दैनिक भास्कर जबलपुर (म प्र ) १६ अक्टू १० में प्रकाशित एक खबर के अनुसार, छतीसगढ़ में बलि प्रथा पर एक नई बहस सांसद दिलीपसिंह जूदेव द्वारा शुरू की गई है।
हुआ ये की पिछले दिनों भाजपा के ही एक विधायक युद्धवीरसिंह जूदेव ने चंद्रहासिनी देवी के मंदिर में बकरे की बलि दी। अब, विपक्ष को बैठे-बिठाए मुद्दा मिल गया। जाहिर है, हाय- तौबा तो मचना था। और हुआ भी यही। अब बड़े भाई सांसद दिलीपसिंह जूदेव कैसे पीछे रहते ? श्री जूदेव ने कहा कि ऐसा प्रचारित किया जा रहा है कि युद्धवीरसिंह बलि प्रथा की शुरुआत कर रहे हैं। जबकि, वास्तव में यह बलि प्रथा हजारों साल पुरानी है। हम अपनी आस्था के साथ बलि चढाते हैं। हम अपनी यह सदियों पुरानी परम्परा कैसे बंद कर दे ? यह तो उसी तरह की बात हुई कि होली पर पानी मत बहाओं। दीपावली पर पटाखें मत फोड़ों। श्री जूदेव ने आगे कहा कि परम्परा के साथ की जाने वाली बलि पर एतराज करने वालों को यह भी मांग करनी चाहिए कि बकरीद पर बकरे की क़ुरबानी बंद कर दो ?
बिलकुल सही फरमाते हैं जूदेवजी। पाठकों को याद होगा की सिखों के कृपाण पर देश में एक लम्बी बहस छिड़ी थी। इसी तरह, नंग-धडंग जैन मुनियों के प्रदर्शन पर भी लोगों ने सवाल उठाए थे। मगर, सवाल धार्मिक परम्पराओं का है। अब धार्मिक परम्पराओं में नैतिक मूल्यों का क्या ?
वास्तव में धार्मिक परम्पराओं का 'रिव्यू' होते रहना चाहिए। धार्मिक परम्पराओं को जड़ नहीं होना चाहिए। अगर समय गतिशील है, तो धार्मिक परम्पराओं को गतिशील होना चाहिए। जड़ता मनुष्य का स्वभाव नही है । धर्म मनुष्य के लिए है, न की मनुष्य धर्म के लिए। मनुष्य प्रकृति का अंग है। प्रकृति परिवर्तनशील है। जाहीर है, धर्म में परिवर्तन अवश्यसंभाव्य है।और नहीं, तो धर्म में जड़ता इसी तरह की सड़ांध पैदा करेगी। फिर,चाहे जो धर्म हो।
एक दूसरी बात, हमें किसी और की ओर ऊँगली दिखाने की बजाय पहले, खुद अपनी ओर क्यूँ नहीं देखना चाहिए ?
इस पर कोई प्रश्न नहीं उठाता... क्योंकि सवाल वोटों का है और मुसलमान सब को ठीक कर देंगे...
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