ॐ की 3 मात्राएं हैं- 'अ', 'उ', 'म' । 'अ' तथा 'उ' पूर्ण मात्राएं हैं और 'म' आधी मात्रा । इसलिए ॐ को ढाई मात्रा भी कहा गया है।
हिन्दू धर्मग्रन्थ और ॐ -
कठोपनिषद (दूसरी वल्लरी- 16 ) के अनुसार- 'यह ॐ एक अक्षर है , परन्तु यही ब्रह्म है, यही सबसे परे है, इसी अक्षर को जान कर जो कुछ चाहता है, उसे वह प्राप्त हो जाता है।' माण्डूक्य उपनिषद(8.10.11.12 ) के अनुसार, 'ॐ में अ, उ, म शरीर की जाग्रत, स्वप्न, सुसुप्ति अवस्था के प्रतिनिधि हैं। प्रश्न उपनिषद में ॐ को मृत्यमय बताया गया है। ॐ को कहीं रजोगुण, सतोगुण और तमोगुण तो कहीं ब्रह्मा, विष्णु, महेश बताया गया है। कहीं कहा गया है कि ॐ की आवाज फटने से ब्रह्मांड पैदा हुआ, तो कहीं इसे गंगा,यमुना और सरस्वती का संगम अर्थात प्रयाग कहा गया है।
ॐ और बुद्ध-
बुद्ध को किसी भी मन्त्र में ऐसा कुछ दिखाई नहीं दिया जो मानव के नैतिक उत्थान में सहायक हो। बुद्ध ने वेदों को इस योग्य नहीं समझा कि उनसे कुछ सीखा और ग्रहण किया जा सकें। सृष्टि कर्ता के बारे में हो या ब्रह्म के बारे में, उपनिषदों की स्थापना को बुद्ध ने शुद्ध कल्पना समझ अस्वीकार कर दिया(बुद्धा एंड हिज धम्मा: बी आर अम्बेडकर )।
महायानी बौद्ध परम्परा-
तिब्बती महायानी बौद्ध परम्परा में 'ॐ मणि पद्मे हूँ' 'अवलोकितेश्वर' का मन्त्र है। अवलोकितेश्वर 'बोधिसत्व' है। 'सद्धर्मपुंडरिक सूत्र' के 24 वें परिवर्त में अवलोकितेश्वर का बखान है। अवलोकितेश्वर का स्थान पोतलक पर्वत है। और तो और, तिब्बती गुरु 'दलाई लामा' अवलोकितेश्वर के अवतार माने जाते हैं ! महायानी बौद्ध, अधिकतर कम पढ़े-लिखे, इसका जप करते देखे जा सकते हैं।
हिन्दू संत परम्परा-
इस दिशा में संत परम्परा हिन्दू उपनिषदों से एक हाथ आगे हैं। यहाँ, संतों ने ॐ को ढाई के स्थान पर साढ़े तीन मात्रा कही है- अ उ म और अर्द्ध चंद्र। अर्द्ध चन्द्र को आधी मात्रा कह कर उसे 'तुर्या' अवस्था कहा गया है। यथा- "प्रणवा चि अर्द्ध मात्रा। ते तुर्या जान गा मैत्रा।
तया चे स्थान पवित्रा। ब्रह्मरन्ध्र जानावे।।"
कबीर का ॐ -
कबीर ने तो ॐ की खूब खबर ली है-
"ॐ कार आदि सो जाने। लिख के मेटे ताहि सो माने।
ॐ कार कहे सब कोई, जिन यह लखा सो बिरला होई (बीजक: ग्यान चौतीसा)।
ॐ और बाबासाहब अम्बेडकर-
चाहे दूसरा विवाह हो अथवा बुद्ध की शरण; बाबासाहब अम्बेडकर के चिन्तन को 'हिन्दू परिधि' में रखने का प्रयास किया जाता रहा, जो सतत जारी है। चाहे 'विपस्सना' के मार्फ़त अम्बेडकरी आन्दोलन को दंतहीन बनाना हो या सामाजिक समरसता की आड़ में 22 प्रतिज्ञाओं को नकारना । कई विचारक सिद्ध करने में लगे हैं कि बाबासाहब अम्बेडकर न सिर्फ विपस्सना करते थे वरन 'ॐ मणि पद्मे हूँ' मन्त्र का जाप करते थे ?
