पिछले दिनों भोपाल में एक मित्र ने किसी मीटिंग में शरीक होने के लिए कहा। मैं भी एक लम्बे समय से मीटिंगों से दूर ही था। सोचा, देखे भोपाल में किस तरह से मीटिंग होती है ? मीटिंग एक अच्छे होटल में आयोजित की गई थी।
मीटिंग में आयोजक मित्र ने जिस हस्ती से परिचय कराया, वे मिस्टर गिरधारी लाल भगत थे। भगतजी इनकम टेक्स डिपार्टमेंट में चीफ कमिश्नर के पद से रिटायर हुए थे। वैसे तो मैं भगतजी के करीब ही बैठा था, मगर, चाह कर भी मुझे उनकी बातें स्पष्ट नहीं हो रही थी। चर्चा के बाद खाने की मेज पर मैंने अपनी उत्कंठा रखी। इस पर भगतजी ने कहा कि मैं तत्सम्बंध में आयोजक से सम्पर्क कर सकता हूँ।
खैर, बात आई गई हो गई। एक दिन मित्र के पुत्र किसी दूसरे कारण से क्वार्टर पर आए। मैंने जब उस दिन के तारतम्य में अपनी उत्कंठा रखी तो मित्र-पुत्र ने कहा- "अंकल, भगतजी बीबीपी को पहली बार भोपाल में इंट्रोड्यूस कर रहे थे।"
"मगर, ये 'बीबीपी' है क्या ?"
"भारतीय बहुजन पार्टी।"
"ओह ! तो ये बात है। इसके कर्ता -धर्ता कौन है ? - मैंने पूछा।"
"भगतजी खुद इसके चेयरमेन हैं।"
"मगर राहुल, फिर और एक नई पार्टी बनाने की क्या जरुरत है ? भोपाल में इसके लिए पहले से ही बीएसपी है। लोग जानते हैं। फिर एक नई पार्टी की दरकार कैसे है ?"
"अंकल , बहनजी मनमानी करती है। लोग खासे नाराज हैं। हमारे लोग बीजेपी और कांग्रेस में जा रहे हैं। उन्हें थामना बहुत जरुरी है।"
"तो तुम क्या सोचते हो, एक नई पार्टी लांच कर तुम लोगों को रोक पाओगे ? बाबा साहब आंबेडकर के द्वारा स्थापित आरपीआई को हमारे लोग नहीं संभाल पाए। कांशीराम और मायावतीजी को समझ नहीं पा रहे हैं तो भगतजी को ये लोग कितना समझ पाएंगे ?"
"अंकल, किसी भी नई चीज के प्रति लोगों में आकर्षण होता है।"
"मगर, किस कीमत पर ? जो आम्बेडकराईट हैं, उन्हीं को बाटोगे ? अगर बीजेपी और कांगेस के वोटों को बांटने की बात होती, तो एक बार गले के नीचे उतारा जा सकता था। मगर, गिने-चुने अपने ही वोटों को फिर डिवाइड करना कहाँ की अक्लमंदी है ? क्या यह एक प्रकार से अपने ही वोटों को काटने की साजिश नहीं है ?"
मित्र-पुत्र को अब मेरी बातों में दम नज़र आने लगा था। वह जो अब तक क्रास कर रहा था, धीरे-धीरे हाँ में सर हिलाने लगा था।
- "अंकल, मुझे राजनीति की ज्यादा समझ नहीं है। मेरे पापा बताएंगे।"
"ओके। तुम मेरी बात अपने पापा तक जरुर पहुँचाना।"
"जी अंकल।"
मीटिंग में आयोजक मित्र ने जिस हस्ती से परिचय कराया, वे मिस्टर गिरधारी लाल भगत थे। भगतजी इनकम टेक्स डिपार्टमेंट में चीफ कमिश्नर के पद से रिटायर हुए थे। वैसे तो मैं भगतजी के करीब ही बैठा था, मगर, चाह कर भी मुझे उनकी बातें स्पष्ट नहीं हो रही थी। चर्चा के बाद खाने की मेज पर मैंने अपनी उत्कंठा रखी। इस पर भगतजी ने कहा कि मैं तत्सम्बंध में आयोजक से सम्पर्क कर सकता हूँ।
खैर, बात आई गई हो गई। एक दिन मित्र के पुत्र किसी दूसरे कारण से क्वार्टर पर आए। मैंने जब उस दिन के तारतम्य में अपनी उत्कंठा रखी तो मित्र-पुत्र ने कहा- "अंकल, भगतजी बीबीपी को पहली बार भोपाल में इंट्रोड्यूस कर रहे थे।"
"मगर, ये 'बीबीपी' है क्या ?"
"भारतीय बहुजन पार्टी।"
"ओह ! तो ये बात है। इसके कर्ता -धर्ता कौन है ? - मैंने पूछा।"
"भगतजी खुद इसके चेयरमेन हैं।"
"मगर राहुल, फिर और एक नई पार्टी बनाने की क्या जरुरत है ? भोपाल में इसके लिए पहले से ही बीएसपी है। लोग जानते हैं। फिर एक नई पार्टी की दरकार कैसे है ?"
"अंकल , बहनजी मनमानी करती है। लोग खासे नाराज हैं। हमारे लोग बीजेपी और कांग्रेस में जा रहे हैं। उन्हें थामना बहुत जरुरी है।"
"तो तुम क्या सोचते हो, एक नई पार्टी लांच कर तुम लोगों को रोक पाओगे ? बाबा साहब आंबेडकर के द्वारा स्थापित आरपीआई को हमारे लोग नहीं संभाल पाए। कांशीराम और मायावतीजी को समझ नहीं पा रहे हैं तो भगतजी को ये लोग कितना समझ पाएंगे ?"
"अंकल, किसी भी नई चीज के प्रति लोगों में आकर्षण होता है।"
"मगर, किस कीमत पर ? जो आम्बेडकराईट हैं, उन्हीं को बाटोगे ? अगर बीजेपी और कांगेस के वोटों को बांटने की बात होती, तो एक बार गले के नीचे उतारा जा सकता था। मगर, गिने-चुने अपने ही वोटों को फिर डिवाइड करना कहाँ की अक्लमंदी है ? क्या यह एक प्रकार से अपने ही वोटों को काटने की साजिश नहीं है ?"
मित्र-पुत्र को अब मेरी बातों में दम नज़र आने लगा था। वह जो अब तक क्रास कर रहा था, धीरे-धीरे हाँ में सर हिलाने लगा था।
- "अंकल, मुझे राजनीति की ज्यादा समझ नहीं है। मेरे पापा बताएंगे।"
"ओके। तुम मेरी बात अपने पापा तक जरुर पहुँचाना।"
"जी अंकल।"
No comments:
Post a Comment