Tuesday, January 30, 2018

तलाश, एक अदद मकान की

तलाश, भोपाल में एक अदद  मकान की
यूँ मकान अपना रायपुर में भी है। एक क्या, दो-दो हैं।  किन्तु अगर इरादा बसने  भोपाल का हो, तो क्या किया जा सकता है?

 वैसे, मकान की जरुरत आपको नहीं होती, घर-वाली को होती है। घर-वाली का अर्थ ही होता है, मकान वाली। तंज घर-वाली पर नहीं उसकी फितरत पर है।

छोटी बिटिया की शादी निपटाने के बाद प्रश्न खड़ा हुआ कि  सरकारी आवास छोड़ कर सामान शिफ्ट किया जाए।  मगर कहाँ ?  घरवाली अड़ गई कि  मुझे अब अकेले नहीं रहना है। बच्चों की पढाई लिखाई के चक्कर में अकेले रहते-रहते आधी से अधिक  उम्र निकल गई और ऊपर से ढलती उम्र को अपने आगोश में लेती तरह-तरह की बीमारियां।

 सबसे बड़ी बात, छोटा लड़का भोपाल में पिछले कई सालों से रह रहा था। अब तो उसकी शादी भी हो गई थी. बड़े लड़के ने विदेश में घर बना लिया।  जाहिर है, वहां के दरवाजे बंद हो गए। इसे आप यों  भी कह सकते हैं कि  दरवाजे बंद करने के लिए उसने वहां घर ले लिया।

तय हुआ कि भोपाल में मकान देखा जाए।
इधर शहरों में आलम ये है की आप को घर लेना हो या गाड़ी, मुहं से जबान निकालो और देखो  एजेंट आपकी आवभगत शुरू कर देंगे। घर अथवा गाड़ी की पसंद से लेकर लोन तक का इंतजाम चाय पीते-पीते  हो जायेगा। एजेंट तरह तरह के ऑप्शन लेकर आपके आगे पीछे ऐसे घूमते हैं की जैसे  घर की जरुरत आपको नहीं  उनको है। बहरहाल, घर फाईनल हुआ। हम से ज्यादा एजेंट खुश हुआ।

घरवाली ने कहा कि गृह प्रवेश के समय परित्राण पाठ करवाना है। भंतेजी को ले आना है। पूजा का सामान लाना है। आखिर आस-पड़ोस के लोगों को पता तो चले।  लोगों को इस बात से दरकार नहीं होती कि आप परित्राण पाठ करवाते हैं या सत्य नारायण की कथा।  उन्हें पूजा से मतलब होता है। हमने भी सारी मित्र-मंडली को आमंत्रित कर दिया । शानदार भोजन कराया। आप भी खुश, घरवाली भी खुश।          










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