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ये मुंबई शहर, हादशों का शहर
यहाँ रोज-रोज, हर मोड़-मोड़ पर
होता है, कोई न कोई हादशा .....हादशा।
मुंबई पर कुछ लिखते हुए मुझे इसी फ़िल्मी गाने की लाईने और शीन याद आ रहा है।
यूँ मुंबई को सपनों की नगरी भी कहा जाता है। मगर, यह किसने कहा और कब कहा, के बारे में कुछ नहीं मालूम। जाहिर है, यह या तो किसी कवि की कल्पना है या फिर सपनों से जाग कर धरातल पर आये हुए किसी ना मुराद का पागलपन।
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एक थे बाला साहेब ठाकरे। ये महाशय मुंबई को अपनी जागीर समझते थे। इन्हें बिहारियों से चिड थी। इन्हें हिंदी भाषियों से भी चिड थी। चिड तो इन्हें मुसलमानों से भी थी। गोया, लिस्ट तो लम्बी है। मगर, हम यहाँ बालासाहब पर नहीं लिख रहे हैं। दरअसल, लोग है भी इसी लायक। मिडिया का क्या मजाल की वह बालासाहब के विरुद्ध में कुछ भी लिखे। उन्हें कुछ छापने के पहले बालासाहब से परमिशन लेनी पड़ती थी। वर्ना बाला साहब का 'अपना तरीका' था लोगों को ठीक करने का।
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खैर, हम मुंबई दर्शन पर आते हैं। मुंबई देखने की इच्छा हर किसी की होती है। बिटिया की शादी मुंबई तय होते ही मैंने तय किया की जिस तरह बड़े बेटे की शादी में सभी को अमरकंटक का विजिट करवाया था, इस बार एक बड़ी बस किराये पर हायर कर सभी को मुंबई के दर्शन कराया जाए। तब, मैं अमरकंटक थर्मल पावर स्टेशन म प्र वि मं चचाई में कार्यरत था। चचाई से अमरकंटक करीब 65 की मी दूर है। अमरकंटक का विजिट करने की इच्छा भी हरेक में होती है। अमरकंटक न सिर्फ हिन्दुओं का धार्मिक स्थल है बल्कि, एक दर्शनीय पर्वतीय स्थल है। इसी को ध्यान में रख कर वह प्रोग्राम बनाया गया था।
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मुंबई दर्शन के लिए 17 दिस की तारीख तय की थी। दूर-दूर से आए मेहमानों को इससे ज्यादा रोकना तर्कसंगत नहीं था, इसलिए
शादी के दूसरे ही दिन यह प्रोग्राम रखा गया। यद्यपि वर पक्ष की ओर शादी के दूसरे दिन खास मेहमानबाजी का प्रोग्राम था। मगर, हम लोगों को मुंबई घूमना ज्यादा श्रेयकर लगा। मेहमानों में कई ऐसे थे जिन्होनें अभी तक मुंबई के दर्शन नहीं किये थे। और फिर, परिवार और रिश्तेदारों के 55-60 सदस्यों के साथ मुंबई दर्शन करने के अपने मजे थे।
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मुंबई सात इजलेंड ( द्विपों ) को मिला कर बसाया गया है। माजागाँव, कोलाबा, वाल्दा , ओल्ड वुमेन इजलेंड ,परेल, माहिम और माटुंगा। मुंबई को मोटे तौर पर दो भागों में बाटा जा सकता है। मेन सिटी और सबर्बन एरिया। मुंबई सबर्बन एरिया में अँधेरी, कुर्ला और बोरीवली के क्षेत्र आते हैं। मुख्य शहर अर्थात साऊथ मुंबई उत्तर में माहिम से शुरू हो कर दक्षिण में कोलाबा तक फैला है। इसमें वरली, मुंबई सेन्ट्रल, लोअर परेल और प्रभादेवी का विस्तृत भू-भाग है।
