एस. जया; कर्नूल (आन्ध्र प्रदेश)
तेरी कूची से निकली तस्वीर तो नहीं हूँ मैं
कि तुम रंग भरो और मैं मुस्कराने लगूँ
तीन दशकों की धूप-छावं में रहे साथ
फिर भी एक-दूसरे को नहीं जानते
टटोलते ललखडाते चल रहे हैं साथ.
* * * * * *
मंदरपु हेमवती; विजयवाडा (आन्ध्र प्रदेश)
कवि और चित्रकार के लिए
स्त्री एक देह है
वर्णन करने लायक वस्तु
चल-चित्रों और विज्ञापनों की पूँजी
औरत का अंग-प्रत्यंग.
* * * * * *
सुखविन्दर अमृत लुधियाना (पंजाब)
शुभ चिन्तक
उसने मेरे पंख काट कर कहा-
देख, मैंने तुम्हें थोडा-सा संवारा
और तुम, कितनी सुन्दर हो गई.
* * * * * *
जयदेव पट्टी (दरभंगा)
रास्ते पर चलती हुई लड़की खुद को सम्भालना पड़ता है
एक अजूबा होती है हजार फब्तियों की ओट से
लज्जा से सर झुकाए अपने को लुकाना/छिपाना पड़ता है
एक मूक मूरत हजार क़दमों की रफ़्तार से
जिसे हजार आँखों के इशारों से अपने को दौडाना पड़ता है
* * * * * *
मल्लिका सेन गुप्ता; कोलकता subodhmallika @yahooo.com
ओ आदमी,
मैंने कभी नहीं उठाई बाहें
तुम्हारे खिलाफ
जब तुमने मेरी कोख चिरी
और लगा दिया खून का सिन्दूर
मुझे दर्द महसूस हुआ
पर मैंने तुम्हे नहीं बताया
* * * * * *
तसलीमा नसरीन taslima.nasreen@gmail.कॉम
युवावस्था
प्रकृति का कोई भी प्राणी पुरुष खोजता है, कुँवारी लड़कियों को
मादा के जन्म को, गैर मुनासिब नहीं मानता कि कर सके, उनकी चिर-फाड़
केवल मनुष्य ही मानता है कोई, प्यार के नाम पर
इसे विचित्र तो कोई, ब्याह के नाम पर
* * * * * *
इसलिए मेरी यात्राएं
लक्ष्मण-रेखा के भीतर स्वतंत्र हूँ
खिलते है मेरे विचार सिर्फ साँस लेने को
खड़ी होने पर, रौंदता हैं आकाश इसलिए
जितना भी रेंगले जिन्दा हूँ , अब भी
वृत्त में ही, ख़त्म होती है
* * * * * *
डा.प्रतीमा मुदलियार; मैसूर विश्व-विद्यालय(हिंदी विभाग) मैसूर
यशोधरे ! कब तक खोजेगी पार्श्व में प्रतीमा-सी खड़ी होना
सांसें, महल की चार-दिवारी में अब इतिहास बन चूका है
आसूं की हर बूँद पर अब, तुम्हे डालनी है
करेगा प्रश्न, प्रति-प्रश्न नींव
राहुल नए इतिहास की
गौतम-सा इसलिए उठो
फिर कोई,सोते हुए जागो, तोड़ो
छोड़ जाएगा लान्घो देहरी
और कहलायेगा प्रतीक्षारत है
तथागत एक नया इतिहास
युग-दर-युग बनाने
यशोधरे यशोधरे
* * * * * *
दस सेंटीमीटर की खबर
एक महिला को खबर से हटकर
डायन करार देकर हत्या की दूसरी खबर
पत्थर से मारा गया तलाशी जाती है
सरे आम प्रतिक्रिया में
अखबार की सुर्ख़ियों में मौन
दस सेंटीमीटर की खबर और गहरा होता है
छप जाती है चेहरा
कहीं कुछ भी नहीं होता स्पष्ट सपाट और सफेद
न कोई हलचल
बस,एक सामूहिक मौन
हत्या का होना
अब कितना सहज हो गया है
* * * * * *
कमलादास ; केरल
द्वीप से वापस अयोध्या जाते हुए
महाद्वीप की ओर फर्क मात्र इतना है कि
उड़ता पुष्पक देख विमान चालक
टूटे मन से स्वदेश हो या विदेश
मैं देती हूँ चेतावनी कहीं भी तो नहीं है तुझे
हे जनक-पुत्री सुख
हे भाग्य-दोष से जन्मी
* * * * * *
दो गज जमीन बहुत है या
मरने के लिए अपनी शाखाएँ
जीने के लिए कटवा कर
बाँहों को पसारने बोनसाई बन कर
जीतनी तो हो गमले में सजने के लिए
* * * * * * *
दुःख होता है और मैं
जब तुम खड़ी रह जाती हूँ
मुझे समझने की कोशिश में तुम्हारे फिर से
मेरी समझ के दायरे से लौटने के इन्तजार में
आगे निकल जाते हो
* * * * * *
तेरी कूची से निकली तस्वीर तो नहीं हूँ मैं
कि तुम रंग भरो और मैं मुस्कराने लगूँ
तीन दशकों की धूप-छावं में रहे साथ
फिर भी एक-दूसरे को नहीं जानते
टटोलते ललखडाते चल रहे हैं साथ.
