‘‘कथं भदन्तो ञायति, किं नामोसि भन्ते ?"
"भदंत कैसे जाने जाते हैं, भंते ! आपका क्या नाम है ?"
अथ खो यवनो राजा मिलिन्दो आयस्समन्तं नागसेनं एतदवोच।
यवन राजा मिलिन्द ने आयु. भंते नागसेन को ऐसा कहा।
‘‘नागसेनो महाराज, अहं तं नामेन ञायामि।’’
‘नागसेन महाराज, मैं उस नाम से जाना जाता हूँ ।’’
‘‘मं महाराज, सहचारी नागसेनो‘ति नामेन जानन्ति।’’
‘मुझको महाराज, सहचारी नागसेन नाम से ही जानते हैं ।’’
‘‘अपि च महाराज, संखा समञ्ञा पञ्ञा ति वोहारो ,
"किन्तु महाराज, यह यवहार मात्र के लिए संज्ञा है,
‘‘नागसेन नामेन सचे यो कोचि पुग्गलो न उपलब्भति।"
" नागसेन नाम से यथार्थ में ऐसा कोई पुग्गल पुरिस नहीं है।’’
‘‘यदि भन्ते नागसेन!
"यदि भंते नागसेन !
नागसेन नामेन सचे यो कोचि पुग्गलो न उपलब्भति
‘‘नागसेन नाम से यदि कोई ऐसा पुरिस नहीं है
को चरहि तुम्हाकं पिण्डपातं,
तो आपका पिंडपात कौन करता है,
को तं परिभुञ्जति, को सील रक्खति....?’’
कौन उसका भोग करता है, कौन सील की रक्षा करता है......?’’
‘‘नागसेनो तं, सहचारी समुदाचरन्ति, यं वदेसि।
‘‘नागसेन नाम से सहचारी आपको पुकारते हैं; आप ऐसा कहते हैं।
को एत्थ नागसेनो?’’
तो यह नागसेन कौन है?"
‘‘किं नु खो भन्ते! केसा नागसेनो?’’
‘‘भंते ! क्या ये केस नागसेन है?’’
‘‘न हि महाराज!’’
‘‘हदयं नागसेनो?’’
‘‘न हि महाराज!’’
किं नु खो भन्ते! रूपं नागसेनो?
‘‘न हि महाराज!’’
‘‘विञ्ञाण नागसेनो?’’
‘‘न हि महाराज!’’
‘‘तं अहं भन्ते! पूच्छन्तो-पूच्छन्तो न पस्सामि नागसेनं, को पन एत्थ नागसेनो?’’
‘‘ आपको मैं भन्ते! पूछते-पूछते थक गया, नागसेन क्या है, इसका पता नहीं लगा। आखिर, नागसेन है कौन?’’
‘‘अलिकं त्वं भन्ते! भाससि मुसावादं, नत्थि नागसेनो।’’
‘‘भन्ते! आप झूठ बोलते हैं कि नागसेन कोई नहीं है।’’
अथ खो आयस्मा नागसेनो मिलिन्दं राजानं एतद वोच-
तब आयुस्मान नागसेन ने राजा मिलिन्द से कहा-
‘‘किं नु खो महाराज! त्वं पादेन आगतोसि, उदाहु वाहनेन।’’
‘‘महाराज! क्या आप पैदल चल कर यहां आए हैं या किसी सवारी पर?’’
‘‘न अहं भन्ते, पादेन आगच्छामि। अहं रथेन आगतो अस्मि।
‘‘भन्ते! मैं पैदल नहीं, रथ पर आया हूं।’’
‘‘सचे त्वं महाराज! रथेन आगतोसि, रथं मे आरोचेहि।
‘‘महाराज! यदि आप रथ पर आए तो मुझे बताए कि रथ कहां है।
किं नु खो महाराज! ईसा रथो?’’
क्या अक्ष रथ है?’’
‘‘न हि भन्ते’’ति।
‘‘चक्कानि रथो?’’
‘‘न हि भन्ते!’’
‘‘रथ-पंजर रथो?’’
‘‘न हि भन्ते!’’
‘‘रथ-दण्डको रथो?’’
‘‘न हि भन्ते।’’
‘‘तं अहं महाराज, पूच्छन्तो-पूच्छन्तो न पस्सामि रथं, को पन अथ रथो?’’
