Saturday, June 22, 2019

धम्म अपरिहार्य

अकसर सांसारिक पुरुष दुक्खी होता है, तब उसे धम्म की याद आती है. क्योंकि, धम्म उसे मानसिक शांति देता है. क्योंकि, धम्म, नैतिकता का दूसरा नाम है. असहज चित्त को सद्विचारों की आवश्यकता होती है। 
बाबा साहब डॉ अम्बेडकर कहते हैं कि मनुस्स,  सिर्फ रोटी के भरोसे जिन्दा नहीं रह सकता। क्योंकि उसके पास मन भी है।  और मन, रोटी से नहीं भरता ? और यही कारण है कि आदमी अपनी जीविका का एक बड़ा हिस्सा धार्मिक कार्यों में खर्च करता है. 
धम्म, मनुस्स के लिए अपरिहार्य है. वह उसके जीवन का हिस्सा है. वह जीवन का लक्ष्य निर्धारित करता है। 'मैं' और 'परिवार' से बाहर देखने प्रवृत करता है. धम्म का इष्ट भी समाज है। अगर मनुस्स अकेला है, तब उसे समाज की दरकार नहीं।  निस्संदेह, तब उसे धम्म की भी दरकार नहीं। 
धम्म का अर्थ जितना सील से है, उससे कही अधिक समाज से है. आदमी अगर अकेला है, तो सील का पालन करें तो क्या, न करें तो क्या ? सील बनी ही इसलिए है कि उसे समाज में रहना हैं. दरअसल, मनुस्स सामाजिक प्राणी है. वह समाज से अलग रह ही नहीं सकता. और इसलिए धम्म अपरिहार्य है.

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