Wednesday, December 14, 2011

जनाबाई(1270-1350)

 जनाबाई  (1270-1350)
जनाबाई का नाम मैंने गुरूजी से सुना था।  वे अपने प्रवचन/कीर्तन में जनाबाई, मुक्ताबाई आदि के दृष्ट्रांत दिया करते थे। गावं देहातों में लोग अकसर भजन-कीर्तन का आयोजन करते हैं। यह एक ऐसा कार्क्रम है जिस में महिलाऐं भारी संख्या में उपस्थित होती हैं। इस अवसर पर परिवार और समाज के लोगों को अच्छी-अच्छी सांसारिक बातें सुननी मिलती हैं।

 भजन-कीर्तनकार चूँकि परिचित होते हैं अत: वे आपके घर-परिवार की बातें करते हैं, आपके आस-पास बिखरे नायक-नायिकाओं के व्यक्तित्व और कृतित्व का बड़े सरल और मनोरंजक शैली में वर्णन सदाचार की बातें बताते हैं। निस्संदेह, समाज-सुधार में साधु-संतों का भारी योगदान है। अगर संत न हो तो सामाजिक व्यवस्था ठप्प हो जाए।

जनाबाई का जन्म महाराष्ट्र के गंगाखेड़ गावं में हुआ था। जनाबाई जब बहुत छोटी थी, तभी उनके पिताजी का देहांत हो गया था।  पति की मृत्यु के बाद जनाबाई की माँ अपनी छोटी-सी बिटिया को लेकर रोजी-रोटी की तलाश में पंढरपुर आयी। पंढरपुर में वह दामाशेटी नामक एक वारकरी सम्प्रदाय के परिवार में घर के काम-काज करने लगी थी। स्मरण रहे, यह वही दामाशेटी है जिनका पुत्र आगे चल कर 'संत नामदेव' के नाम से प्रसिद्द हुआ।
जनाबाई उम्र में नामदेव से कुछ बड़ी है। जनाबाई के अभंग मराठी में काफी मिलते।

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