Saturday, April 13, 2019

आस्था और हम

राम राज्य की थ्योरी, 
भ्रामक-सी लगती है
तमाम आस्था के बावजूद 
टिक नहीं पाते, सतही तौर पर
विरासत में मिले संस्कार
उभर कर तैर आते हैं
अनुत्तीर्ण, अनसुलझे
प्रश्न ?
आज की पीढ़ी
किंकर्त्तव्य विमूढ़-सी
है चौराहे पर खड़ी
और पथ
प्रश्न-चिन्ह-सा
जड़ गया है ताला
शब्दों, अर्थों की
व्यवस्था पर
दोष
यही तो प्रश्न है
है किसका ?
तमाम कोशिशों के बावजूद
सतत फिसलन
अन्दर
पिघलता-सा लावा
जलता हुआ
धधकता हुआ !

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