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मुंबई को यहाँ के सबसे बड़े फिल्म उद्योग की चका-चौंध के कारण देश की 'कमर्शियल केपिटल' कहा जाता है। यह ग्लोबल रेंकिंग में 10 वा कमर्शियल हब है। यह देश का सबसे बड़ा मेट्रो पालिटन है। करीब 13 मिलियन जनसंख्या की वजह से मुंबई विश्व का सबसे घना आबादी वाला शहर है। टूरिस्ट पाइंट के दृष्टिकोण से विदेशी शैलानियों की यह पहली पसंद है। सांस्कृतिक दृष्टी से यह विविधताओं का शहर है। यहाँ पर लाखों लोग हर दिन रोजी-रोटी की तलाश में आते हैं। उसमें से इक्का-दुक्का ऊँची-ऊँची अठ्ठलिकाओं में खो जाते हैं और बाकि 98-99 परसेंट किसी रेलवे ट्रेक के किनारे या शहर के गंदे परनाले के सहारे झुग्गी-झोपड़ियाँ बना कर बस जाते हैं।
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बहरहाल, 17 दिस के मुंबई दर्शन का प्रोग्राम हमनें सभी को पहले से ही बतला कर रखा था। 57 सीटर बस हमनें मुंबई जाते से ही बुक कर रखी थी। बस वाले ने एक चार्ट दिया था जिस को फाईनालीज कर गन्तव्य स्पॉट मार्क कर लिए गए थे। चूँकि, शादी की अन्तिम रस्म खत्म होते देर रात 1.00-1.30 बज गया था लिहाजा, सुबह चाह कर भी हम लोग समय पर उठ नहीं पाए।
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सुबह 7.40 बजे मोबाइल की रिंग से मेरी नींद खुली। यह बस का ड्राईवर था जिसने बस ला कर खड़ी करने की सूचना दी थी। मेहमानों को जगाते-जागते 8.00-8.30 बज गए। फिर शुरू हुआ फ्रेश होने का सिलसिला। स्नान करना, तैयार होना वह भी लेडिज लोगों के साथ। यद्यपि, मेहमानों के लिए बुक किए गए चारों फ्लेट्स में दो-दो टायलेट्स थे मगर, हर फ्लेट्स में करीब-करीब 15-15 मेहमान भी तो थे। फ्लेट्स भी अलग-अलग बिल्डिंग में थे। यहाँ पर सोचिए, अगर मोबाइल नहीं होता और यह शादी नब्बे के दशक में होती तो अलग-अलग बिल्डिगों की सीढियाँ चढ़ते-उतरते क्या हालत होती ?
अंतत: करीब 10.30 बजे हम सब बस में बैठे। आज के प्रोग्राम का ग्रुप लीडर मैंने अपने बड़े लडके राहुल को बनाया था। राहुल ने सभी को पास के ही केंटिन में तगड़ा ब्रेकफ़ास्ट कराया। ब्रेकफ़ास्ट के बाद हमनें सीधा रुख चैत्य-भूमि दादर का किया।
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चैत्य-भूमि, बाबा साहब डा आंबेडकर का समाधी-स्थल है। यह शिवाजी पार्क के पास है। यहाँ हर रोज हजारों-लाखों लोग, बाबा साहब को अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित करने आते हैं। यहाँ पर यद्यपि, बाहर ज्यादा स्पेस नहीं है, तो भी इससे सटी हुई इंदु मिल की बाउन्ड्री के सहारे-सहारे कई बुक स्टाल लगे रहते हैं, जिसमें बाबा साहब के कृतित्व के बारे में इफरात साहित्य भरा मिलता है। इनमें केसेट, लाकेट, कलेंडर, मूर्तियाँ और बुक्स का विशाल भण्डार होता हैं। विदित हो कि 5 दिस 12 को ही सेन्ट्रल गवंमेंट के केबिनेट मिनिस्टर मिस्टर आनंद शर्मा ने इंदु मिल, जो वर्षों से बंद पड़ी है और जिसकी जमीन चैत्य-भूमि को देने की मांग कई वर्षों से देश के करोड़ों दलित संगठनों की ओर से की जा रही थी, को चैत्य-भूमि को देने की घोषणा संसद में की है। मिस्टर शर्मा ने आगे यही भी कहा था कि सेन्ट्रल गवर्नमेंट वहां पर बाबा साहब का एक भव्य और ऐतिहासिक स्मारक निर्माण करेगी।