ॐ और बाबा रामदेव-
रामदेव बाबा का योगा ॐ से ही शुरू होता है। सूर्य नमस्कार हो या प्राणायाम, प्रारंभ ॐ से होता है। चूँकि ॐ को ब्रह्म या ब्रह्मा, विष्णु और महेश त्रिमूर्ति से जोड़ा जाता है, इसलिए कई गैर हिन्दू न ॐ बोलते हैं, न योगा करते हैं।
हिन्दू धर्मग्रन्थ और ॐ -
कठोपनिषद (दूसरी वल्लरी- 16 ) के अनुसार- 'यह ॐ एक अक्षर है , परन्तु यही ब्रह्म है, यही सबसे परे है, इसी अक्षर को जान कर जो कुछ चाहता है, उसे वह प्राप्त हो जाता है।' माण्डूक्य उपनिषद(8.10.11.12 ) के अनुसार, 'ॐ में अ, उ, म शरीर की जाग्रत, स्वप्न, सुसुप्ति अवस्था के प्रतिनिधि हैं। प्रश्न उपनिषद में ॐ को मृत्यमय बताया गया है। ॐ को कहीं रजोगुण, सतोगुण और तमोगुण तो कहीं ब्रह्मा, विष्णु, महेश बताया गया है। कहीं कहा गया है कि ॐ की आवाज फटने से ब्रह्मांड पैदा हुआ, तो कहीं इसे गंगा,यमुना और सरस्वती का संगम अर्थात प्रयाग कहा गया है।
ॐ और बुद्ध-
बुद्ध को किसी भी मन्त्र में ऐसा कुछ दिखाई नहीं दिया जो मानव के नैतिक उत्थान में सहायक हो। बुद्ध ने वेदों को इस योग्य नहीं समझा कि उनसे कुछ सीखा और ग्रहण किया जा सकें। सृष्टि कर्ता के बारे में हो या ब्रह्म के बारे में, उपनिषदों की स्थापना को बुद्ध ने शुद्ध कल्पना समझ अस्वीकार कर दिया(बुद्धा एंड हिज धम्मा: बी आर अम्बेडकर )।
महायानी बौद्ध परम्परा-
तिब्बती महायानी बौद्ध परम्परा में 'ॐ मणि पद्मे हूँ' 'अवलोकितेश्वर' का मन्त्र है। अवलोकितेश्वर 'बोधिसत्व' है। 'सद्धर्मपुंडरिक सूत्र' के 24 वें परिवर्त में अवलोकितेश्वर का बखान है। अवलोकितेश्वर का स्थान पोतलक पर्वत है। और तो और, तिब्बती गुरु 'दलाई लामा' अवलोकितेश्वर के अवतार माने जाते हैं ! महायानी बौद्ध, अधिकतर कम पढ़े-लिखे, इसका जप करते देखे जा सकते हैं।
हिन्दू संत परम्परा-
इस दिशा में संत परम्परा हिन्दू उपनिषदों से एक हाथ आगे हैं। यहाँ, संतों ने ॐ को ढाई के स्थान पर साढ़े तीन मात्रा कही है- अ उ म और अर्द्ध चंद्र। अर्द्ध चन्द्र को आधी मात्रा कह कर उसे 'तुर्या' अवस्था कहा गया है। यथा- "प्रणवा चि अर्द्ध मात्रा। ते तुर्या जान गा मैत्रा।
तया चे स्थान पवित्रा। ब्रह्मरन्ध्र जानावे।।"
कबीर का ॐ -
कबीर ने तो ॐ की खूब खबर ली है-
"ॐ कार आदि सो जाने। लिख के मेटे ताहि सो माने।
ॐ कार कहे सब कोई, जिन यह लखा सो बिरला होई (बीजक: ग्यान चौतीसा)।
ॐ और बाबासाहब अम्बेडकर-
चाहे दूसरा विवाह हो अथवा बुद्ध की शरण; बाबासाहब अम्बेडकर के चिन्तन को 'हिन्दू परिधि' में रखने का प्रयास किया जाता रहा, जो सतत जारी है। चाहे 'विपस्सना' के मार्फ़त अम्बेडकरी आन्दोलन को दंतहीन बनाना हो या सामाजिक समरसता की आड़ में 22 प्रतिज्ञाओं को नकारना । कई विचारक सिद्ध करने में लगे हैं कि बाबासाहब अम्बेडकर न सिर्फ विपस्सना करते थे वरन 'ॐ मणि पद्मे हूँ' मन्त्र का जाप करते थे ?
ॐ और बाबा रामदेव-
रामदेव बाबा का योगा ॐ से ही शुरू होता है। सूर्य नमस्कार हो या प्राणायाम, प्रारंभ ॐ से होता है। चूँकि ॐ को ब्रह्म या ब्रह्मा, विष्णु और महेश त्रिमूर्ति से जोड़ा जाता है, इसलिए कई गैर हिन्दू न ॐ बोलते हैं, न योगा करते हैं।
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