Saturday, February 1, 2014

बयां जुदा जुदा (3)

बयां जुदा जुदा

वो झूठ बोल रहा था, बड़े सलीक़े से
मैं एतबार न करता, तो और क्या करता।
                                - 'वसीम' बरेलवी

तुम्हारे जिस्म हैं पत्थर के, डूब जावोगे
ये मशविरा है समुन्दर को पार मत करना।
                                - 'जख्मी' मेरठी

ये तेरी आँख के तेवर बता रहे हैं मुझे
कोई तो बात तुझे नागवार गुज़री है।                          

यहां हमें कोई प्यार के क़ाबिल नहीं मिलता
कोई दिल से नहीं मिलता, किसी से दिल नहीं मिलता।
                                  - दास चतुर्वेदी

 
नुमाईश तो गुलाबों की है,  लेकिन
फ़ज़ा से खून की बू आ रही है।
                         -होश नोमानी

परिंदों में फ़िरक़ा परस्ती नहीं देखी
कभी मंदिर पे जा बैठे , कभी मस्ज़िद पे जा बैठे।
                                 - नूर तक़ी 'नूर'


दरअसल , वे साबित हुए बिखरे हुए पन्ने
जो खुद को कह रहे थे मुकम्मल किताब हूँ मैं।
                                    - कृष्णानंद चौबे


बादशाहों का इंतज़ार करे
इतनी फ़ुर्सत कहाँ फ़क़ीरों को।
                        - नवाज़ देवबंदी


यह सियासत की तवायफ़ का दुपट्टा है
ये किसी के आंसुओं से तर नहीं होता।
                           - शिव ओम अंबर


अमीरी में हमें ग़ुर्बत के दिन याद आ गए
कार में बैठा हुआ था, पैदल सफ़र करता रहा।
                               -विजेंद्र सिंह 'परवाज़ '


तमाम दिन जो कड़ी धूप में झुलसते हैं
वही दरख्त तो मुसाफिर को छाँव देते हैं।
                          - बुद्धिसेन शर्मा

------------------------------------------------------------------
स्रोत -हिंदुस्तानी ग़ज़ले :सम्पा कमलेश्वर

No comments:

Post a Comment