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यहाँ पर आर पी आई के लीडर मिस्टर रामदास आठवले को धन्यवाद देना होगा कि उन्होंने चाहे जो टेकनिक अपनाई हो, मगर शिव सेना के गठजोड़ की मांग कि इंदु मिल की पडत जमीन चैत्य-भूमि को दे दी जाए, ने एक इनिसिएटिव प्रेसर का काम किया है। आप जानते है कि उनकी बात न मानने की स्थिति में शिव सेना का 'अपना तरीका' है, अपनी बात मनवाने का। महाराष्ट्र सरकार तो घोषित कर चुकी थी इंदु मिल की जगह बाला साहेब ठाकरे का स्मारक बनाने के लिए देने।
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दिन के करीब 1.00 बजे हमारी बस मुंबई शहर का ट्रेफिक पार करते-करते चैत्य-भूमि पहुंची। ड्राईवर को आवश्यक हिदायत दे कर कि वह ठीक 2.00 अमुक जगह बस खड़ी करेगा, हम सब चैत्य भूमि के दर्शन करने गए। चैत्य-भूमि की पहली इन्ट्रेंस गेट आपको साँची गेट की याद दिलाती है। ठीक इसके बाद बाई ओर मुड़ते ही बुक स्टाल की लम्बी लाइन को देखते-परखते आप आगे बढ़ते हैं। दाई ओर विशाल समुद्र और उसकी मदमदाती लहरें आपके पैर थाम लेती है। मगर, बाबा साहब की पुकार आपके रगों में बहती हुई निरंतर आपको आगे बढ़ने को कहती है। इसी बीच आप खुद को अनायास एक खुबसूरत गुम्बद की गेट पर पाते हैं। इसी गुम्बद के ठीक नीचे बाबा साहब की अस्थियाँ रखी हैं। भंते जी के मार्ग-दर्शन में आप अन्दर जाते हैं। बाबा साहब के अनुयायी अपने-अपने ग्रुप के साथ लाइन में बारी-बारी से अपने उद्धारक बाबा साहब को श्रद्धा-सुमन चढ़ाते हैं। कहीं कोई जय-जय कार नहीं। कहीं कोई भीड़ नहीं। कोई पुलिस दल नहीं। सब अपने आप अनुशासन-बद्ध।
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लौटते हुए कुछ मेहमान बुक्स लेते हैं। कोई लाकेट तो कोई केसेट। हर आदमी आम्बेडकर लिटरेचर के नाम पर कुछ न कुछ स्टालों पर खरीदते दीखता है। हमने इस सब से फुर्सत हो कर दाई ओर फैले विशाल समुद्र के किनारे खड़े हो कर मदमदाती लहरों को खुद में कैद किया।
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ठीक 2.00 बजे नियत स्थान पर सभी मेहमान एकत्र हो गए। आगे बस का गंतव्य स्पॉट गेट वे आफ इण्डिया था। गेट वे आफ इण्डिया बस करीब 4.00 बजे पहुंची। मुंबई और दिल्ली जैसे शहरों में दूरी की मी में नहीं नापी जाती। बड़े-बड़े मेट्रोपालिटन शहरों में एक स्थान से दूसरे स्थान जाने का समय ट्रेफिक जाम पर निर्भर करता है। आप काफी एडवांस है तो इसका पता आप जी पी एस सिस्टम से कर सकते हैं। वर्ना चलते रहिए। कभी न कभी तो पहुंचेंगे ?
