Monday, July 8, 2013

In the root of Serial Bomb blast in Mahabodhi Vihar


निश्चित तौर पर बुद्धगया के महाबोधी विहार के सीरियल बम ब्लास्ट के पीछे  म्यांमार में पिछले कई दिनों से चल रहा बुद्धिस्ट-मुस्लिम  फसाद ही है . मगर, अगर इस तर्क को स्वीकार किया जाता है तो फिर, दीगर जीतनी भी आतंकवादी वारदाते हैं, साफ हो जाती है. यही कि जहाँ कही अल्पसंख्यक भय में आते हैं, उनके पास इसके आलावा कोई दूसरा चारा नहीं होता ?



Source- e-Hindustan Times 8 Jul 13
क्योंकि, लोकतान्त्रिक सिस्टम बहुसंख्या के भरोसे चलता है. आपके पास अधिसंख्या है तो मेजारिटी के बल पर आप कुछ भी कर सकते हैं. मगर तब, अल्पसंख्यक कहाँ जाए ? अपनी आयडेनटीटी  और सम्मान किस तरह सुरक्षित रखे ?  या वे खुद को बहुसंख्यकों की दया पर छोड़ दे ? यहाँ,  सवाल सिर्फ मुस्लिम का नहीं है. अल्पसंख्यक कहीं पर हिन्दू भी हो सकते हैं, क्रिश्चियन और बुद्धिस्ट भी.
Source-e-Hindustan Times 8 Jul 13
 सांस्कृतिक टकराव, 'सरवाइव आफ द फिटेस्ट' का परिणाम है. ये कोई नई बात नहीं है. दरअसल, ये प्राकृतिक फिनामिना है. आप ताकतवर है, तो जायज और नाजायज दोनों तरीके से दूसरों को कुचल सकते सकते हैं . मगर, दूसरी ओर, अगर  आप कमजोर है, तो फिर, भगवान् ही मालिक है.
मगर, यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि प्रकृति पर भी मनुष्य ने ही विजय पाया है. उसने एक व्यवस्था कायम की है. और ये व्यवस्था कहती है कि कमजोर को भी सम्मान के साथ जीने का उतना ही अधिकार है जितना की किसी बलशाली को. इसके लिए उसने कुछ रिसेर्वेशन बनाए. यह कि बलशालियों के जायज/नाजायज तरीकों पर कुछ अंकुश लगाये . अब इस व्यवस्था में अधिसंख्यक अपनी ताकत के बल पर अल्पसंख्यकों के मौलिक अधिकारों को कुचल नहीं सकते . उन्हें  इसकी ग्यारंटी के लिए जवाबदेह होना होता है .

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