Saturday, October 9, 2010

परिवर्तन की विवशता

दलित चेतना के चलते गाँव में परिवर्तन मिशन स्कूल पिछले दो वर्षों से चल रहा था। नया शिक्षहा-सत्र प्रारम्भ होते ही बच्चे अगली कक्ष्हा में प्रवेश ले रहे थे।
'जय भीम गुरूजी।"
"जयभीम।" - शिक्ष्हक ने बच्चे का अभिवादन स्वीकार किया।
"और आनंद, अकेले आये हो ? तुम्हारे पिताजी कहाँ हैं ?" - शिक्ष्हक ने ओपचारिकता वश पूछा।
"जी, दारू पीकर पड़े है।" बच्चे ने सकुचाते हुए जवाब दिया।

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