देश के संविधान में प्रत्येक नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता की बात कही गई है . अर्थात आप अपनी पसंद से किसी भी धर्म को अपना सकते हैं, जीवन का दर्शन बना सकते हैं. मगर, ये धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार बहुसंख्यक हिन्दुओं के गले की फ़ांस बना हुआ है . फासिस्ट ताकते जब तब इसकी मुखालफत करते रही है . भाजपा शासित राज्यों ने तो अपने यहाँ इसके विरुद्ध कानून बना लिए हैं, जो खुले आम धार्मिक स्वतंत्रता का गला घोटते है .
खबर है कि म प्र की शिवराज सिंह सरकार इस तरह का कानून पास करने की तैयारी में है . इस बिल को 'म प्र धर्म स्वातंत्र्य (संशोधन) बिल 2013 के नाम से केबिनेट पहले ही मंजूरी दे चूका है . विदित हो की पूर्व में भी इस तरह का विधेयक तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने इस टिपण्णी के साथ लौटा दिया था कि इससे संविधान का उलंघन होगा . मगर, अब की बार म प्र की भाजपा सरकार ने इस बिल को 'गुजरात माडल' पर तैयार किया है . ध्यान रहे, गुजरात में यह कानून 'फ्रीडम आफ रिलिजन 2003' एक्ट के नाम से है .इस बिल के अनुसार धर्म परिवर्तन के पहले कलेक्टर से अनुमति लेना अनिवार्य होगा . बलात धर्म परिवर्तन कराने के आरोपी को 4 साल के कारावास का प्रावधान किया गया है . धर्म परवर्तन दलित-आदिवासी करते हैं . म प्र सरकार चाहती है कि वे धर्म परिवर्तन न करे. सवर्ण हिन्दू उनकी माँ-बहनों की इज्जत लुटते रहे, सामाजिक रूप से प्रताड़ित करते रहे; मगर तब भी वे उनकी गुलामी और चाकरी से अलग न हो. दलित-आदिवासियों का धर्म परिवर्तन यानि हिन्दुओ के सामाजिक-धार्मिक-शोषण से हमेशा हमेशा लिए आजादी. भला यह कैसे बर्दास्त हो सकता है ?
यह कहना कि दलित-आदिवासियों का बलात धर्म परिवर्तन कराया जाता है, बेहद बोथरा तर्क है. धर्म कोई ऐसी वस्तु भी नहीं है जिसे लालच दे कर ख़रीदा जा सके. धर्म कोई बिकने वाली वस्तु नहीं है. किसी लालच में कोई अपना धर्म नहीं बदलता. यह कहना कि नौकरी या इसी तरह का लालच दे कर क्रिश्चियन मिशनरियां दलित-आदिवासियों का धर्म परिवर्तन कराती है, आसानी से गले नहीं उतरता.
दरअसल, भारत जैसे पंडे और बाबाओं के देश में अगर कोई चीज बेहद बेश्कीमती है, तो वह धर्म है. आप बिना धर्म के जिन्दा नहीं रह सकते. समाज में रहने के लिए कोई न कोई धर्म जरुरी है. हिन्दू, मुस्लिम,सिख, ईसाई...किसी न किसी खाने में आपको रहना पड़ेगा.
दलित-आदिवासियों के धर्म-परिवर्तन की वजह गरीबी और अशिक्षा है, यह बेवकूफी भरा बयां है. आप बहुसंख्यक है , आपके हाथ में सत्ता है, आप कुछ भी कह सकते हैं ? संख्या बल पर आप नीबू को केला कह सकते हैं ! मगर, इसी भय को ही तो लक्ष्य कर संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता के ग्यारंटी की बात कही गई है ?
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