बात तब की है, जब हिन्दुओं की हठ-धर्मिता के कारण डॉ.आंबेडकर ने सामूहिक धर्मान्तरण की घोषणा कर दी थी। हिन्दू, एक तरफ तो मुसलमानों को रियायतें देने के पक्ष में थे, किन्तु अपने सह-धर्मी दलित भाइयों को जरा भी रियायतें देने तैयार नहीं थे।
उधर, अपनी घोषणा के तारतम्य में डा. आंबेडकर दलित जातियों का मूड भांपने पूरे देश का दौरा कर रहे थे। इस तारतम्य में देश की दलित जातियों के मूड की एक बानगी द्रष्टव्य है-
म.प्र. के राजनांदगावं में 8 जुला.1936 को दलित फेडरेशन की आम सभा बाबू बंशीदास की अध्यक्षता में संपन्न हुई। परसराम जी, बाबू लालाराम जी, कारूलालजी, धनाराम आदि प्रमुख वक्ताओं के भाषण हुए। बाबू बंशीदास के नेतृत्व में एक होम कुण्ड जला कर इस सभा में उपस्थित दलित संत-महंत और साधू-महात्माओं ने अपनी- अपनी कंठी-माला, जटा-दाढ़ी निकाल कर होम-कुण्ड में अर्पण कर दी और बाबासाहब डा. अम्बेडकर द्वारा की गई धर्मान्तरण-घोषणा का स्वागत और समर्थन किया।
उधर, अपनी घोषणा के तारतम्य में डा. आंबेडकर दलित जातियों का मूड भांपने पूरे देश का दौरा कर रहे थे। इस तारतम्य में देश की दलित जातियों के मूड की एक बानगी द्रष्टव्य है-
म.प्र. के राजनांदगावं में 8 जुला.1936 को दलित फेडरेशन की आम सभा बाबू बंशीदास की अध्यक्षता में संपन्न हुई। परसराम जी, बाबू लालाराम जी, कारूलालजी, धनाराम आदि प्रमुख वक्ताओं के भाषण हुए। बाबू बंशीदास के नेतृत्व में एक होम कुण्ड जला कर इस सभा में उपस्थित दलित संत-महंत और साधू-महात्माओं ने अपनी- अपनी कंठी-माला, जटा-दाढ़ी निकाल कर होम-कुण्ड में अर्पण कर दी और बाबासाहब डा. अम्बेडकर द्वारा की गई धर्मान्तरण-घोषणा का स्वागत और समर्थन किया।
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