सील अनिसंस
सिलाचरणेन जीवने सुख-सन्ति समायाति
शील के आचरण से जीवन में सुख-शांति आती है.
पियो पुथुु अत्ता परेसं, तस्मा न हिंसे परं (उदान)
दूसरों को भी(परेसं) अपना वैसा ही प्रिय है, इसलिए दूसरों को न सताएं।
पाणं न हनेय्य, न घातयेय्य, न च अनुजञ्ञा हननं देय्य (धम्मिक सुत्त )।
प्राणी का न हनन करें, न करवाएं, न हनन करने की दूसरों को अनुज्ञा दें)
न हारये न हरतं अनुजञ्ञा, सब्ब अदिन्नं परिवज्जेय्य।
न हरण करें, न हरण करने की दूसरों को अनुज्ञा दें , सब अदिन्न का सर्वथा त्याग करें।
असम्भवतो पन साधुचर्या, परस्स दारं न अतिक्कमेय्य।
साधुचर्या असंभव हो तो पर-स्त्री गमन तो न करें।
न भासये न भणतं अनुजञ्ञा, मुसा वादनं परिवज्जेय्य।
न बोलने को कहें, न बोलने की अनुज्ञा दें, सब प्रकार का मिथ्या-भाषण त्याग करें।
न पायये, न पिब्बतं अनुजञ्ञा, मज्जं च पानं न समाचरेय्य।
न पिलाएं, न पीने की अनुज्ञा दें, मद-पान का आचरण न करें।
सीलं समाजिकं पतिट्ठा च, सीलं कल्याणं च मातुकं
शील सामाजिक प्रतिष्ठा है, शील कल्याण है, माता के सामान है
सीलं पमुख सब्ब धम्मानं, तस्मा सीलं विसोधय्ये (सद्धममणि रतनं)।
शील सब धर्मों में प्रमुख है, इसलिए शील का परिशोधन करें।
सील बलं अप्पटिमं(अप्रतिम), सील आवुध उत्तमं।
शील अप्रतिम बल है, शील उत्तम शस्त्र है.
सीलं आभरणं सेट्ठं, सीलं कवचं अब्भुत्त (सद्धममणी रतनं) ।
शील श्रेष्ठ आभरण है, शील अद्भुत कवच है।
सब्बदा सील-सम्पन्नो, पञ्ञवा सु-समाहितो
शील-संपन्न हमेशा प्रज्ञा शील और एकाग्र-चित होता है.
आरद्ध विरियो पहितति, ओघं तरति दुत्तरं(वि. म.)।
ऐसा उत्साही, वीर्यवान, दुष्कर बाढ़ को पार कर चला जाता है.
अत्तानुवादादि भयं, विद्धं सयति सब्बसो.
स्व-निंदादि भय को, विध्वंश कर सभी प्रकार से मिटा देता है।
जनेति कित्ति हासं च, सीलं सीलवन्तं सदा (वि. म.)।
कितनी कीर्ति और हर्ष पैदा करता है, शील, शीलवन्त के लिए हमेशा।
गुणानं मूल भूतस्स, दोसानं बल घातिनो
शील, गुणों का मूल है, दोषों का बल क्षीण करने वाला है।
इति सीलस्स विञ्ञेय्यं, आनिसंस कथामुखं(वि. म.)।
शील के यह जानने योग्य गुण हैं, (इसलिए इसकी) महिमा का बखान किया गया है.
सिलाचरणेन जीवने सुख-सन्ति समायाति
शील के आचरण से जीवन में सुख-शांति आती है.
पियो पुथुु अत्ता परेसं, तस्मा न हिंसे परं (उदान)
दूसरों को भी(परेसं) अपना वैसा ही प्रिय है, इसलिए दूसरों को न सताएं।
पाणं न हनेय्य, न घातयेय्य, न च अनुजञ्ञा हननं देय्य (धम्मिक सुत्त )।
प्राणी का न हनन करें, न करवाएं, न हनन करने की दूसरों को अनुज्ञा दें)
न हारये न हरतं अनुजञ्ञा, सब्ब अदिन्नं परिवज्जेय्य।
न हरण करें, न हरण करने की दूसरों को अनुज्ञा दें , सब अदिन्न का सर्वथा त्याग करें।
असम्भवतो पन साधुचर्या, परस्स दारं न अतिक्कमेय्य।
साधुचर्या असंभव हो तो पर-स्त्री गमन तो न करें।
न भासये न भणतं अनुजञ्ञा, मुसा वादनं परिवज्जेय्य।
न बोलने को कहें, न बोलने की अनुज्ञा दें, सब प्रकार का मिथ्या-भाषण त्याग करें।
न पायये, न पिब्बतं अनुजञ्ञा, मज्जं च पानं न समाचरेय्य।
न पिलाएं, न पीने की अनुज्ञा दें, मद-पान का आचरण न करें।
सीलं समाजिकं पतिट्ठा च, सीलं कल्याणं च मातुकं
शील सामाजिक प्रतिष्ठा है, शील कल्याण है, माता के सामान है
सीलं पमुख सब्ब धम्मानं, तस्मा सीलं विसोधय्ये (सद्धममणि रतनं)।
शील सब धर्मों में प्रमुख है, इसलिए शील का परिशोधन करें।
सील बलं अप्पटिमं(अप्रतिम), सील आवुध उत्तमं।
शील अप्रतिम बल है, शील उत्तम शस्त्र है.
सीलं आभरणं सेट्ठं, सीलं कवचं अब्भुत्त (सद्धममणी रतनं) ।
शील श्रेष्ठ आभरण है, शील अद्भुत कवच है।
सब्बदा सील-सम्पन्नो, पञ्ञवा सु-समाहितो
शील-संपन्न हमेशा प्रज्ञा शील और एकाग्र-चित होता है.
आरद्ध विरियो पहितति, ओघं तरति दुत्तरं(वि. म.)।
ऐसा उत्साही, वीर्यवान, दुष्कर बाढ़ को पार कर चला जाता है.
अत्तानुवादादि भयं, विद्धं सयति सब्बसो.
स्व-निंदादि भय को, विध्वंश कर सभी प्रकार से मिटा देता है।
जनेति कित्ति हासं च, सीलं सीलवन्तं सदा (वि. म.)।
कितनी कीर्ति और हर्ष पैदा करता है, शील, शीलवन्त के लिए हमेशा।
गुणानं मूल भूतस्स, दोसानं बल घातिनो
शील, गुणों का मूल है, दोषों का बल क्षीण करने वाला है।
इति सीलस्स विञ्ञेय्यं, आनिसंस कथामुखं(वि. म.)।
शील के यह जानने योग्य गुण हैं, (इसलिए इसकी) महिमा का बखान किया गया है.
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