Wednesday, July 24, 2013

गरीबी घट रही है


 केंद्र की सत्ता-रूढ़ कांग्रेस जिस को घेरने की बीजेपी कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती, के लिए एक अच्छी खबर है. इस खबर के अनुसार, योजना आयोग ने पिछले आठ वर्षों के दौरान देश में 15.3% गरीबी घटने का दावा किया है. सरकारी आकड़ों को माने तो  2004-5  में गरीबी का अनुपात 37.2%   था जो 2011-12 में घट कर 21.9%  हो गया है. दूसरे शब्दों में, 2004-5 में 40.71 करोड़ लोग जो बीपीएल केटेगरी में आते थे, की संख्या 2011-12 में घटकर  26.93 करोड़ हो गई है. ध्यान रहे, गणना का आधार गावों में  816/- और शहरों में 1000/- रूपये प्रति माह आय को गरीबी रेखा के ऊपर माना गया है. अर्थात गावों में 27.20 और शहरों में 33.33 रूपये प्रतिदिन कमाने वाला व्यक्ति सरकार की नजर में गरीब नहीं होता।
     बहरहाल, कांग्रेस के लिए यह एक अच्छी खबर तो होगी मगर, देश के लिए भी यह अच्छी खबर है. यह खबर  लोगों को दिलासा देती है कि कम से कम हम जहाँ के वहां तो नहीं है. दूरी लम्बी ही सही, तय हुई है.
गावं में कई दुकाने खुल गई हैं 
कुछ ही दिन हुए मैं गावं से लौटा हूँ. करीब 6 माह मुझे, एक लम्बे समय के बाद गावं में रहने का मौका मिला. निश्चित तौर पर कुछ बदला तो है. गावं के बाहर सड़क किनारे कई दुकाने खुल गई हैं जो इस बात की तस्दीक करती है कि लोगों के क्रय शक्ति में इजाफा हुआ है. साप्ताहिक बाजार में मांस-मटन की दुकाने काफी लगने  लगी हैं जो पहले हुआ ही नहीं करती थी. छोटे-छोटे बच्चों को फेंसी कपड़े पहने देख वाकई अच्छा लगता है.    
बीपीएल स्कीम के तहत मिलने वाले राशन ने तो नैतिकता के दूसरे ही मापदंड स्थापित किए हैं.राशन  दुकान वाला ही उस राशन को खरीद लेता है, जो आपको नहीं चाहिए. वह बाद में उसे बाजार में ऊँचे दाम पर बेच देता है. इधर गावं और शहर, दोनों ही जगह सरकार की इस योजना ने मजदूरों के श्रम की कीमत को नया आयाम दिया है. वे अब 40-50 रुपयों में काम पर जाना नहीं चाहते. 

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