Tuesday, September 24, 2013

Veerangana Jhalkari Bai

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photo:dalitresoursecentre.com


वीरांगना देशभक्त झलकारीबाई का जन्म 22 नव 1832 को झाँसी के पास भोजला गावं में हुआ था। आपके पिता का नाम मूलचंद और माता का नाम घानिया था। इनकी माता का देहांत बचपन में ही हो गया था। मूलचंद कोरी जाति के थे। कोरी समाज का परम्परागत पेशा कपड़ा बुनना था। झलकारीबाई सुन्दर थी।  उसे परिवार के परम्परागत पेशे से ज़रा भी रूचि न थी । उसे वीरता पूर्ण कार्य अच्छे लगते थे।
झलकारीबाई के बचपन की एक घटना जबर्दस्त है। तब, उसकी उम्र 12 वर्ष के आस-पास रही होगी। रोजमर्रा की तरह एक दिन वह जब जंगल में लकड़ी लाने गई तो उसका सामना शेर से हो जाता है। वह ज़रा भी नहीं घबराती और कुल्हाड़ी से शेर के सर पर वार करती है। शेर वही ढेर हो जाता है।  यह वाकया झलकारीबाई के अदम्य साहस, सूझ-बुझ को दर्शाता है।  

तब, बच्चों का विवाह बचपन में ही कर दिया जाता था।  झलकारी बाई का विवाह  सन 1843 में जब वह 13 वर्ष की थी, नामापुरा (झाँसी ) के पूरण से हुआ था। पूरण कोरी झाँसी के राजा गंगाधर राव की सेना में एक बहादूर सिपाही थे।  
झलकारीबाई अपने पति के कार्य से प्रभावित थी। उसके मन में भी सेना में भर्ती होने की इच्छा थी।  उसने अपनी इच्छा पति को बतलाई।  पूरण के घर में पैतृक पेशा कपड़े बुनना था। मगर, पूरण ने झलकारीबाई की इच्छा का सम्मान किया। उसने झलकारीबाई के बचपन के किस्से तो सुने ही थे। पूरण ने कहा कि वह उसके साथ है।
झलकारी बाई की क्षमता और कौशल महारानी लक्ष्मी बाई की नज़रों से भी ज्यादा दिन छिप न सका। एक और बात,  झलकारीबाई की कद-काठी रानी लक्ष्मीबाई से काफी कुछ मिलती थी। अपने इस गुणों के कारण उसे राज दरबार की सेना में नौकरी मिल गई।  कड़े परिश्रम, सैन्य कौशल और कुशल  नेतृत्व को देख कर उसे नारी सेना का कमांडर बना दिया गया।
इधर, ब्रिटिश शासन की नजरें झाँसी पर लगी हुई थी। राजा गंगाधर राव की मृत्यु होने पर झाँसी को अंग्रेजी शासन में मिला दिया गया । किन्तु , इसी बीच अंग्रेजी शासन के विरुद्ध  कई जगह से भारतीय सैनिकों ने विद्रोह कर दिया था । यह चिंगारी झाँसी तक आ चुकी थी ।
झाँसी में भी यह विद्रोह फुट पड़ता है। किले के बाहर अंग्रेजी सेना और विद्रोही भारतीय सैनिकों के बीच भीषण युद्ध छिड़ता है। ब्रिटिश सेना ने किले को चारों और से घेर लिया था। विद्रोही क्रन्तिकारी भारतीय सैनिक भी पूरी ताकत से ब्रिटिश सेना का मुकाबला करती है। झलकारीबाई भी अपनी पलटन के साथ दुश्मनों पर टूट पड़ती है।
इसी बीच रानी लक्ष्मीबाई अपने छोटे-से बेटे दामोदर राव को लेकर चुपके से किले के बाहर निकल जाती है। जब महारानी काफी दूर निकल जाती है तब झलकारीबाई अपने आप को लक्ष्मीबाई के वेश में आ कर ब्रिटिश सेना को ललकारती है। वह ब्रिटिश सेना को बेवकूफ बनाती है।
 युद्ध भूमि मार-काट मचाती झलकारी बाई के पास तभी दो खबरे आती हैं।  यह की लक्ष्मीबाई बिठुर पहुँच गई और दूसरी की उसके पति पूरण कोरी शहीद हो गए।  वह घोड़े को उस तरफ मोडती है जहाँ उसके पति का शव पड़ा था। वह अपने पति के पैर छू कर एक बार फिर ब्रिटिश सेना पर टूट पड़ती है। झलकारी बाई आंधी की तरह ब्रिटिश सेना को काटती है।  तभी एक गोली उसके सीने के आर-पार होती है। वह घोड़े से गिर पडती है।
भारतीय नारी के इस शहादत  पर ब्रिटिश सेनापति जनरल हुरोज लिखते हैं -'If Indian women were like Jhalkaari, we would soon have to leave this country. 'मगर, भारत का इतिहास लिखने वाले इतिहासकारों और लेखकों को झलकारीबाई की यह शहादत नहीं दिखती। हिंदी साहित्य के हस्ताक्षर कहलाने वाली लेखिका सुभ्रदा कुमारी चौहान की यह पंक्तियाँ तो आप ने चौथी-पांचवीं की किताब में पढ़ी होगी - 'खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।' धर्म-शास्त्र तो ठीक है, कलम के इन ठेकेदारों ने इतिहास को भी नहीं छोड़ा मनुस्मृति के नियम लादने।  

2 comments:

  1. kori samaj ka itihaas gaurabhshali hai

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  2. कोंन सी मनुस्मृति भाई झलकारी बाई जी के बारे में एक पाठ भी पठाया जाता है,छुपाया जाता तो आज हम सब कैसे जानते।

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