कांग्रेस का उहापोह
हमें लगता है, राहुल गाँधी को कांग्रेस-अध्यक्ष का, एक तरह से थोपा पद, अब कतई नहीं स्वीकारना चाहिए. यह एक कड़ा सन्देश होगा पार्टी के अन्दर घाघ नेताओं के लिए और पार्टी के बाहर धुर-विरोधियों के लिए. बेशक, यह कांग्रेस के लिए भी फायदेमंद होगा.
कांग्रेस के बुढऊँ नेताओं का यह खयाल गलत है कि इससे कांग्रेस बिख़र जाएगी/ टूट जाएगी. बल्कि ऐसा कह कर ये नेता पार्टी के प्रति अपनी जिम्मेदारियों और कुर्बानियों से बच रहे हैं. राहुल गाँधी कांग्रेस अध्यक्ष पद किसी गैर गाँधी परिवार को सौंप कर वह मुकाम हासिल कर सकते हैं जो प्रधान मंत्री की कुर्सी ठुकरा कर सोनिया गाँधी को हासिल हुआ.
निस्संदेह, कांग्रेस अध्यक्ष पर कोई युवा नेता हो जो किसी खिंची लकीर या घेरे में चलने को बाध्य न हो, जो राहुल गाँधी के हाथ में हाथ मिला कर युवाओं को पार्टी से जोड़ें और देश में रक्त का नव-संचार करें.
सनद रहे, एक लोकतांत्रिक देश में मजबूत विपक्ष की उपस्थिति स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जितना आवश्यक है, उसके कहीं अधिक अल्पसंख्यक और समाज के कमजोर वर्ग की आवाज उठाने निहायत जरुरी है.
हमें लगता है, राहुल गाँधी को कांग्रेस-अध्यक्ष का, एक तरह से थोपा पद, अब कतई नहीं स्वीकारना चाहिए. यह एक कड़ा सन्देश होगा पार्टी के अन्दर घाघ नेताओं के लिए और पार्टी के बाहर धुर-विरोधियों के लिए. बेशक, यह कांग्रेस के लिए भी फायदेमंद होगा.
कांग्रेस के बुढऊँ नेताओं का यह खयाल गलत है कि इससे कांग्रेस बिख़र जाएगी/ टूट जाएगी. बल्कि ऐसा कह कर ये नेता पार्टी के प्रति अपनी जिम्मेदारियों और कुर्बानियों से बच रहे हैं. राहुल गाँधी कांग्रेस अध्यक्ष पद किसी गैर गाँधी परिवार को सौंप कर वह मुकाम हासिल कर सकते हैं जो प्रधान मंत्री की कुर्सी ठुकरा कर सोनिया गाँधी को हासिल हुआ.
निस्संदेह, कांग्रेस अध्यक्ष पर कोई युवा नेता हो जो किसी खिंची लकीर या घेरे में चलने को बाध्य न हो, जो राहुल गाँधी के हाथ में हाथ मिला कर युवाओं को पार्टी से जोड़ें और देश में रक्त का नव-संचार करें.
सनद रहे, एक लोकतांत्रिक देश में मजबूत विपक्ष की उपस्थिति स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जितना आवश्यक है, उसके कहीं अधिक अल्पसंख्यक और समाज के कमजोर वर्ग की आवाज उठाने निहायत जरुरी है.
No comments:
Post a Comment