* * * * * *
मंदरपु हेमवती; विजयवाडा (आन्ध्र प्रदेश)
कवि और चित्रकार के लिए
स्त्री एक देह है
वर्णन करने लायक वस्तु
चल-चित्रों और विज्ञापनों की पूँजी
औरत का अंग-प्रत्यंग.
* * * * * *
सुखविन्दर अमृत लुधियाना (पंजाब)
शुभ चिन्तक
उसने मेरे पंख काट कर कहा-
देख, मैंने तुम्हें थोडा-सा संवारा
और तुम, कितनी सुन्दर हो गई.
* * * * * *
जयदेव पट्टी (दरभंगा)
रास्ते पर चलती हुई लड़की खुद को सम्भालना पड़ता है
एक अजूबा होती है हजार फब्तियों की ओट से
लज्जा से सर झुकाए अपने को लुकाना/छिपाना पड़ता है
एक मूक मूरत हजार क़दमों की रफ़्तार से
जिसे हजार आँखों के इशारों से अपने को दौडाना पड़ता है
* * * * * *
मल्लिका सेन गुप्ता; कोलकता subodhmallika @yahooo.com
ओ आदमी,
मैंने कभी नहीं उठाई बाहें
तुम्हारे खिलाफ
जब तुमने मेरी कोख चिरी
और लगा दिया खून का सिन्दूर
मुझे दर्द महसूस हुआ
पर मैंने तुम्हे नहीं बताया
* * * * * *
तसलीमा नसरीन taslima.nasreen@gmail.कॉम
युवावस्था
प्रकृति का कोई भी प्राणी पुरुष खोजता है, कुँवारी लड़कियों को
मादा के जन्म को, गैर मुनासिब नहीं मानता कि कर सके, उनकी चिर-फाड़
केवल मनुष्य ही मानता है कोई, प्यार के नाम पर
इसे विचित्र तो कोई, ब्याह के नाम पर
* * * * * *
सी.वृंदा
इसलिए मेरी यात्राएं
लक्ष्मण-रेखा के भीतर स्वतंत्र हूँ
खिलते है मेरे विचार सिर्फ साँस लेने को
खड़ी होने पर, रौंदता हैं आकाश इसलिए
जितना भी रेंगले जिन्दा हूँ , अब भी
वृत्त में ही, ख़त्म होती है
* * * * * *
डा.प्रतीमा मुदलियार; मैसूर विश्व-विद्यालय(हिंदी विभाग) मैसूर
यशोधरे ! कब तक खोजेगी पार्श्व में प्रतीमा-सी खड़ी होना
सांसें, महल की चार-दिवारी में अब इतिहास बन चूका है
आसूं की हर बूँद पर अब, तुम्हे डालनी है
करेगा प्रश्न, प्रति-प्रश्न नींव
राहुल नए इतिहास की
गौतम-सा इसलिए उठो
फिर कोई,सोते हुए जागो, तोड़ो
छोड़ जाएगा लान्घो देहरी
और कहलायेगा प्रतीक्षारत है
तथागत एक नया इतिहास
युग-दर-युग बनाने
यशोधरे यशोधरे
* * * * * *
दस सेंटीमीटर की खबर
एक महिला को खबर से हटकर
डायन करार देकर हत्या की दूसरी खबर
पत्थर से मारा गया तलाशी जाती है
सरे आम प्रतिक्रिया में
अखबार की सुर्ख़ियों में मौन
दस सेंटीमीटर की खबर और गहरा होता है
छप जाती है चेहरा
कहीं कुछ भी नहीं होता स्पष्ट सपाट और सफेद
न कोई हलचल
बस,एक सामूहिक मौन
हत्या का होना
अब कितना सहज हो गया है
* * * * * *
कमलादास ; केरल
द्वीप से वापस अयोध्या जाते हुए
महाद्वीप की ओर फर्क मात्र इतना है कि
उड़ता पुष्पक देख विमान चालक
टूटे मन से स्वदेश हो या विदेश
मैं देती हूँ चेतावनी कहीं भी तो नहीं है तुझे
हे जनक-पुत्री सुख
हे भाग्य-दोष से जन्मी
* * * * * *
नीरू असीम
दो गज जमीन बहुत है या
मरने के लिए अपनी शाखाएँ
जीने के लिए कटवा कर
बाँहों को पसारने बोनसाई बन कर
जीतनी तो हो गमले में सजने के लिए
* * * * * * *
प्रीतम कौर
दुःख होता है और मैं
जब तुम खड़ी रह जाती हूँ
मुझे समझने की कोशिश में तुम्हारे फिर से
मेरी समझ के दायरे से लौटने के इन्तजार में
आगे निकल जाते हो
* * * * * *
बेहतरीन कवितायें पढ़ने के लिये मिली ...आभार एवं साधुवाद
ReplyDeleteआज 28/01/2013 को आपकी यह पोस्ट (दीप्ति शर्मा जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
ReplyDeleteएक से बढकर एक बेहद सुन्दर भाव पूर्ण अभिव्यक्तियाँ ..हार्दिक आभार एवं अभिनन्दन !!!
ReplyDeleteअत्यंत प्रभावशाली रचनाएँ यहाँ प्रस्तुत करने के लिए आभार ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचनाएं...
ReplyDeleteसभी लाजवाब.
अनु