History -
चन्द्रगुप्त मौर्य का पोता और बिन्दुसार का पुत्र अशोक, ई पू 273 में जब मगध के राजसिहासन पर बैठा तब अपने शासन के 10 साल होने के अवसर पर
उसने पहली बार बुद्धगया का भ्रमण किया था। सम्राट अशोक ने ठीक उस पीपल वृक्ष के नीचे जहाँ
भगवान् बुद्ध को बोधी प्राप्त हुई थी , पत्थर का वज्रासन बनवाया था।
इसके साथ ही स्मारक के रूप में उसने एक पत्थर का स्तम्भ भी खड़ा करवाया था।
अपने शासन के अगले 10 साल होने पर पुन: वह दूसरी बार यहाँ आया था। इस बार उसने महाबोधि विहार का निर्माण कराया था। इसी तरह के बुद्ध महाविहार उसने
लुम्बिनी, सारनाथ और कुशिनारा में निर्माण करवाए थे । इसके आलावा उस पीपल वृक्ष की एक टहनी, जिसके नीचे भगवान् बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था; उसने अपने पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा के हाथ श्रीलंका के शासक के पास भेज कर वहां बोधी वृक्ष लगवाया था।
सम्राट अशोक ने चौरासी हजार बुद्ध विहार, स्तूप, संघाराम आदि जगह-जगह सम्पूर्ण राज्य में निर्माण करवाए थे। बौद्ध धर्म के प्रचार -प्रसार में सम्राट अशोक का योगदान जगत प्रसिद्द है।
मगर, बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार सम्राट अशोक के शासन तक ही सीमित नहीं रहा, गुप्त शासन काल में आगे भी हम इसकी प्रगति देखते हैं।
मगर, सातवी और आठवी ईसवी शताब्दी में हूण और मुस्लिम
आक्रमणकारियों के हमलों से बौद्ध धर्म को भारी क्षति हुई थी। बुद्ध
विहार/संघारामों को बड़े पैमाने पर नष्ट किया गया। इन हमलों में बौद्धगया
का बुद्ध महाविहार भी बच नहीं सका।
आठवी से बारवीं शताब्दी ईसवी में पाल राजाओं के समय बौद्ध धर्म का प्रसार हम पुन: देखते हैं । इस समय , जीर्ण शीर्ण बुद्ध विहारों को फिर से बनाया गया। मगर, इसके बाद पुन : हुए मुस्लिम आक्रमण में बौद्ध धर्म का जबदस्त नुकसान हुआ । मुस्लिम आक्रान्ताओं के निशाने पर ज्यादातर बौद्ध भिक्षु और बौद्ध विहार/संघाराम थे।
यह तो हुई मुस्लिम आक्रान्ताओं की बात। मगर , हिन्दू शासकों ने बौद्ध धर्म का इससे भी ज्यादा नुकसान किया। एक-एक बौद्ध भिक्षु का सिर काट कर लाने के लिए राज खजाने से ईनाम बांटा गया । बौद्ध विहारों /संघाराम को न सिर्फ नष्ट किया बल्कि , उस स्थान पर मन्दिर बनाकर कब्जा किया गया । बुद्ध गया के बोधी महाविहार पर हिन्दू महंत का कब्जा जो लगभग सन 1590 से है, इसी की परिणति है।
चीनी यात्री व्हेनसांग जो ईसवी सन 635 में भारत आया था, ने बुद्ध गया का भ्रमण किया था। आज, जिस रूप में बोधी महाविहार खड़ा है , उसका हुबहू वर्णन उसकी यात्रा वर्तांत में मिलता है।
बुद्ध गया महाबोधी विहार मुक्ति आन्दोलन -
बुद्ध गया महाबोधी विहार मुक्ति आन्दोलन का लम्बा
इतिहास है। सन 1874 में बर्मा के महाराजा ने एक बड़ी धन राशि के साथ अपना प्रतिनिधि मण्डल भारत सरकार के पास भेजा
था कि बुद्ध गया महाविहार को पुराने स्वरूप में लाकर उसे बौद्धों का पवित्र धार्मिक स्थल के रूप में
स्थापित किया जाए। सन 1880 के अवधि में ब्रिटिश शासन के समय जीर्ण-शीर्ण बोधी महाविहार के कुछ मरम्मत का काम हुआ ।
सन 1891 में श्रीलंका के अनागरिक धर्मपाल ने कर्नल ओलकाट के साथ महाबोधि विहार का भ्रमण किया था। वे पवित्र महाबोधि विहार की दयनीय हालत देख कर बेहद दु:खी हुए थे।