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गेट वे आफ इण्डिया के पास ही ताज़ महल होटल है। यह वही होटल है जहाँ पिछले 26 नव 08 को आतंकवादियों ने हमला किया था। यद्यपि होटल तुरंत ही दुरुस्त कर लिया गया था मगर, जो जख्म देश की छाती पर आतंकवादियों ने छोड़ा था, वे बाकि थे। इन्हीं जख्मों पर मरहम लगाने लाखों की संख्या में लोग दर रोज नाम आँखों से आते हैं। यह वही ताज़ है जिसकी खूबसूरती के चर्चे लोगों की ज़ुबान पर थे।
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गेट वे आफ इण्डिया ब्रिटिशों के लिए स्वागत-द्वार के रूप में बनाया गया था। समुद्र के रास्ते आते ब्रिटिशों का स्वागत इसी गेट पर किया जाता था। गेट वे आफ इण्डिया की सीढियों के ठीक नीचे विशाल अरब सागर है। सीढियों के पास ही कई कई बोट आपके इन्तजार में खड़ी होती है।
गेट वे आफ इण्डिया की उंचाई 26 मीटर है। यह ऐतिहासिक मोन्यूमेंट वास्तव में ब्रिटिश शासक जार्ज पंचम और उनकी बेगम का वेलकम करने सन 1911 में बनाया गया था।
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आजकल यह स्थान एक बड़ा पर्यटन स्थल है। छोटी से ले कर बड़ी बड़ी नावं पर्यटकों को कोस्टल एरिया में करीब आधा की मी घुमा कर वापिस लाती है। यह वाकई इंजॉय करने की चीज है। आप चलती बोट के ऊपरी डेक में बैठ कर वाकई आनंदित होते हैं। दूर खड़े बड़े-बड़े जहाज एक अजीब-सा मजा देते हैं। कोई द्रुत गामी बोट तीव्र गति में सामने से गुजरती है तब, समुद्र को चीरते हुए गुजरती बोट से पीछे छूटते पानी की हवा में उछलती बौछारें देख कर दिल बल्लियों उछलता है। हम लोग जमीन में रहने के आदि है। मगर, जब आप आधा-एक की मी दूर विशाल समुद्र में अपने आप को पाते हैं तब एक कम्प्लीट डिफरेंट फिलिंग होती है। हम उस फिलिंग का आनन्द बोट के ऊपरी डेक पर बैठ कर मजे से ले रहे थे।
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गेट वे आफ इण्डिया एक ऐसी जगह है जहाँ लोग क्या दिन क्या रात, जमें रहते हैं। यह इण्डिया का सबसे बड़ा पिकनिक स्पॉट है। खोमचे वाले, गुपचुप और चाट के ठेले, नारियल पानी, चना-मूंगफल्ली वाले , रंग-बिरंगे कई-कई आकार के बलून बेचते फेरी वाले आपको चलते-फिरते आस-पास जहाँ भी आप खड़े हैं, मिल जाते हैं। खड़े-खड़े आप जहाँ भी हैं, इन सबका मजा ले सकते हैं। फोटो ग्राफर आपके चाहते-न चाहते हुए आपको फोटो खिंचवाने के लिए राजी करते मिल जाएँगे। दिल्ली के इण्डिया गेट का जो नज़ारा है, करीब करीब वही नज़ारा यहाँ का है।
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गेट वे आफ इण्डिया से ही आप करीब 1.00 घंटे की बोट राइड से एलिफेंटा गुफा भी जा सकते हैं।
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वापिस लौटते-लौटते करीब 5.00 बज गया था और अब हमारे पास ज्यादा समय नहीं बचा था। अधिक से अधिक हम एक-दो जगह जा सकते थे। प्री-शेड्युल्ड प्रोग्राम के अनुसार अब अगला स्पॉट जुहू चौपाटी था। हम जुहू चौपाटी के लिए बस में बैठे। जुहू चौपाटी, मेरिन ड्राइव हो कर जाना पड़ता है। रास्ते में एक न्यूली कन्सट्रक्टेड़ हेंगिंग ब्रिज आता है जो वर्ली को बान्द्रा को जोड़ता है। वाकई, इससे गुजरना अपने आप में एक यादगार है। मेरिन ड्राइव से गुजरते हुए पास ही अरब सागर में हाजी बाबा की दरगाह दिखाई देती है। मन होता है, बस रोक कर वहां तक जाया जाए। खैर 'मियां हाजी अलि , मियां हाजी अलि --- की धुन ही मैं गुन गुनाते रह गया।
