अमेरिकी लेखक जोसेफ लेलीवेल्ड ने अपनी पुस्तक 'Great soul Mahatma Gandhi and; his struggle with India' में गाँधीजी पर कुछ टिप्पणियाँ की है.
गाँधी जी का व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन है ही ऐसे विरोधाभाषों का कि लोग न चाह कर भी जाने-अनजाने टिप्पणी करते रहते हैं.अगर आप ब्रम्ह-चर्य पर लेख लिख रहे हैं तो गाँधी बीच में कूद पड़ते हैं.अगर आप धर्म-ग्रंथों की सामाजिक उपयोगिता पर सोच रहे हैं तो गाँधी जी लाठी लेकर खड़े हो जाते हैं. अगर आप राजनीती के सुचिता पर चिंतन करते हैं तो गांधीजी का 'अगर-मगर' वाला दर्शन रोकता है. गोया, आप जिस किसी विषय पर लिख रहे हैं, अगर वह भारतीय परिवेश में है, तो बगैर गाँधी जी के आप लिख ही नहीं सकते. अब, लोग लिखते है और चाहे-अनचाहे टिप्पणी करते हैं.
इसी तरह की टिप्पणियों से आहत केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय-सम्मान में संशोधन करने का प्रस्ताव किया है ताकि बापू का अपमान भी राष्ट्रीय-झंडे के अपमान की तरह ही लिया जा सके.
न्यूयार्क टाइम्स के पूर्व सम्पादक और पुलित्जर पुरस्कार विजेता जोसेफ लेलीवेड ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि महात्मा गाँधी सम-लैंगिक थे.पुस्तक में आगे कहा गया है कि 13 वर्ष की उम्र में 14 वर्ष की कस्तूरबा से शादी करने वाले मोहनदास करमचंद गाँधी अलग रहने लगे थे.वे हर्मन कोलेनपॉश नामक शख्स को प्यार करते थे.पश्चिमी और अमेरिकी मिडिया ने किताब के उन अंशों को प्रकाशित किया है.महात्मा गाँधी पर लिखी गई उक्त विविदास्पद पुस्तक पर गुजरात सरकार द्वारा लगाये गए प्रतिबन्ध पर प्रतिक्रिया देते हुए लेखक जोसेफ लेलोवेल्ड ने कहा कि खुद को लोकतन्त्र घोषित करने वाले देश में पुस्तकों पर प्रतिबन्ध लगाना शर्मनाक है.
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