अनागरिक धर्मपाल ने भारत सरकार से मांग की थी कि महाबोधी विहार को देखने की व्यवस्था और प्रबंध हिन्दू महंत के हाथ में न होकर बौद्ध भिक्षु के पास होना चाहिए। सन 1890-92 में एडविन अर्नाल्ड ने ब्रिटिश सरकार से अनुरोध किया था कि बुद्ध गया महाविहार बौद्धों को सौंप दिया जाए। इस सम्बन्ध में अर्नाल्ड ने जापान सरकार से भी मदद मांगी थी।
इसके बाद और समय-समय पर कई आन्दोलन और सहमती के प्रयास
किए गए। सन 1922 में इन्डियन नॅशनल कांग्रेस ने डा राजेन्द्र प्रसाद; जो आगे
चलकर देश के राष्ट्रपति बने, की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई। कमेटी का सुझाव था कि महाबोधी विहार के प्रबंधन में हिन्दू और बौद्ध दोनों बराबरी से रहे।
अंतत: कई राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय दबावों के चलते स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद
भारत सरकार को ' बोधगया टेम्पल एक्ट 1949' पारित करना पड़ा। इस बिल के
तहत बिहार सरकार प्रत्येक 3 वर्ष के लिए 9 सदस्यों वाली ' बौद्ध गया
महाबोधी विहार प्रबंधन समिति' (B0dh Gaya Temple Management Committee) का
चुनाव करती है। जिला कलेक्टर समिति का पदेन अध्यक्ष होता है। समिति
में 4 हिन्दू और 4 बौद्ध सदस्य होते हैं। पहले समिति के हिन्दू अध्यक्ष
होने की शर्त थी जिसे वर्तमान में हटा दिया है।
सन 1973 में बुद्ध गया टेम्पल एडवायजरी बोर्ड बनाया गया जिस में देश और विदेश थाईलेंड , लाओस , बर्मा , सिक्किम कम्बोडिया ,भूटान, लदाख आदि के कुल २१ सदस्य हैं।
सन 1992 में भंते सुरई ससाई के नेतृत्व में 'आल इण्डिया महाबोधी टेम्पल लिबेराशन एक्शन कमेटी'(AIMTLAC) का गठन किया गया था, जिसके वर्तमान में अध्यक्ष भदन्त आनंद महाथेरो है। इस संगठन के मार्फत दोनों बिहार और केंद्र सरकारों से मांग की गई कि ' बोधगया टेम्पल एक्ट 1949' में आवश्यक संशोधन कर महाबोधी विहार का प्रबंध बौद्धों के हाथों में दिया जाए।
14 अक्तू 1992 को दिल्ली के बोट क्लब पर 3 लाख के ऊपर देश और विदेश से आए बौद्धों की विशाल रेली हुई थी। इसी दिन बुद्ध गया के
महाबोधी विहार को बौद्धों का सबसे पवित्र स्थल घोषित किया गया था। इसी बीच बिहार के मुख्य मंत्री लालू प्रसाद व् बाद के दिनों में राबड़ी देवी ने अपने
उस वादे से हाथ खींच लिए जो महाबोधि विहार का प्रबंध बौद्धों को देने के
लिए उन्होंने किया था।
सन 1992 में ही अखिल भारतीय भिक्षु संघ द्वारा व्यापक जन-आन्दोलन किया गया था। नव. 1995 में आमरण भूख हडताल की गई थी।
संयुक्त राष्ट्र संघ से मांग -
सन
2002 में भंते सुरई ससाई के ही नेतृत्व में संयुक्त राष्ट्र संघ से यह
मांग की गई कि बुद्ध गया के महाबोधी विहार का प्रबंध बौद्धों को देने के
लिए वह भारत सरकार को निर्देश जारी करे। भंते सुरई ससाई ने संयुक्त राष्ट्र
संघ के महासचिव से कहा कि विश्व के तमाम बुद्धिस्ट देशों का धर्म-स्थल
भारत का महाबोधी विहार है। हिन्दू मन्दिरों का प्रबंध हिन्दुओं के हाथों
में है। मस्जिदों का प्रबंध मुसलमानों के हाथों में है और चर्चों का
प्रबंध क्रिश्चियनों के हाथों में है। तब, बोधी महाविहार का प्रबंध
बौद्धों के हाथों में होना चाहिए ?