‘‘आपको मैं महाराज! पूछते-पूछते थक गया किन्तु पता नहीं लगा कि रथ क्या है।’’
‘‘अलिकं त्वं महाराज, भाससि मुसावादं, न अत्थि रथो।’’
‘‘झूठे हैं आप महाराज, झूठ बोलते हैं कि रथ नहीं है।’’
‘‘त्वं सि महाराज, सकल जम्बुदीपे अग्गराजा। कस्स पन त्वं भायित्वा मुसावादं भाससि?’’
‘‘महाराज! सारे जम्बुदीप के आप अग्र-राजा है। भला किससे डर कर आप झूठ बोलते हैं?’’
अथ खो मिलिन्दो राजा आयस्मन्तं नागसेनं एतदवोच- ‘‘न अहं भन्ते नागसेन, मुसा भणामि।’’
तब, राजा मिलिन्द ने आयुस्मान नागसेन से कहा- ‘‘भन्ते नागसेन! मैं झूठ नहीं बोलता।’’
‘‘भन्ते नागसेन, ईसं च पटिच्च अंग-सम्भारा रथो सद्दो होति।’’
‘‘भन्ते नागसेन, ईस इत्यादि अवयवों(सम्भारा) के आधार पर ‘रथ’ संज्ञा होती है।’’
‘‘साधु खो त्वं महाराज, रथं जानासि।’’
‘‘महाराज! बहुत ठीक, आपने जान लिया कि रथ क्या है।’’
‘‘एवमेव खो महाराज, मय्हं अपि केसे च ‘नागसेनो’ सञ्ञा समञ्ञा पञ्ञा ति वोहारो नाममत्तं पवत्तति।’’
‘‘इसी प्रकार मेरे केस इत्यादि के आधार पर व्यवहार के लिए ‘नागसेन’ नाम होता है।’’
‘‘अच्छरियं, भन्ते नागसेन, अब्भुतं, भन्ते नागसेन।’’
‘‘आश्चर्य है, भन्ते नागसेन! अद्भूत है, भन्ते नागसेन!’’
‘‘अतिचित्रानि, पन्ह पटिभानानि विसज्जितानि।’’
‘‘बड़ी खूबी और प्रत्युत्पन्न-मति(पटिभान) से इस प्रश्न को सुलझा दिया।’’
"भदंत कैसे जाने जाते हैं, भंते ! आपका क्या नाम है ?"
अथ खो यवनो राजा मिलिन्दो आयस्समन्तं नागसेनं एतदवोच।
यवन राजा मिलिन्द ने आयु. भंते नागसेन को ऐसा कहा।
‘‘नागसेनो महाराज, अहं तं नामेन ञायामि।’’
‘नागसेन महाराज, मैं उस नाम से जाना जाता हूँ ।’’
‘‘मं महाराज, सहचारी नागसेनो‘ति नामेन जानन्ति।’’
‘मुझको महाराज, सहचारी नागसेन नाम से ही जानते हैं ।’’
‘‘अपि च महाराज, संखा समञ्ञा पञ्ञा ति वोहारो ,
"किन्तु महाराज, यह यवहार मात्र के लिए संज्ञा है,
‘‘नागसेन नामेन सचे यो कोचि पुग्गलो न उपलब्भति।"
" नागसेन नाम से यथार्थ में ऐसा कोई पुग्गल पुरिस नहीं है।’’
‘‘यदि भन्ते नागसेन!
"यदि भंते नागसेन !
नागसेन नामेन सचे यो कोचि पुग्गलो न उपलब्भति
‘‘नागसेन नाम से यदि कोई ऐसा पुरिस नहीं है
को चरहि तुम्हाकं पिण्डपातं,
तो आपका पिंडपात कौन करता है,
को तं परिभुञ्जति, को सील रक्खति....?’’
कौन उसका भोग करता है, कौन सील की रक्षा करता है......?’’
‘‘नागसेनो तं, सहचारी समुदाचरन्ति, यं वदेसि।
‘‘नागसेन नाम से सहचारी आपको पुकारते हैं; आप ऐसा कहते हैं।
को एत्थ नागसेनो?’’
तो यह नागसेन कौन है?"
‘‘किं नु खो भन्ते! केसा नागसेनो?’’
‘‘भंते ! क्या ये केस नागसेन है?’’
‘‘न हि महाराज!’’
‘‘हदयं नागसेनो?’’
‘‘न हि महाराज!’’