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करीब 6.45 बज रहा होगा, जुहू बीच करीब आ रहा था। हम लोग फ़िल्मी सितारों की ऊँची-ऊँची अठ्ठलिकाओं को दूर से निहारते-निहारते जुहू बीच पहुंचे। मेरा भांजा राजा, जो शायद इसके पहले कई बार यहाँ आ चूका था, मेहमानों को चलती बस से ही उँगली दिखा-दिखा कर बतला रहा था कि ये चमकती ऊँची मल्टी-स्टोरिड बिल्डिंग शाहरुख़ खान की है-- कि देखो-देखो, ये हजारों प्रशंसक यहाँ खड़े आसमान छूती बिल्डिंग से सलमान खान की एक झलक पाने बेकरार हैं--- कि ये शानदार बंगला मरहूम स्टार राजेश खन्ना का है। गोया, जिधर-जिधर राजा उँगली दिखाता, मेहमान उधर ही झाँकने लगते। कुछ देखने लगते और कुछ जब तक देखते, बस आगे बढ़ गई होती। मेरे मन में रिकार्ड प्ले हो रहा था, चौपाटी जायेंगे, भेल पूरी खायेंगे------
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करीब 7.00 बजे हम लोग जुहू बीच इंटर हुए। अँधेरा घिर चूका था। मन में ख्याल आया काश, यहाँ 5 या 6 बजे आये होते। दिन ढलते का नजारा कुछ और ही होता है। अँधेरा घिरने के कारण एक तो आप ढंग से फोटो नहीं ले सकते। दूसरे, अस्त होते सूरज को दूर समुन्दर क्षितिज में देखना कुछ और है। तीसरे विराट जुहू बीच के नज़ारे से भी आप वंचित हो जाते हैं। बहरहाल, सब एक साथ नसीब नहीं होती न। आपको जो भी है, उसी का उतने में ही लुफ्त उठाना होता है।
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खैर, जैसे ही आप जुहू बीच में इंटर होते हैं, कई रेस्ट रेंट वाले आपको अपनी अपनी ओर आकर्षित करते हैं। फिर, जैसे ही आप आगे बढ़ते हैं और सागर की उथली फैली रेत पर कदम रखते हैं, भेल-पूरी, पाव-भाजी, चाट, पानी-पूरी वाले आपको बुला बुला कर आफर करते हैं। मगर, आपका मन होता है कि पहले सागर से आती ऊँची-ऊँची लहरों के बीच आप अपने आप को खड़े पाएं। आप भाव-विभोर हो कर इसका आनंद लेते हैं। लहरे कभी आपके पावों के नीचे होती है तो कभी आपके काफी दूर विशाल सागर को गले लगाती है। यह एक बड़ा अद्भुत नज़ारा होता है। आप ग्रुप में है तो वाकई आपको मजा आता है। आप फोटो खिंच सकते हैं और इन क्षणों को हमेशा-हमेशा के लिए कैमरे में कैद कर सकते हैं।
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जुहू बीच के ऊपर से गुजरते एयर क्राफ्ट एक अजीब-सा कुतूहल पैदा करते हैं। वास्तव में, छत्रपति शिवाजी इंटर नेशनल एयर टर्मिनल पास में ही है, जहाँ से ये एयर क्राफ्ट टेक आफ करते हैं।
रात के आठ बजने को आ रहे थे। वापिस लौट कर पुन: मानखुर्द के बी ए आर सी कालोनी जाना था जिसमें करीब 1.00 से डेढ़ घंटा समय लगना था। लिहाजा, अब हमनें अपने मुंबई-दर्शन के विजिट को वाइंड-अप करने का निर्णय किया। रात का डिनर हम ने फ्लेट्स पर ही बुला लिया था।
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