Monday, February 3, 2014

कविता (3)

30 . 12 . 2013

चलो भी, चलते हैं
रास्ते -
कहीं पीछे न छूट जाए
मुलाकात; हो भी सकती है
और नहीं भी
आगे -
बढ़ो भी,
अब पीछे कौन जाए ?

                  -अ ला उके          
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