किं नु खो भन्ते! रूपं नागसेनो?
‘‘न हि महाराज!’’
‘‘विञ्ञाण नागसेनो?’’
‘‘न हि महाराज!’’
‘‘तं अहं भन्ते! पूच्छन्तो-पूच्छन्तो न पस्सामि नागसेनं, को पन एत्थ नागसेनो?’’
‘‘ आपको मैं भन्ते! पूछते-पूछते थक गया, नागसेन क्या है, इसका पता नहीं लगा। आखिर, नागसेन है कौन?’’
‘‘अलिकं त्वं भन्ते! भाससि मुसावादं, नत्थि नागसेनो।’’
‘‘भन्ते! आप झूठ बोलते हैं कि नागसेन कोई नहीं है।’’
अथ खो आयस्मा नागसेनो मिलिन्दं राजानं एतद वोच-
तब आयुस्मान नागसेन ने राजा मिलिन्द से कहा-
‘‘किं नु खो महाराज! त्वं पादेन आगतोसि, उदाहु वाहनेन।’’
‘‘महाराज! क्या आप पैदल चल कर यहां आए हैं या किसी सवारी पर?’’
‘‘न अहं भन्ते, पादेन आगच्छामि। अहं रथेन आगतो अस्मि।
‘‘भन्ते! मैं पैदल नहीं, रथ पर आया हूं।’’
‘‘सचे त्वं महाराज! रथेन आगतोसि, रथं मे आरोचेहि।
‘‘महाराज! यदि आप रथ पर आए तो मुझे बताए कि रथ कहां है।
किं नु खो महाराज! ईसा रथो?’’
क्या अक्ष रथ है?’’
‘‘न हि भन्ते’’ति।
‘‘चक्कानि रथो?’’
‘‘न हि भन्ते!’’
‘‘रथ-पंजर रथो?’’
‘‘न हि भन्ते!’’
‘‘रथ-दण्डको रथो?’’
‘‘न हि भन्ते।’’
‘‘तं अहं महाराज, पूच्छन्तो-पूच्छन्तो न पस्सामि रथं, को पन अथ रथो?’’
‘‘आपको मैं महाराज! पूछते-पूछते थक गया किन्तु पता नहीं लगा कि रथ क्या है।’’
‘‘अलिकं त्वं महाराज, भाससि मुसावादं, न अत्थि रथो।’’
‘‘झूठे हैं आप महाराज, झूठ बोलते हैं कि रथ नहीं है।’’
‘‘त्वं सि महाराज, सकल जम्बुदीपे अग्गराजा। कस्स पन त्वं भायित्वा मुसावादं भाससि?’’
‘‘महाराज! सारे जम्बुदीप के आप अग्र-राजा है। भला किससे डर कर आप झूठ बोलते हैं?’’
अथ खो मिलिन्दो राजा आयस्मन्तं नागसेनं एतदवोच- ‘‘न अहं भन्ते नागसेन, मुसा भणामि।’’
तब, राजा मिलिन्द ने आयुस्मान नागसेन से कहा- ‘‘भन्ते नागसेन! मैं झूठ नहीं बोलता।’’
‘‘भन्ते नागसेन, ईसं च पटिच्च अंग-सम्भारा रथो सद्दो होति।’’
‘‘भन्ते नागसेन, ईस इत्यादि अवयवों(सम्भारा) के आधार पर ‘रथ’ संज्ञा होती है।’’
‘‘साधु खो त्वं महाराज, रथं जानासि।’’
‘‘महाराज! बहुत ठीक, आपने जान लिया कि रथ क्या है।’’
‘‘एवमेव खो महाराज, मय्हं अपि केसे च ‘नागसेनो’ सञ्ञा समञ्ञा पञ्ञा ति वोहारो नाममत्तं पवत्तति।’’
‘‘इसी प्रकार मेरे केस इत्यादि के आधार पर व्यवहार के लिए ‘नागसेन’ नाम होता है।’’
‘‘अच्छरियं, भन्ते नागसेन, अब्भुतं, भन्ते नागसेन।’’
‘‘आश्चर्य है, भन्ते नागसेन! अद्भूत है, भन्ते नागसेन!’’
‘‘अतिचित्रानि, पन्ह पटिभानानि विसज्जितानि।’’
‘‘बड़ी खूबी और प्रत्युत्पन्न-मति(पटिभान) से इस प्रश्न को सुलझा दिया।’’
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