सोसायटी के सदस्य रहे.स्मरण रहे,इस सोसायटी को निजाम हैदराबाद ने भी 200 एकड़ जमीन दान देकर मदद की थी.
श्याम सुन्दर जैसे क्रन्तिकारी कभी-कभी पैदा होते हैं.वे ताउम्र अविवाहित रहे.उन्होंने शराब का कभी सेवन नहीं किया.वे कठोर अनुशासन प्रिय थे.उनका चरित्र बेदाग़ था. उनका पूरा जीवन सादगी और सच्चाई से भरा था.श्याम सुन्दर जीवन के दिनों में वे अपनी बहन के पास हैदराबाद में रहे और वाही अन्तिम साँस ली.
बी श्याम सुन्दर का जन्म 21 दिस 1908 को महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में हुआ था स्मरण रहे, औरंगाबाद तब, निजाम हैदराबाद के शासन का हिस्सा हुआ करता था.इनके पिता का नाम बी मनिचम और माँ का नाम सुधा था.
श्याम सुन्दर पढने-लिखने में कुशाग्र बुध्दि के थे.उन्होंने हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय से वकालत की डिग्री पास की थी.वे विद्यार्थी जीवन से ही राजनीति में उतर आये थे. उन्हें कालेज लाइफ में ही 'आल इण्डिया डिप्रेस्ड क्लास असोसिएशन' के विद्यार्थी शाखा का महासचिव चुना गया था. वे सन 1947 में इसके प्रथम राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे.
श्याम सुन्दर एक सामाजिक-चिन्तक,सफल लेखक, संसदीय प्रणाली के ज्ञाता और क्रन्तिकारी नेतृत्व के धनी थे.वे मैसूर और आंध्र प्रदेश की विधायिका के सदस्य रहे थे.
वह श्याम सुन्दर ही थे जिन्होंने सर्व प्रथम, इस देश के अन्दर 'दलित-मुस्लिम एकता' की नींव रखी थी.उन्होंने दलितों को आव्हान किया की वे एक बड़ी ताकत के रूप में उभरने के लिए पिछड़ी-जातियों और मुसलमानों के साथ हाथ मिलाये.वे जितने शोषित-पीड़ित जातियों के अधिकारों के लिए चिंतित थे, उतने ही देश के मुसलमानों के अधिकारों के लिए भी चिंतित थे.आपने सन 1937 में 'दलित-मुस्लिम एकता' का एक बड़ा आन्दोलन चलाया था.मास्टर तारासिंह की मदद से 13 अक्टू. सन 1956 में आपने 'आल इण्डिया फेडरल असोसिएशन आफ मायनोरिटिज' की स्थापना की थी.लखनऊ (उ.प्र.) में 12-13 अक्टू. सन 1968 में इसी के बेनर तले दलितों के साथ अल्प-संख्यकों और पिछड़ों का सम्मेलन आयोजित किया गया.यह सम्मेलन श्याम सुन्दर की अध्यक्षता में हुआ था. वहां उन्होंने अल्प-संख्यकों को 'भारत हमारा है' का नारा दिया था.सम्मेलन में आपने बड़े राज्यों यथा उ.प्र.,राज., म.प्र. ,महाराष्ट्र,आंध्र.-प्रदेश, बिहार को दो या दो से अधिक भागों में बांटने का सुझाव दिया था.
श्याम सुन्दर ने डा. आम्बेडकर के 77 वे जन्म दिवस की संध्या पर कर्नाटक के गुलबर्ग में 'भीम सेना' नामक एक स्वेच्छिक सैनिक-बल का निर्माण किया था. इस अवसर पर आपने बोलते हुए कहा था, हिन्दुओं, जागो ! अब यहाँ 'भीम सेना' आ गई है.भीम सेना के बेनर तले अब हम अपने पैरों पर खड़े रह कर मरना पसंद करेंगे बजाए घुटनों पर झुकने के. श्याम सुन्दर ने गरजते हुए कहा था कि दलित इस देश के मूल निवासी हैं और की वे पैदाईशी बौध्द हैं न की हिन्दू. श्याम सुन्दर के इस आग उगलते वक्तव्य को राष्ट्रीय मिडिया ने गम्भीरता से लिया था और 'प्रेस काउंसिल आफ इण्डिया' को शिकायत की थी.श्याम सुन्दर के अनुसार, 'भीम सेना', स्वत: की सुझबुझ रखने वाला एक स्व-रक्षात्मक बल था.यह संगठन आत्म-निर्भरता और आत्म-सम्मान की भावना से अंतर्भूत था.यह सत्य और अहिंसा पर आधारित आन्दोलन था.दलित-मुस्लिम और दलित-पिछड़ों के एकता की हिमायती 'भीम सेना' की शाखाएँ बड़ी जल्दी पूरे देश में फैली. फंडामेंटेलिस्ट हिन्दू इससे दहशत खाने लगे थे.
श्याम सुन्दर का कहना था कि शोषित-पीड़ित और सताए गए अच्छूत, इस देश के मूल निवासी हैं, जो कभी बुद्धिस्ट हुआ करते थे.चूँकि, ये लोग यहाँ के मूल निवासी हैं अत: इस देश पर शासन करने का अधिकार उनका है.श्याम सुन्दर की इसी सोच का परिणाम था कि शोषित-पीड़ित जातियों में अपने अधिकारों के प्रति चेतना का प्रसार हुआ.उन्होंने दलितों से कहा कि वे इस देहस के मुसलमानों के साथ हिन्दुओं की वर्ण और जाति-व्यवस्था के विरुध्द निर्णायक लड़ाई लड़ सकते हैं.वास्तव में, श्याम सुन्दर ने दलित-मुस्लिम एकता को दोनों समुदायों के बीच एक सामाजिक आन्दोलन के रूप में देखा.
