Thursday, December 15, 2011

गोरा कुम्भार


       संत गोरोबा का नाम महाराष्ट्र में बहुत प्रसिध्द है.विठ्ठल-भक्ति में उनका कोई जोड़ नहीं है.महाराष्ट्र के  पंढरपुर में विठ्ठल-रुक्मणी का प्रसिध्द मन्दिर है.इस मंदिर में 365 दिन पूरी-सब्जी बांटी जाती है.गरीबों को मुफ्त में वर्ष भर खाना खिलाने के पीछे एक घटना है और उस घटना के नायक है, गोरा कुम्भार.
         गोरोबा के जन्म के बारे में कोई उपलब्ध इतिहास नहीं है. चूँकि, गोरोबा और संत ज्ञानेश्वर समकालीन है अत: इनका जन्म सन 1260  के आस-पास माना जाता है.कहा जाता है कि ये महाराष्ट्र के तेरधोकी नामक गावं में पैदा हुए थे.तेरधोकी, पंढरपुर से करीब 60-70 की. मी. दूर उस्मानाबाद जिले में स्थित है.
      संत गोरोबा, बर्तन बनाने का काम करते थे.बरतन बनाने वाले को कुम्भार कहा जाता है.शायद, इसी के कारण इन्हें गोरा कुम्भार के नाम से जाना जाता है.उनकी पत्नी का नाम तुलसा बाई था.उनका एक छोटा-सा पुत्र था, नाम था हरी.गोरोबा भगवान् विठ्ठल के अनन्य भक्त थे. वे खाते-पीते, उठते-बैठते हमेशा भगवान् के भजन-कीर्तन में तल्लीन रहते थे. विठ्ठल-भक्ति में गोरोबा इतने तल्लीन रहते थे कि उन्हें पता  ही नहीं होता था कि उनके आस-पास क्या हो रहा है ? मिटटी के बरतन लेकर वे बाजार में जाते और कोई ग्राहक जितने में कहता, उसी कीमत में वे उसे दे देते.
      एक समय की बात है जब गोरोबा, मिटटी के बरतन बनाने के लिए गारा तैयार कर रहे थे. काम के आलावा वे  विठ्ठल-ध्यान में इतने मग्न थे कि कब उनका छोटा-सा पुत्र हरी कहीं से खेलते-खेलते आ कर पानी-मिटटी के गारे में में गिर गया, गोरोबा को पता ही नहीं चला.
      इसी बीच गोरोबा की पत्नी आ कर हरी के बार में पूछती है. विठ्ठल के भक्ति में तल्लीन गोरोबा कहते है कि हरी तो सब जगह है, पेड़ में, फूल में, पत्ती में... कण-कण में... पत्नी गुस्सा हो कर पूछती है कि वह अपने पुत्र हरी के बार में पूछ रही है ?  तब, एकाएक गोरोबा की भक्ति भंग होती है.उसे ध्यान आता है कि तुलसा उनके पुत्र हरी के बारे में पूछ रही है.वह बताता है कि कहीं खेल रहा होगा.वे काफी इधर-उधर देखते है. तभी पानी-मिटटी के गारे में उनको हरी का पैर नजर आता है. तुलसा दहाड़ मर कर रो पड़ती है.
      गोरोबा पुत्र को गारे से निकालता है. वह मर चूका होता है.गावं के लोग गोरोबा के पुत्र का अन्तिम संस्कार करते हैं. गोरोबा पत्नी तुलसा को समझाता है कि हो सकता है, उनके पुत्र की इतनी ही उम्र हो ? भगवान् विठ्ठल की यही मर्जी हो.मगर, गोरोबा की पत्नी शांत नहीं होती और वह गोरोबा को छोड़ कर अपने माँ-बाप के घर चली जाती है.    
      गोरोबा, भगवान् विठ्ठल के भजन-कीर्तन में इतने रमे रहते थे कि उन्हें तुलसा और अपने घर-परिवार की चिंता ही नहीं रहती.मगर, तुलसा के माँ-बाप परेशान होते है. वे सोचते हैं कि शायद पति-पत्नी में पट नहीं रही है.वे तुलसा को समझाते हैं किन्तु, तुलसा वापिस जाने को तैयार नहीं होती. अंतत: वे अपनी छोटी लड़की शांति का विवाह कर देने के लिए गोरोबा को राजी कर लेते हैं.
      शांति से विवाह हो जाने के बाद तुलसा भी गोरोबा के पास आती है.मगर,दोनों के रहने के बाद भी गोरोबा की विठ्ठल-भक्ति में कोई फर्क नहीं आता.इधर, गोरोबा का घर चलाना मुश्किल हो जाता है. बढ़ता कर्ज अदा करने के लिए गोरोबा अपना पुस्तैनी मकान बेच देते है.अब वे अपने भगवान् विठ्ठल के दरबार पंढरपुर आ कर रहने लगे.
        पंढरपुर में विठ्ठल-रुक्मणी मन्दिर के पास गोरोबा आ कर रहने लगे.अब उनकी भक्ति में कोई विघ्न नहीं था. एक दिन एक युवक गोरोबा के पास आ कर दंडवत साष्टांग-प्रणाम करता है. वह बतलाता है कि उसका नाम रंगन है और वह यहीं पास के मकान में रहता है. यह जान कर कि गोरोबा यहीं आ कर रहने लगे हैं, युवक बतलाता है कि पहले वह भी मिटटी के बर्तनों का काम करता था.गोरोबा के पास से लिए हुए बर्तनों से उसने बहुत सारी दौलत कमाई है. वह गोरोबा के ऋण से दबा हुआ है. युवक, गोरोबा से विनंती करता है कि वे आ कर उसके मकान में रहे. वे पति-पत्नी गोरोबा के पुत्र और पुत्र-वधु की तरह उनकी सेवा करेंगे.युवक पुन: अनुरोध करता है कि  गोरोबा की याद में उनके भगवान् विठ्ठल-रुक्मणी के मंदिर में पूरे वर्ष 365 दिन गरीबों को मुप्त पूरी-सब्जी खिलायेगा और गोरोबा को इसका प्रबंध देखना होगा.
      गोरोबा युवक का प्रेम और भगवान् विठ्ठल की भक्ति देख कर खुश हो जाते हैं.वह रंगन के घर जा भगवान् विठ्ठल की भक्ति में फिर लीन हो जाते हैं.गोरोबा की मृत्यु के बारे में भी कोई निश्चित मत नहीं है. मगर, तय है कि वे काफी वर्ष जिए.उनकी समाधि आज भी तेरधोकी में स्थित है.

No comments:

Post a Comment