एक सर्वे के अनुसार, देश में धन कुबेरों की संख्या में जबर्दस्त इजाफा हो रहा है। मगर
दूसरी ओर,
एक औसत भारतीय की
आज भी
सालाना आय रु.
५०००० रु से अधिक नहीं
है । अब ऐसे में, नक्सलवादी पैदा नहीं होंगे तो और क्या होगा ? पूँजी को कुछ ही घरों में जमा करने वाली व्यवस्था कहाँ तक जायज हैं ?
No comments:
Post a Comment