हिन्दू धर्म में छुआछूत हैं जिसमे कुछ जातियों को अछूत घोषित किया गया हैं.इन्हीं जातियों को महात्मा गाँधी ने 'हरिजन' कहा था.भारतीय संविधान में इन्हीं जातियों को 'अनु. जातियां' कहा गया.परन्तु , श्याम सुन्दर ने पहले दिन से ही कहना शुरू किया कि वे हिन्दू नहीं हैं और उनको हिन्दू जाति या वर्ण-व्यवस्था से कोई लेना-देना नहीं हैं.ये हिन्दू ही थे जिन्होंने अपने स्वार्थ के लिए उनके लोगों को अपने में समाहित किया.
श्याम सुन्दर बड़े तीखे वक्ता थे. उनके भाषण आग उगलते थे.उन्होंने हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू में कई लेख और पुस्तकें लिखी.श्याम सुन्दर ने हिन्दू जाति-व्यवस्था के विरुध्द इस देश के अन्दर और बाहर एक बड़ा जेहाद खड़ा किया था.
श्याम सुन्दर को 'संयुक्त राष्ट्र संघ' में निजाम हैदराबाद की ओर से अनु. जातियों की ओर से अपनी बात रखने का अवसर मिला था. उन्होंने सित. 1948 में 'संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद्' को सम्बोधित किया था. उन्होंने देश के करोड़ों दलितों की दुखद और कारुणिक अमानवीय स्थिति को अंतरराष्ट्रीय जगत के सामने सटीक और जोरदार ढंग से प्रस्तुत किया.वे जब विदेश के दौरे पर थे और जब निजाम हैदराबाद को भारत-संघ में मिलाने के लिए दबाव बनाया जा रहा था, बी. श्याम सुन्दर अपना यूरोपीयन दौरा रद्द कर वापिस स्वदेश आ गए थे. तब, भारत सरकार ने उन्हें नज़र बंद कर लिया था.
एक दूरदर्शी नेता के रूप में श्याम सुन्दर ने संयुक्त राष्ट्र संघ से अपील की वह भारत के दलितों के पृथक-स्थान के लिए हस्तक्षेप करे.दूसरे, वह plesbicite कराये की कितने दलित इस देश में रहना चाहते हैं. अपनी पुस्तक 'They Burn'(DSA publication) में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ के Human Rights's Charter का हवाला दे कर कहा की इस देश के 16 करोड़ दलितों के अमानवीय जीवन को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ को कुछ करना चाहिए.
श्याम सुन्दर ने सरोजिनी नायडू के द्वारा चलाये गए 'स्वदेशी आन्दोलन' में नेतृत्व किया था. इसके वे आंध्र-प्रदेश शाखा के महासचिव थे.श्याम सुन्दर ने भूमि सुधार का एक बड़ा सशक्त आन्दोलन चलाया. अनु. जाति-जन जातियों के पास जमीन नहीं है.उनकी सोच थी कि शासन की फालतू पड़ी जमीन इनके बीच बाँट दिया जाये.उन्होंने भूमि सुधार के कई बिल पेश किये.
26 जन. सन 1968 में महाराष्ट्र के नांदेड में आल इण्डिया शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन का श्याम सुन्दरजी की अध्यक्षता में अधिवेशन हुआ था.अपने अध्यक्षीय भाषण में श्याम सुन्दर जी ने गरजते हुए कहा कि दक्षिण अफ्रीका की रंगभेद नीति रेसियल है जबकि भारत में दलित जातियों के साथ बरती जा रही छुआछूत हिन्दू धर्म की उपज है.यह धर्म-सम्मत छुआछूत पिछले 3,000 वर्षों के बेरोक-टोक के चल रही है.आजादी के बाद, संविधान में यद्यपि इसे गैर-क़ानूनी करार दिया गया है मगर, आज भी हिन्दू इसे बिना रोक-टोक के मानते हैं. अपने भाषण में श्याम सुन्दर ने कहा की वे इस फेडरेशन के माध्यम से अपनी चार मांगे केंद्र सरकार के सामने रखते हैं- 1.यह कि दलितों के बसने के लिए पृथक स्थान 'दलितस्तान' हो. 2. उनके लिए पृथक चुनाव की व्यवस्था हो. 3.उनकी शिक्षा और संस्कृति के संरक्षण हेतु पृथक शैक्षिणक संस्थान (पीपुल्स एजुकेशन सोसायटी) हो. 4. इन शैक्षणिक संस्थाओं का प्रबंधन भारत शासन द्वारा अनुसूचित जातियों के लिए स्थापित एक ट्रस्ट करे.
बाबा साहेब आम्बेडकर ने जो 'पीपुल्स एजुकेशन सोसायटी' की स्थापना की थी और जिसके तहत औरंगाबाद में सर्व प्रथम मिलिंद कालेज खोला गया था को श्याम सुन्दर ने मदद की थी. वे सन 1964-66 की अवधि में सोसायटी के सदस्य रहे.स्मरण रहे,इस सोसायटी को निजाम हैदराबाद ने भी 200 एकड़ जमीन दान देकर मदद की थी.
श्याम सुन्दर जैसे क्रन्तिकारी कभी-कभी पैदा होते हैं.वे ताउम्र अविवाहित रहे.उन्होंने शराब का कभी सेवन नहीं किया.वे कठोर अनुशासन प्रिय थे.उनका चरित्र बेदाग़ था. उनका पूरा जीवन सादगी और सच्चाई से भरा था.श्याम सुन्दर जीवन के दिनों में वे अपनी बहन के पास हैदराबाद में रहे और वाही अन्तिम साँस ली.