Wednesday, June 26, 2019

What crisis mean ?

What crisis mean ?
अगर विचारधाराओं को लड़ाई है तो युद्ध में सिर्फ दो विचारधाराएं रहें; आरएसएस विचारधारा और गैर-आरएसएस विचारधारा. इससे दुश्मन की पहचान आसान और युद्ध निर्णायक हो जायेगा. परन्तु, ऐसा क्यों होता है कि आरएसएस विचारधारा के वोट कन्सोलिडेट हो जाते हैं किन्तु गैर आरएसएस विचारधारा के वोट कांग्रेस और गैर कांग्रेस तथा गैर कांग्रेसी वोट सपा, बसपा जैसी सैकड़ों-हजारों पार्टियों में बंटते जाते हैं, बंटते जाते हैं ?
आरएसएस के लिए यह ठीक हो सकता है कि गैर बीजेपी वोट बंटे रहें, और तत्सम्बंध में वह अनुरूप माहौल भी निर्मित करें. किन्तु कांग्रेस सहित विपक्षी पार्टियों के लिए यह किस तरह चिंता का विषय नहीं है, यह भयावह है ?
निस्संदेह, आरएसएस विचारधारा के लिए मुद्दे आसान है. पचास से अधिक वर्षों में रहते कांग्रेस की नाकामियां, मुस्लिम तुष्टिकरण, गऊ भक्ति, राम मंदिर आदि तमाम मुद्दे हैं, जिन पर वोटों का ध्रुवीकरण किया जा सकता हैं और जिसके लिए बेशक, कांग्रेस जिम्मेदार हैं. मगर, इसकी कीमत धार्मिक ध्रुवीकरण नहीं है. यह एक धर्म-निरपेक्ष राज्य और लोकतान्त्रिक संरचना के लिए घातक है.
हिन्दुओं के लिए एक 'हिन्दू राष्ट्र'' ठीक हो सकता है किन्तु गैर हिन्दुओं, दलित-आदिवासियों के लिए यह 'रामराज्य' ठीक कैसे हो सकता है ? और, कांग्रेस की किंकर्तव्य मूढ़ता के लिए भी यह 'रामराज्य' ही जिम्मेदार हैं ! बोये पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय ?
दक्षिण की पेरियार विचारधारा और उत्तर-मध्य भारत की अम्बेडकर-मार्क्सवादी विचारधारा, आरएसएस विचारधारा को माकूल जवाब दे सकती है. हमें लगता है, आगे आने वाले दिनों में, आरएसएस विचारधारा के लोग दलित और अल्पसंख्यकों पर जैसे-जैसे आक्रामक होंगे, वह क्राईसिस(crisis) पैदा होगी जब 'मेटर' और 'एंटी-मेटर' रियक्ट करेंगे और तब, 'क्रांति' को रोकना नामुमकिन होगा.

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