स्मरण रहे, भंते सुरई ससाई सन 1995 से महाबोधी महाविहार प्रबंध कमेटी के सदस्य रहे थे। इसी बीच सन 2002 में UNESCO ने बोधी महाविहार को world heritage घोषित किया है ।
सर्वोच्च न्यायालय में पिटीशन-
भंते सुरई ससाई जी ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय में पिटीशन दायर कर मांग की कि कोर्ट इस मामले में संज्ञान ले ताकि महाबोधी विहार प्रबंध के सम्बन्ध में बौद्धों को न्याय मिले।
हिंदुओं का दावा-
इधर, अब हिन्दुओं की ऒर से सर्वोच्च न्यायालय में एक पीआईएल दाखिल किया है कि 'बुद्ध गया टेम्पल एक्ट 1949 ' संविधान के आर्टिकल 25, 26, 29 और 30 का विरोध करता है। इस पीआईएल के अनुसार
संविधान की धारा 26 प्रत्येक समुदाय को अपनी धार्मिक संस्था बनाने और उसका प्रबंध करने का अधिकार देती है। बुद्ध गया महाबोधी विहार गुप्त राजवंशके द्वारा निर्माण किया है और इसलिए यह हिन्दुओं का मन्दिर है। महाबोधी विहार हिन्दू महंत के देख-रेख में बिलकुल ठीक सुरक्षित है। इसलिए 'बुद्ध गया टेम्पल एक्ट 1949' को रद्द करने न्यायालय निर्देशित करे।
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Please read 'Buddhists Denied Justice' :www. countercurrent .org
चन्द्रगुप्त मौर्य का पोता और बिन्दुसार का पुत्र अशोक, ई पू 273 में जब मगध के राजसिहासन पर बैठा तब अपने शासन के 10 साल होने के अवसर पर
अपने शासन के अगले 10 साल होने पर पुन: वह दूसरी बार यहाँ आया था। इस बार उसने महाबोधि विहार का निर्माण कराया था। इसी तरह के बुद्ध महाविहार उसने
लुम्बिनी, सारनाथ और कुशिनारा में निर्माण करवाए थे । इसके आलावा उस पीपल वृक्ष की एक टहनी, जिसके नीचे भगवान् बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था; उसने अपने पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा के हाथ श्रीलंका के शासक के पास भेज कर वहां बोधी वृक्ष लगवाया था।
सम्राट अशोक ने चौरासी हजार बुद्ध विहार, स्तूप, संघाराम आदि जगह-जगह सम्पूर्ण राज्य में निर्माण करवाए थे। बौद्ध धर्म के प्रचार -प्रसार में सम्राट अशोक का योगदान जगत प्रसिद्द है।
मगर, बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार सम्राट अशोक के शासन तक ही सीमित नहीं रहा, गुप्त शासन काल में आगे भी हम इसकी प्रगति देखते हैं।
आठवी से बारवीं शताब्दी ईसवी में पाल राजाओं के समय बौद्ध धर्म का प्रसार हम पुन: देखते हैं । इस समय , जीर्ण शीर्ण बुद्ध विहारों को फिर से बनाया गया। मगर, इसके बाद पुन : हुए मुस्लिम आक्रमण में बौद्ध धर्म का जबदस्त नुकसान हुआ । मुस्लिम आक्रान्ताओं के निशाने पर ज्यादातर बौद्ध भिक्षु और बौद्ध विहार/संघाराम थे।
यह तो हुई मुस्लिम आक्रान्ताओं की बात। मगर , हिन्दू शासकों ने बौद्ध धर्म का इससे भी ज्यादा नुकसान किया। एक-एक बौद्ध भिक्षु का सिर काट कर लाने के लिए राज खजाने से ईनाम बांटा गया । बौद्ध विहारों /संघाराम को न सिर्फ नष्ट किया बल्कि , उस स्थान पर मन्दिर बनाकर कब्जा किया गया । बुद्ध गया के बोधी महाविहार पर हिन्दू महंत का कब्जा जो लगभग सन 1590 से है, इसी की परिणति है।
Namo tassa bhagavato arahato samma sambuddhassa |
