बौद्ध समाज में जो धम्मानुसार आचरण करता है, उसे ‘उपासक’ अथवा ‘उपासिका’ कहा जाता है। आइए देखें कि बुद्ध की दृष्टि में एक ‘उपासक’ के क्या गुण हैं?
26. ‘‘कित्तावता(किस प्रकार) नु खो भन्ते, उपासको होति?’’-जीवको भगवन्तं एतद वोच।
‘‘यतो(जब से) खो जीवक, बुद्धं सरणं गतो(गया) होति(होता है), धम्मं सरणं गतो होति, संघं सरणं गतो होति, एत्तावता(इस प्रकार) खो जीवक, उपासको होति।’’ -भगवा एतद वोच।
‘‘कित्तावता पन, भन्ते, उपासको सीलवा(सीलवान) होति?’’
‘‘यतो खो जीवक, उपासको पाणातिपाता पटिविरतो(प्रति-विरत/विरत ) होति.....सुरामेरयमज्जपमादट्ठाना पटि-विरतो होति, एत्तावता खो जीवक, उपासको सीलवा होति।
‘‘कित्तावता पन, भन्ते, उपासको अत्त-हिताय(स्व-हित) पटिपन्नो (पद पर आरूढ़/पदारूढ़) होति, नो(न) पर-हिताय(दूसरे के हित)?
‘‘यतो खो जीवक, उपासको अत्तना’व(स्वयं ही) सद्धा-सम्पन्नो होति, नो(न) परं(दूसरे को) सद्धा-सम्पदाय(सद्धा-सम्पन्न होने की) समादपेति(प्रेरणा देता है)......अत्तना’व(स्वयं ही) अत्थ-मञ्ञाय(अर्थ-चिंतन) धम्म-मञ्ञाय(धम्म-चिंतन) धम्मानुधम्मप्पटिपन्नो(धम्मानुसार जीवन जीने वाला) होति, नो परं धम्मानुधम्म-पटिपत्तिया समादपेति। एत्तावता खो जीवक, उपासको अत्त-हिताय पटिपन्नो होति, नो पर-हिताय।’’
‘‘कित्तावता पन, भन्ते, उपासको अत्त-हिताय च पटिपन्नो होति, पर-हिताय च?’’
‘‘यतो खो जीवक, उपासको अत्तना(स्वयं) च सद्धा-सम्पन्नो होति, परं च सद्धम्मस्सवने(सद्धम्म सुनने की) समादपेति; अत्तना च सीलसम्पन्नो होति, परं च सीलसम्पदाय समादपेति; अत्तना च चाग-सम्पन्नो(त्याग से सम्पन्न) होति, परं च चाग-सम्पदाय समादपेति; अत्तना च भिक्खूनं(भिक्खुओं के) दस्सनकामो(दर्शन की इच्छा वाला) होति, परं च भिक्खूनं दस्सने समादपेति; अत्तना च सद्धम्म सोतुकामो(सुनने की इच्छा वाला) होति, परं च सद्धम्मस्सवने समादपेति; अत्तना च सुतानं(सुने हुए) धम्मानं(धर्म्मों के) अत्थ(अर्थ) उप-परिक्खिता(परिक्षण करने वाला) होति, परं च अत्थ उप-परिक्खिाय समादपेति; अत्तना च अत्थ-मञ्ञाय धम्म-मञ्ञाय धम्मानुधम्मप्पटिपन्नो होति, परं च धम्मानुधम्मप्पटिपत्तिया समादपेति। एत्तावता खो जीवक, उपासको अत्त-हिताय च पटिपन्नो होति पर-हिताय च(जीवक सुत्तः गहपतिवग्गोः अट्ठनिपात पाळिः अ. नि.)। प्रस्तुति - अ. ला. ऊके
26. ‘‘कित्तावता(किस प्रकार) नु खो भन्ते, उपासको होति?’’-जीवको भगवन्तं एतद वोच।
‘‘यतो(जब से) खो जीवक, बुद्धं सरणं गतो(गया) होति(होता है), धम्मं सरणं गतो होति, संघं सरणं गतो होति, एत्तावता(इस प्रकार) खो जीवक, उपासको होति।’’ -भगवा एतद वोच।
‘‘कित्तावता पन, भन्ते, उपासको सीलवा(सीलवान) होति?’’
‘‘यतो खो जीवक, उपासको पाणातिपाता पटिविरतो(प्रति-विरत/विरत ) होति.....सुरामेरयमज्जपमादट्ठाना पटि-विरतो होति, एत्तावता खो जीवक, उपासको सीलवा होति।
‘‘कित्तावता पन, भन्ते, उपासको अत्त-हिताय(स्व-हित) पटिपन्नो (पद पर आरूढ़/पदारूढ़) होति, नो(न) पर-हिताय(दूसरे के हित)?
‘‘यतो खो जीवक, उपासको अत्तना’व(स्वयं ही) सद्धा-सम्पन्नो होति, नो(न) परं(दूसरे को) सद्धा-सम्पदाय(सद्धा-सम्पन्न होने की) समादपेति(प्रेरणा देता है)......अत्तना’व(स्वयं ही) अत्थ-मञ्ञाय(अर्थ-चिंतन) धम्म-मञ्ञाय(धम्म-चिंतन) धम्मानुधम्मप्पटिपन्नो(धम्मानुसार जीवन जीने वाला) होति, नो परं धम्मानुधम्म-पटिपत्तिया समादपेति। एत्तावता खो जीवक, उपासको अत्त-हिताय पटिपन्नो होति, नो पर-हिताय।’’
‘‘कित्तावता पन, भन्ते, उपासको अत्त-हिताय च पटिपन्नो होति, पर-हिताय च?’’
‘‘यतो खो जीवक, उपासको अत्तना(स्वयं) च सद्धा-सम्पन्नो होति, परं च सद्धम्मस्सवने(सद्धम्म सुनने की) समादपेति; अत्तना च सीलसम्पन्नो होति, परं च सीलसम्पदाय समादपेति; अत्तना च चाग-सम्पन्नो(त्याग से सम्पन्न) होति, परं च चाग-सम्पदाय समादपेति; अत्तना च भिक्खूनं(भिक्खुओं के) दस्सनकामो(दर्शन की इच्छा वाला) होति, परं च भिक्खूनं दस्सने समादपेति; अत्तना च सद्धम्म सोतुकामो(सुनने की इच्छा वाला) होति, परं च सद्धम्मस्सवने समादपेति; अत्तना च सुतानं(सुने हुए) धम्मानं(धर्म्मों के) अत्थ(अर्थ) उप-परिक्खिता(परिक्षण करने वाला) होति, परं च अत्थ उप-परिक्खिाय समादपेति; अत्तना च अत्थ-मञ्ञाय धम्म-मञ्ञाय धम्मानुधम्मप्पटिपन्नो होति, परं च धम्मानुधम्मप्पटिपत्तिया समादपेति। एत्तावता खो जीवक, उपासको अत्त-हिताय च पटिपन्नो होति पर-हिताय च(जीवक सुत्तः गहपतिवग्गोः अट्ठनिपात पाळिः अ. नि.)। प्रस्तुति - अ. ला. ऊके
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