Friday, December 7, 2012

ऍफ़ डी आई और दलित

कल,  6 दिस 12 को टी वी पर प्रसारित एक प्रोग्राम में वरिष्ठ दलित चिन्तक चंद्रभान जी ने ऍफ़ डी आई के मुद्दे पर जो बातें कही, नि:संदेह वह देश में दलितों के दृष्टिकोण को प्रगट करता है। चंद्रभान जी ने जो बातें कही, संक्षेप में निम्नानुसार है-
1. कम्प्यूटर के आने से परम्परागत पेशों की जो दुर्गति हुई है और आई टी सेक्टर में जैसी क्रांति आई है,  ऍफ़ डी आई आने से पम्परागत धंधों में, खास कर मंडी हाऊसों में वैसी ही क्रांति आएगी। मंडी हाऊसों में बिछी गद्दियों पर बैठने एक निश्चित जाति का कब्ज़ा है। कब्जा इतना जबर्दस्त है कि ब्राहमण, क्षत्री आदि अन्य उच्च जातियों को भी इसमें घुसने की हिम्मत नहीं है।  ऍफ़ डी  आई आने से पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा यह एकाधिकार टूटेगा और अन्य उच्च जातियों के साथ दलितों को भी इस में भागीदारी के अवसर मिलेंगे।
2.बी जे पी, जो देश के अन्दर सामाजिक ढांचे में यथास्थिति की पक्षधर है, ऍफ़ डी आई का विरोध कर रही है। दलित समुदाय जो सामाजिक परिवर्तन के पक्ष धर है, को हर उस व्यवस्था का स्वागत करना चाहिए जो हिन्दू सामाजिक ढांचे पर चोट करती है।
3. राजनीतिक पार्टियाँ चंदे के भरोसे चलती है। यह चंदा कार्पोरेट जगत से और इन करोड़ों बिचौलियों से आता है। और यही कारण है कि तमाम राजनीतिक पार्टियाँ इनके बेरोजगार होने से भयभीत है। कांग्रेस सत्ता में है और देश की अर्थ-व्यवस्था को पटरी पर बनाये रखने के लिए उसकी मज़बूरी है कि वह छोटे बिचौलिए की चिंता छोड़ बड़े बिचौलियों को पकडे।
4 जब जब बाहर की टेकनालाजी देश के अन्दर आई है, परम्परागत सोच को धक्का लगा है और  स्वभावत: दलितों को फायदा हुआ है। 

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