चीनी यात्री व्हेनसांग जो ईसवी सन 635 में भारत आया था, ने बुद्ध गया का भ्रमण किया था। आज, जिस रूप में बोधी महाविहार खड़ा है , उसका हुबहू वर्णन उसकी यात्रा वर्तांत में मिलता है।
बुद्ध गया महाबोधी विहार मुक्ति आन्दोलन -
Atta Hi Attano Natho |
सन 1891 में श्रीलंका के अनागरिक धर्मपाल ने कर्नल ओलकाट के साथ महाबोधि विहार का भ्रमण किया था। वे पवित्र महाबोधि विहार की दयनीय हालत देख कर बेहद दु:खी हुए थे।
अनागरिक धर्मपाल ने भारत सरकार से मांग की थी कि महाबोधी विहार को देखने की व्यवस्था और प्रबंध हिन्दू महंत के हाथ में न होकर बौद्ध भिक्षु के पास होना चाहिए। सन 1890-92 में एडविन अर्नाल्ड ने ब्रिटिश सरकार से अनुरोध किया था कि बुद्ध गया महाविहार बौद्धों को सौंप दिया जाए। इस सम्बन्ध में अर्नाल्ड ने जापान सरकार से भी मदद मांगी थी।
Yassa mule nissinno va,Sabbari vijayam aka
|
Anagarik Dkammpala, the Pioneer of Bodhi Vihar Liberation Movement |
Buddham namami,Dhammam namami, Sangham namami
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सन 1973 में बुद्ध गया टेम्पल एडवायजरी बोर्ड बनाया गया जिस में देश और विदेश थाईलेंड , लाओस , बर्मा , सिक्किम कम्बोडिया ,भूटान, लदाख आदि के कुल २१ सदस्य हैं।
सन 1992 में भंते सुरई ससाई के नेतृत्व में 'आल इण्डिया महाबोधी टेम्पल लिबेराशन एक्शन कमेटी'(AIMTLAC) का गठन किया गया था, जिसके वर्तमान में अध्यक्ष भदन्त आनंद महाथेरो है। इस संगठन के मार्फत दोनों बिहार और केंद्र सरकारों से मांग की गई कि ' बोधगया टेम्पल एक्ट 1949' में आवश्यक संशोधन कर महाबोधी विहार का प्रबंध बौद्धों के हाथों में दिया जाए।
Natthi me saranam annam,Buddho me saranam varam |
सन 1992 में ही अखिल भारतीय भिक्षु संघ द्वारा व्यापक जन-आन्दोलन किया गया था। नव. 1995 में आमरण भूख हडताल की गई थी।
A close up of Bodhivihar portion |
संयुक्त राष्ट्र संघ से मांग -
Ye c Sangha atita c, ye c Sangha anagata |
स्मरण रहे, भंते सुरई ससाई सन 1995 से महाबोधी महाविहार प्रबंध कमेटी के सदस्य रहे थे। इसी बीच सन 2002 में UNESCO ने बोधी महाविहार को world heritage घोषित किया है ।
सर्वोच्च न्यायालय में पिटीशन-
भंते सुरई ससाई जी ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय में पिटीशन दायर कर मांग की कि कोर्ट इस मामले में संज्ञान ले ताकि महाबोधी विहार प्रबंध के सम्बन्ध में बौद्धों को न्याय मिले।
Vandami cetiyam sabbam, sabba thanesu patitthitam
|
इधर, अब हिन्दुओं की ऒर से सर्वोच्च न्यायालय में एक पीआईएल दाखिल किया है कि 'बुद्ध गया टेम्पल एक्ट 1949 ' संविधान के आर्टिकल 25, 26, 29 और 30 का विरोध करता है। इस पीआईएल के अनुसार
संविधान की धारा 26 प्रत्येक समुदाय को अपनी धार्मिक संस्था बनाने और उसका प्रबंध करने का अधिकार देती है। बुद्ध गया महाबोधी विहार गुप्त राजवंशके द्वारा निर्माण किया है और इसलिए यह हिन्दुओं का मन्दिर है। महाबोधी विहार हिन्दू महंत के देख-रेख में बिलकुल ठीक सुरक्षित है। इसलिए 'बुद्ध गया टेम्पल एक्ट 1949' को रद्द करने न्यायालय निर्देशित करे।
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Please read 'Buddhists Denied Justice' :www. countercurrent .org
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